भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि आरक्षण के लिए एससी और एसटी वर्गों के अंदर भी उपश्रेणियां बनाई जा सकती हैं. जानिए क्या असर होगा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ के सामने सवाल था कि राज्य सरकारों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्गों में उप-श्रेणियां बनाने की शक्ति है या नहीं.

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिसरा और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने बहुमत से निर्णय दिया कि राज्यों के पास यह शक्ति है. इस फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के ही 2005 के फैसलेको पलट दिया है. दरअसल कई राज्यों में एससी और एसटी वर्गों में विशेष जातियों के लिए कोटे के अंदर कोटा देने की व्यवस्था है.

आरक्षण केवल पहली पीढ़ी को मिले
अनुसूचित जाति को मिलने वाले 15 फीसदी आरक्षण में भी सब-कोटे को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मंजूरी दी। अदालत ने 6-1 के बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि राज्यों को एससी आरक्षण में भी जातीय आधार पर उसके वर्गीकरण का आधार है। यह आरक्षण उन जातियों के लिए अलग से वर्गीकृत किया जा सकता है, जो पिछड़ी रह गई हों और उनसे ज्यादा भेदभाव किया जा रहा हो। यही नहीं सुनवाई के दौरान जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि किसी भी कैटिगरी में पहली पीढ़ी को ही आरक्षण मिलना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एससी और एसटी में आरक्षण का वर्गीकरण करना उचित विचार है।

जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि इस बात की समीक्षा होनी चाहिए कि आरक्षण मिलने के बाद दूसरी पीढ़ी सामान्य वर्ग के स्तर पर आ गई है या नहीं। यदि ऐसी स्थिति आ जाए तो फिर एक पीढ़ी के बाद आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। इस अहम केस की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुसूचित जाति वर्ग में समरूपता नहीं है। इसमें भी विभिन्नताएं हैं। हालांकि 7 जजों की बेंच में अकेले जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की राय अलग थी। उनका कहना था कि अनुसूचित जाति वर्ग को जाति नहीं बल्कि क्लास के आधार पर आरक्षण मिलता है।