आरक्षण के मुद्दे पर देश में जारी रार के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्र की भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाया है। खड़गे ने कहा, क्रीमी लेयर लाकर आप किसे लाभ पहुंचाना चाहते हैं? क्रीमी लेयर (अवधारणा) लाकर आप एक तरफ अछूतों को नकार रहे हैं और उन लोगों को दे रहे हैं जिन्होंने हजारों सालों से विशेषाधिकारों का आनंद लिया है। मैं इसकी निंदा करता हूं। उन्होंने कहा कि सात न्यायाधीशों की तरफ से उठाया गया क्रीमी लेयर का मुद्दा दर्शाता है कि उन्होंने एससी और एसटी के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा है।
जब तक छुआ-छूत, तब तक आरक्षण जरूरी
खड़गे ने कहा, जब तक छुआ-छूत रहेगी, तब तक आरक्षण होना चाहिए और रहेगा। हम इसके लिए लड़ेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष ने भाजपा पर आरक्षण खत्म करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। खड़गे ने कहा कि सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों का निजीकरण कर दिया है और बहुत सारी रिक्तियां हैं, लेकिन वे भर्ती नहीं कर रहे हैं। एससी और एसटी को नौकरी नहीं मिल पा रही है। कोई भी एससी उच्च-स्तरीय पदों पर नहीं है। एससी और एसटी को क्रीमी लेयर में वर्गीकृत करके दबाने की कोशिश कर रहे हैं।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि आरक्षण के लिए एससी और एसटी वर्गों के अंदर भी उपश्रेणियां बनाई जा सकती हैं. जानिए क्या असर होगा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ के सामने सवाल था कि राज्य सरकारों के पास आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्गों में उप-श्रेणियां बनाने की शक्ति है या नहीं.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिसरा और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने बहुमत से निर्णय दिया कि राज्यों के पास यह शक्ति है. इस फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के ही 2005 के फैसलेको पलट दिया है. दरअसल कई राज्यों में एससी और एसटी वर्गों में विशेष जातियों के लिए कोटे के अंदर कोटा देने की व्यवस्था है.
आरक्षण केवल पहली पीढ़ी को मिले
अनुसूचित जाति को मिलने वाले 15 फीसदी आरक्षण में भी सब-कोटे को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मंजूरी दी। अदालत ने 6-1 के बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि राज्यों को एससी आरक्षण में भी जातीय आधार पर उसके वर्गीकरण का आधार है। यह आरक्षण उन जातियों के लिए अलग से वर्गीकृत किया जा सकता है, जो पिछड़ी रह गई हों और उनसे ज्यादा भेदभाव किया जा रहा हो। यही नहीं सुनवाई के दौरान जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि किसी भी कैटिगरी में पहली पीढ़ी को ही आरक्षण मिलना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एससी और एसटी में आरक्षण का वर्गीकरण करना उचित विचार है।
जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि इस बात की समीक्षा होनी चाहिए कि आरक्षण मिलने के बाद दूसरी पीढ़ी सामान्य वर्ग के स्तर पर आ गई है या नहीं। यदि ऐसी स्थिति आ जाए तो फिर एक पीढ़ी के बाद आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। इस अहम केस की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुसूचित जाति वर्ग में समरूपता नहीं है। इसमें भी विभिन्नताएं हैं। हालांकि 7 जजों की बेंच में अकेले जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की राय अलग थी। उनका कहना था कि अनुसूचित जाति वर्ग को जाति नहीं बल्कि क्लास के आधार पर आरक्षण मिलता है।
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