New Delhi: एनडीए की सरकार का तीसरी बार गठन हो गया है। नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार रविवार शाम को प्रधानमंत्री पद के रूप में शपथ ली है। नरेंद्र मोदी के साथ कैबिनेट, राज्यमंत्री और स्वतंत्र प्रभार मंत्रियों ने भी पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। मोदी सरकार 3.0 में इस बार 31 कैबिनेट मंत्री, 5 स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री और 36 राज्यमंत्री शामिल हैं। इसमें गठबंधन दलों के साथ राज्यसभा सांसद भी शामिल हैं.
कैबिनेट मंत्री
राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
राज्य मंत्री……
New Delhi: मोदी कैबिनेट 3.0 में इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिला है। इस बार कई नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है तो वहीं कई पुराने दिग्गज नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया है। मोदी मंत्री मंडल में राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण, एस जयशंकर और पीयूष गोयल दोबारा कैबिनेट मंत्री बने हैं। ये सभी नेता मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अहम विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी बने मंत्री बने
वहीं, मोदी कैबिनेट 3.0 में इस बार भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल हो गए हैं। नड्डा को बड़ा विभाग मिलने की संभावना है। जेपी नड्डा के कैबिनेट में शामिल होने के साथ ही अब भाजपा को नया अध्यक्ष मिलने की संभावना जताई जा रही है।
37 पूर्व मंत्रियों को दिखाया गया बाहर का रास्ता
पिछली सरकार के 37 मंत्रियों को मोदी कैबिनेट 3.0 से बाहर कर दिया गया है। इनमें से सात कैबिनेट मंत्री थे, जिनमें स्मृति ईरानी, अनुराग ठाकुर और नारायण राणे शामिल हैं। इसके अलावा अर्जुन मुंडा, संजीव कुमार बालियान, फग्गन सिंह कुलस्ते, पुरुषोत्तम रूपाला, वीके सिंह, महेंद्र नाथ पांडे, साध्वी निरंजन ज्योति, आरके सिंह, राजीव चंद्रशेखर, कैलाश चौधरी, वी मुरलीधरन और मीनाक्षी लेखी को इस बार मंत्री पद से हटाया गया है।
सहयोगी दलों के ये बने मंत्री
कैबिनेट में BJP के कई सहयोगी दलों को भी जगह मिली। जिसमें हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से जीतन राम मांझी, जनता दल सेकुलर (जेडीएस) से एचडी कुमारस्वामी, जेडीयू से राजीव रंजन सिंह उर्फललन सिंह, टीडीपी से किंजरापु राम मोहन नायडू, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) से चिराग पासवान कैबिनेट मंत्री बने हैं। वहीं, आरएलडी के जयंत चौधरी समेत कई और भाजपा सहयोगियों ने राज्य मंत्री और राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में शपथ ली है।
पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों ने ली मंत्री पद की शपथ
मोदी कैबिनेट में 5 पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी मंत्री पद की शपथ ली। जिनमें शिवराज सिंह चौहान, एच.डी. कुमारस्वामी, मनोहर लाल खट्टर, जीतन राम मांझी और सर्बानंद सोनोवाल शामिल हैं। वहीं, केरल में पहली बार कमल खिलाने वाले अभिनेता से राजनेता बने सुरेश गोपी को भी कैबिनेट में जगह दी गई है। पूर्वी दिल्ली से पहली बार सांसद बने हर्ष मल्होत्रा भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश के 9 मंत्री बने
मोदी कैबिनेट 3.0 में बिहार के 8 मंत्रियों में से 4 को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। जबकि उत्तर प्रदेश के नौ मंत्रियों में से केवल राजनाथ सिंह कैबिनेट मंत्री बने। महाराष्ट्र के छह सांसदों को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। मोदी मंत्रिमंडल के 72 मंत्रियों में से 7 महिलाएं हैं। 42 मंत्री ओबीसी, एससी और एसटी श्रेणियों से हैं।
New Delhi: मोदी सरकार 3.0 के शपथ ग्रहण के बाद सोमवार को सीएम योगी आदित्यानाथ ने दिल्ली में अमित शाह, नितिन गडकरी समेत कई नेताओं से मुलाकात की और बधाई दी। वहीं, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ की मुलाकात को लेकर राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं तेज हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक मोदी कैबिनेट की पहली बैठक से पहले हुई इस मुलाकात में यूपी के लोकसभा चुनाव परिणाम को लेकर सीएम योगी और वरिष्ठ नेताओं के बीच चर्चा हुई है।
सिर्फ 33 सीटों पर सिमटी भाजपा
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से बीजेपी को 33 सीटें जीतने में कामयाब हो पाई हैं। भाजपा की सहयोगी रालोद ने दो व अपना दल ने एक सीट जीती है। जबकि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की झोली में 37 सीटें गई हैं। वहीं, सपा के साथ गठबंधन में लड़ी कांग्रेस को भी 3 सीटें मिली हैं। आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद अपनी सीट से जीतने में सफल रहे हैं। वहीं, 2014 की तरह बसपा का इस बार भी शून्य पर ही रह गई है।
केंद्र सरकार के 7 मंत्री हार गए चुनाव
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी से लगातार तीसरी बार जीत गए हैं, जबकि राहुल गांधी ने रायबरेली और अखिलेश यादव ने कन्नौज से जीत हासिल की है। वहीं, केंद्र सरकार के सात मंत्री भी चुनाव हार गए हैं। जिसमें स्मृति ईरानी भी शामिल हैं। इसके अलावा भाजपा ने अपने 47 सांसदों को फिर से टिकट दिया था, इनमें से 26 हार गए हैं।
New Delhi: मोदी कैबिनेट 3.0 के शपथ ग्रहण समारोह के अगले दिन यानी सोमवार को मंत्रियों के विभागों को बंटवारा हो गया है। इस बार भी राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्री, अमित शाह को गृह मंत्री, सीता रमण को वित्त मंत्री बनाया गया है। इसके साथ ही और भी कई मंत्रियों को दोबारा वही विभाग मिला है, मोदी सरकार 2.0 में था। यहां देखें मंत्रियों को कौन-कौन से विभाग की जिम्मेदारी मिली.
मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री और विभाग
1.सीआर पाटिल-जल शक्ति मंत्रालय
2.राजनाथ सिंह-रक्षा मंत्रालय
3.अमित शाह-गृह मंत्रालय
4.नितिन गडकरी-सड़क और परिवहन मंत्रालय
5.जे पी नड्डा-स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
6.शिवराज सिंह चौहान- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालयय/ ग्रामीण विकास मंत्रालय/ पंचायती राज मंत्रालय
7.निर्मला सीतारमण-वित्त मंत्रालय
8.डॉ एस जयशंकर- विदेश मंत्रालय
9.मनोहर लाल-विद्युत एवं शहरी मामलों का मंत्रालय
10.एचडी कुमारस्वामी-भारी उद्योग मंत्रालय/इस्पात मंत्रालय
11.पीयूष गोयल-वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय
12.धर्मेंद्र प्रधान-मानव संसाधन विकास मंत्रालय
13.जीतन राम मांझी- माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय
14.राजीव रंजन (ललन) सिंह- पंचायती राज मंत्रालय, तथा मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय
15.सर्बानंद सोनोवाल-पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय
16.किंजरापु राम मोहन नायडू-नागरिक उड्डयन मंत्रालय
17.डॉ वीरेंद्र कुमार-सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय
18.जुअल ओराम-जनजातीय कार्य मंत्रालय
19.प्रहलाद जोशी-उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
20.अश्विनी वैष्णव-सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय/रेल मंत्रालय
21.गिरिराज सिंह-कपड़ा मंत्रालय
22.ज्योतिरादित्य सिंधिया-पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्रालय
23.भूपेंद्र यादव-भारत का पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
24.गजेंद्र सिंह शेखावत-पर्यटन मंत्रालय
25.अन्नपूर्णा देवी-महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
26.किरन रिजिजू-संसदीय कार्य मंत्रालय
27.मनसुख मंडाविया-श्रम एवं रोजगार मंत्रालय; तथा युवा मामले एवं खेल मंत्रालय
28.हरदीप सिंह पुरी-पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय
29.जीके रेड्डी- कोयला मंत्रालय तथा खान मंत्रालय
30.चिराग पासवान -खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय
राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार
1.राव इंद्रजीत सिंह-सांख्यि की एवं योजना क्रियान्वयन, संस्कृति मंत्रालय के राज्य मंत्री
2.जितेंद्र सिंह-विज्ञान एवं तकनीक और भूविज्ञान मंत्रालय
3.अर्जुन राम मेघवाल-कानून एवंन्याय मंत्री एवं संसदीय कार्यराज्य मंत्री
4.प्रतापराव जाधव-आयुष मंत्री, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री
5.जयंत चौधरी-स्किल डिवेलपमेंट मंत्रालय, शिक्षा राज्य मंत्री
राज्य मंत्री
1.जितिन प्रसाद-इस्पात एवं वाणिज्य राज्य मंत्री, आईटी राज्य मंत्री
2.श्रीपद नाइक-ऊर्जाराज्य मंत्री एवं अक्षय ऊर्जाराज्य मंत्र
3.पंकज चौधरी-वित्त राज्य मंत्री
4.कृष्णपाल गुर्जर-सहकारिता राज्य मंत्री
5.रामदास आठवले-सामाजिक एवं अधिकारिता राज्य मंत्री
6.रामनाथ ठाकुर-कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री
7.नित्यानंद राय-गृह राज्य मंत्री
8.अनुप्रिया पटेल-स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री, केमिकल एवं उर्वरक मंत्रालय
9.वी. सोमन्ना-जलशक्ति एवं रेल राज्य मंत्री
10.चंद्रशेखर पेम्मासानी-ग्रामीण विकास राज्य मंत्री, संचार राज्य मंत्री
11.एसपी सिंह बघेल-पंचायती राज एवं मत्स्य एवं पशुपालन राज्य मंत्री
12.शोभा करंदलाजे-लघुउद्योग एवंश्रम राज्य मंत्री
13.कीर्तिवर्धन सिंह-विदेश राज्य मंत्री, वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री
14.बीएल वर्मा-उपभोक्ता राज्य मंत्री
15.शांतनुठाकुर-जहाजरानी एवं जलमार्गराज मंत्री
16.कमलेश पासवान-ग्रामीण विकास राज्य मंत्री बंडी
17.संजय कुमार-गृह राज्य मंत्री
18.अजय टम्टा-सड़क परिवहन राज्य मंत्री
19.डॉ. एल मुरुगन-सूचना प्रसारण राज्य मंत्री एवं संसदीय कार्यराज्य मंत्री
20.सुरेश गोपी-पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री
21.रवनीत सिंह बिट्टू-खाद्य प्रसंस्करण एवं रेल राज्य मंत्री
22.संजय सेठ-रक्षा राज्य मंत्री
23.रक्षा खडसे-युवा एवं खेल राज्य मंत्री
24.भगीरथ चौधरी-कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री
25.सतीश चंद्र दुबे-कोयला और खनन राज्य मंत्री
26.दुर्गादास उइके-जनजातीय कार्यराज्य मंत्री
27.सुकांत मजूमदार-शिक्षा एवं पूर्वोत्तर विकास राज्य मंत्री
28.सावित्री ठाकुर-महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री
29.तोखन साहू-शहरी विकास राज्य मंत्री
30.राजभूषण चौधरी-जलशक्ति राज्य मंत्री
31.भूपति राजूश्रीनिवास वर्मा- भारी उद्योग एवं इस्पात राज्य मंत्री
32.हर्षमल्होत्रा-सड़क परिवहन राज्य मंत्री
33.निमूबेन बम्भानियाम-उपभोक्ता मामलेराज्य मंत्री
34.मुरलीधर मोहोल-सहकारिता एवं नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री
35.जॉर्जकुरियन-अल्पसंख्यक कल्याण एवं पशुपालन राज्य मंत्री
36.पबित्र मार्गेरिटा-विदेश एवं कपड़ा राज्य मंत्री
मोदी कैबिनेट ने बुधवार को देश में ‘एक देश एक चुनाव’ को मंजूरी दे दी। वन नेशन वन इलेक्शन के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चेयरमैन बनाकर एक कमेटी बनाई गई थी। बुधवार को पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने अपनी रिपोर्ट मोदी कैबिनेट को दी थी, जिसके बाद उसे मंजूर कर दिया गया।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने क्या कहा?
देश में वन नेशन वन इलेक्शन को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि हाई लेवल कमेटी की सिफारिशों को मंजूर कर लिया गया है। 1951 से 1967 तक देश में एक साथ ही चुनाव होते थे। हम अगले महीनों में इसपर आम सहमति बनाने की कोशिश करेंगे। 'एक देश एक चुनाव' पर समिति ने 191 दिन तक काम किया और 21,558 लोगों से राय ली। 80% लोगों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें 47 में से 32 राजनीतिक दल भी शामिल हैं। समिति ने पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों, चुनाव आयुक्तों और राज्य चुनाव आयुक्तों से भी बात की।
दो चरणों में होंगे चुनाव
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आगे बताया कि 'एक देश एक चुनाव' दो चरणों में होगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव और दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव यानी कि पंचायत और नगरपालिका के चुनाव होंगे। राजनीति और कानून के जानकारों का कहना है कि अब केंद्र सरकार इसे शीतकालीन सत्र में संसद में लाएगी। आपको बता दें, ये संविधान संशोधन वाला बिल है और इसके लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी है। भारतीय जनता पार्टी ने साल 2024 के आम चुनाव में 'एक देश एक चुनाव' का वादा किया था।
वन नेशन वन इलेक्शन कैसे होता है लागू?
'एक देश एक चुनाव' को सरल शब्दों में समझें, तो एक ही समय में केंद्र और राज्य के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए सभी भारतीय लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मतदान करेंगे। इसके लागू होते ही नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी साथ में ही होंगे। मौजूदा समय में केंद्र सरकार का चयन करने के साथ-साथ एक नई राज्य सरकार के लिए भी लोग मतदान करते हैं। एक देश एक चुनाव लागू होते ही संसाधनों की भी बचत होगी।
नई सरकार बनने के बाद PM नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई। इसमें पांच महत्वपूर्ण फैसले लिए गए हैं। इस बैठक में केंद्र सरकार ने किसानों को बड़ी सौगात दी है। बैठक में मोदी कैबिनेट ने खरीफ की 14 फसलों के लिए नई MSP तय कर दी है। केंद्रीय कैबिनेट के फैसलों पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि 'कैबिनेट ने धान, रागी, बाजरा, ज्वार, मक्का और कपास समेत 14 खरीफ सीजन की फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मंजूरी दे दी है।'
खरीफ सीजन की 14 फसलों के लिए नई MSP को मंजूरी
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, पीएम नरेंद्र मोदी किसानों के प्राथमिकता देते हैं। उनके सम्मान में ये फैसला लिया गया है। इनमें से एक ये कि कैबिनेट ने खरीफ सीजन के लिए 14 फसलों के लिए MSP को मंजूरी दे दी। कैबिनेट बैठक में धान का MSP 2300 रुपए तय किया गया है। कपास के लिए MSP 7121 रुपए और एक दूसरे तरह के कपास के लिए 7521 रुपए तय किया गया है। बाजरे के लिए MSP 2625 रुपए निर्धारित की गई है। जबिक मूंगफली तेल का MSP 6783 रुपए तय किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि MSP डेढ़ गुना होनी चाहिए। इससे किसानों के खाते में 2 लाख करोड़ रुपये जाएंगे। धान पैडी का नया एमएसपी 2300 रुपये होगा। इसमें 170 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई है। 2013-14 में यह 1310 था।
देश की 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून को शुरू हुआ था. जिसमें सबसे पहले PM मोदी ने 18वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ ली. जिसके बाद अन्य सांसदों का शपथ ग्रहण दो दिनों तक चला. वहीं अब विपक्ष ने अपना नेता प्रतिपक्ष चुन लिया है. जिसको लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर मंगलवार को इंडिया ब्लॉक की बैठक हुई. इस बैठक में राहुल गांधी के सदन में नेता विपक्ष बनाने को लेकर चर्चा हुई. जिसके बाद इंडिया गठबंधन की मीटिंग में राहुल गांधी के बतौर विपक्ष का नेता बनने पर औपचारिक मुहर लग गई है. पिछले दिनों कांग्रेस की सीडब्ल्यूसी मीटिंग में एक सुर में राहुल गांधी से नेता विपक्ष बनने का आग्रह किया गया था. हालांकि उन्होंने सोचने के लिए थोड़ा वक्त मांगा था. बताया जाता है कि शुरू में राहुल गांधी इसके लिए बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं थे. लेकिन पार्टी की ओर से लगातार उठ रही मांग के बाद उन्होंने इस पर विचार किया. बता दें ये पद मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकालों से खाली है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर क्या नियम-कानून है और क्यों राहुल गांधी इस जिम्मेदारी को अभी नहीं संभालना चाहते थे. इस रिपोर्ट में समझते है.
लोकतंत्र में संतुलन बनाए रखने को विपक्ष के नेता का रोल महत्वपूर्ण
ऐसा कहा जाता है कि लोकतंत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए विपक्ष के नेता का रोल बहुत महत्वपूर्ण होता है. नेता प्रतिपक्ष को केंद्रीय मंत्री के बराबर सैलरी, भत्ता और बाकी सुविधाएं दी जाती है. नेता प्रतिपक्ष की मासिक सैलरी 3,30,000 रुपये होती है. साथ ही कैबिनेट मंत्री स्तर के आवास की सुविधा ड्राइवर सहित कार जैसी सुविधाएं मिलती है. यहां तक की ED, CBI जैसी केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति के प्रोसेस में नेता प्रतिपक्ष शामिल रहता है. चुनाव आयुक्त, मुख्य चुनाव आयुक्त, सूचना आयुक्त और लोकपाल की नियुक्त के लिए भी नेता प्रतिपक्ष की राय ली जाती है, यहां एक सवाल आता है कि क्या ये कोई संवैधानिक पद है अगर है तो क्या नियम है.
10 साल के लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस को मिला पद
दरअसल लोकसभा में 10 साल के लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद अधिकृत रूप से मिला. जिसकी बड़ी वजह भी है, क्योंकि मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस के लोकसभा सांसदों की संख्या 10 फीसदी से कम होने के कारण ये पद खाली था. इस बार कांग्रेस के 99 सांसद जीतकर आए हैं, जो लोकसभा की कुल संख्या का 18 फीसदी हैं. जिसके चलते कांग्रेस का नेता प्रतिपक्ष बनेगा, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो संसद में विपक्ष का नेता एक संवैधानिक पद होता है लेकिन नेता प्रतिपक्ष का उल्लेख संविधान में नहीं बल्कि सदन के नियमों में है.संविधान के आर्टिकल 118 में स्पष्ट किया गया है कि संसद का प्रत्येक सदन अपने कामकाज के संचालन के लिए नियम बना सकता है. निचले सदन के नियम ‘Rules of Procedure and Conduct of Business in Lok Sabha’ में शामिल हैं. इसमें स्पीकर के चुनाव, बिल पेश करने की प्रक्रिया, सवाल पूछने के ढंग, आदि के बारे में बताया गया है. लोकसभा का स्पीकर समय-समय पर इनमें बदलाव करता रहता है.
1969 के कांग्रेस विभाजन के बाद अस्तित्व में आया था पद
देश के पहले नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस (ओ) यानी पुरानी कांग्रेस के नाम से जो जानी जाती थी उसी के नेता राम सुभाग सिंह बने थे. ये पद 1969 के कांग्रेस विभाजन के बाद अस्तित्व में आया था. विपक्ष के नेता को चुनने का नियम सबसे पहले तत्कालीन अध्यक्ष जी. वी. मावलंकर लेकर आए थे. उसी नियम से आज भी इस पद पर नियुक्ति होती है. उस समय कांग्रेस (0) के राम सुभग सिंह ने इस पद के लिए दावा किया था. संसद के 1977 के एक अधिनियम द्वारा नेता प्रतिपक्ष पद को वैधानिक दर्जा दिया गया. जिसमें कहा गया कि एक विपक्षी दल को अपने नेता यानी नेता प्रतिपक्ष पद के लिए विशेषाधिकार और वेतन का दावा करने के लिए सदन के कम से कम 10वें हिस्से पर अधिकार होना चाहिए. यानी नियम कहता है कि विपक्ष का नेता बनने के लिए सदस्य को ऐसी पार्टी का हिस्सा जरूरी है, जिसके पास कुल लोकसभा सीटों में से 10 प्रतिशत हासिल हो. चूंकि 17वीं लोकसभा में किसी भी विपक्षी पार्टी के पास 10 फीसदी सीटें नहीं थी, इसलिए सदन में कोई भी विपक्ष का नेता नहीं बन सका. मौजूदा वक्त में कांग्रेस के पास 10 फीसदी से ज्यादा सीटें है इसलिए नेता प्रतिपक्ष बन सकता है.
नेता प्रतिपक्ष को वैधानिक दर्जा मिलने में कई साल लग गए
रिपोर्ट्स की मानें तो नेता प्रतिपक्ष को चुनने का नियम तो 1956 में बन गया, लेकिन इस पद को वैधानिक दर्जा मिलने में कई साल लग गए. पहली बार नेता प्रतिपक्ष को ‘Salary and Allowances of Leaders of Opposition in Parliament Act, 1977’ में परिभाषित किया गया था. इस अधिनियम में, संसद के दोनों सदन के विपक्ष के नेता को कुछ इस तरह परिभाषित किया- “विपक्ष के नेता” का अर्थ उस सदन में सरकार के विरोध में सबसे अधिक संख्या बल वाली पार्टी का नेता से है. ऐसे सदस्य को सदन के अध्यक्ष द्वारा मान्यता भी प्राप्त होनी चाहिए. यहां एक सवाल और उठता है कि अगर कोई भी विपक्षी पार्टी 10 फीसदी सीट न ला पाए, तो क्या होगा? दरअसल उस केस में CVC Act 2003 और RTI Act 2005 में ऐसी स्थिति में बताया गया है, जब किसी विपक्षी पार्टी के पास संसद की 10 फीसदी सीट नहीं है. इन दोनों एक्ट के मुताबिक, अगर स्पीकर किसी को भी नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं देता है, तो सेलेक्शन कमेटी में सबसे ज्यादा सीट वाली विपक्ष पार्टी के लीडर को नेता प्रतिपक्ष की जगह शामिल कर लिया जाएगा.
27 जून को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिभाषण
आपको बता दें 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 3 जुलाई तक चलेगा. इस विशेष सत्र के दौरान लोकसभा स्पीकर का चुनाव किया जाएगा. लोकसभा के स्पीकर पद को लेकर सहमति बनाने की जिम्मेदारी राजनाथ सिंह को सौंपी गई है. जिसको लेकर मंथन हो चुका है हालांकि कांग्रेस का कहना है कि अगर उन्हें डिप्टी स्पीकर की पोस्ट नहीं दी गई तो विपक्ष स्पीकर के पद के लिए अपना प्रत्याशी खड़ा कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो ये आजाद भारत में पहली बार होगा. दल बदल कानून के बाद से स्पीकर की भूमिका कई मायने में अहम हो जाती है. नए लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कल यानी 26 जून को होगा. 27 जून को लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिभाषण होगा. वो अगले पांच साल के लिए नई सरकार के रोडमैप की रूपरेखा पेश करेंगी. इसके बाद दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा होगी और संभवतः 2 जुलाई को राज्यसभा और 3 जुलाई को लोकसभा में प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देंगे. इसी दौरान संसद को लीडर ऑफ अपोजिशन भी मिलेगा. ये पद पिछले 10 साल से खाली पड़ा है. आखिरी बार सुषमा स्वराज 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं. सुषमा स्वाराज के बाद अब ये पद राहुल गांधी को मिल सकता है.
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