चुनाव आते ही नेताओं के ही नहीं बल्कि अभिनेताओं के भी अरमान जाग जाते हैं। जहां नेता पार्टी से टिकट मिलने की आस लगाने लगते हैं तो वहीं अभिनेता अपने करियर की ढलती शाम को सुबह में बदलना चाहता है तो कोई इन सेलिब्रिटीज की लोकप्रियता की बदौलत अपनी पार्टी में जीत के आंकड़े बढ़ाना चाहता है। सियासत में सितारों की यही अमूमन कहानी है। लोकसभा चुनाव 2024 का मैदान तैयार है तो फिल्मी सितारों की सेना फिर से सज गई है। सियासी स्क्रीन पर इन फिल्मी सितारों में कोई स्टार है तो कोई बेकार है। सितारे महफिल की शान होते हैं और अपनी चमक बिखेरने के लिए जाने जाते हैं।
कौन सा सितारा इस बार चुनावी मैदान में
कभी नेपोटिज्म और लॉबिंग तो कभी फिल्म इंडस्ट्री में हाशिये पर हिंदुइज्म की मुहिम चलाकर सोशल मीडिया से लेकर न्यूज मीडिया तक सुर्खियों में रहीं सिल्वर स्क्रीन की ‘क्वीन’ और ‘थलैवी’ कंगना रनौत हिमाचल प्रदेश की मंडी से चुनाव लड़ रही हैं जबकि छोटे पर्दे पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की भूमिका निभाकर घर-घर में मशहूर अरुण गोविल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ से ताल ठोक रहे हैं। तो वहीं छोटे मियां और हीरो नंबर वन गोविंदा ने सियासत की दुनिया में घर वापसी कर ली है। कभी राजनीति से तौबा कर चुके गोविंदा फिर से जोश में हैं। फिलहाल सिनेमा तो नहीं कर रहे सोचा चलो सियासी पारी ही हो जाए। कुछ तो रिलीज होना चाहिए। बॉक्स ऑफिस ना सही पब्लिक पिक्चर ही सही। उधर कुछ ऐसे नाम भी हैं जिन्होंने पिछले कुछ सालों से संसद से लेकर सड़क तक खूब चमक बिखेरी हैं। मसलन मथुरा से हेमा मालिनी, दिल्ली नॉर्थ-वेस्ट से मनोज तिवारी, गोरखपुर से रवि किशन तो आसनसोल से बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा जो कभी पटना साहिब से चुनाव लड़े थे।
पर्दे पर हिट सितारे राजनीति की दुनिया में हो गए फ्लॉप
राजनीति के मैदान में फिल्मी सितारों का आना कोई नई बात नहीं। ये सिलसिला छठे-सातवें दशक से जारी है। लेकिन राजनीति से मोहभंग होने की कहानी भी कम नहीं है। फिल्मी पर्दे के महानायक कहे जाने वाले अपने दौर के एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन ने भी बड़े ही जोर शोर से 1984 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद से अपनी सियासी पारी का आगाज किया था लेकिन वास्तविक जिंदगी में जब तमाम तरह के आरोपों से घिरने लगे, तो राजनीति को अलविदा कहते हुए- ऐलान कर दिया- ‘मैं आजाद हूं’। इसी तरह अपने समय के सुपरस्टार राजेश खन्ना, धर्मेंद्र और उनके स्टार बेटे सनी देओल भी राजनीति में आए लेकिन कोई कमाल नहीं दिखा सके। ना संसद में उपस्थिति दिखी और ना ही सार्वजनिक जीवन में एक राजनीतिज्ञ की भूमिका निभाई। जहां धर्मेंद्र ने कहा कि उन्हें राजनीति की एबीसीडी नहीं आती तो सनी देओल ने खुद को राजनीति में अनफिट बताया। हालांकि बतौर सांसद हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा और राज बब्बर जैसे सितारों की भी राजनीति में फुलटाइमर वाली संलग्नता हमेशा बनी रही है. जीतें या हारें, राजनीति से सक्रिय रिश्ता बनाये रखा और लोकतंत्र को मजबूती दी। जया प्रदा ने भी राजनीति और समाज से लंबे समय तक रिश्ता बनाये रखा लेकिन सिल्वर स्क्रीन की ‘उमराव जान’ रेखा बतौर राज्यसभा सांसद सदन से ज्यादातर बार नदारद रहीं।
कई फिल्मी हस्तियों ने संसद के अंदर और बाहर सक्रियता बनाए रखी
वहीं इतिहास के पन्ने पलटें तो कई फिल्मी हस्तियों ने संसद के अंदर और बाहर सक्रियता बनाए रखी है। बतौर लोकसभा सांसद सुनील दत्त की पारी उत्साह जगाने वाली रही है। करीब डेढ़ दशक से ज्यादा समय तक वो सांसद रहे और जमीन से जुड़े रहने का पूरा प्रयास किया, जिसकी सराहना की जाती है। सुनील दत्त मुंबई में बतौर जनप्रतिनिधि स्लम बस्तियों में जाकर सुधार के काम कर चुके थे तो पंजाब में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए मुंबई से अमृतसर तक की पदयात्रा की थी। वहीं राज्यसभा सांसद के तौर पर शायर, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर का योगदान बहुत सराहनीय रहा है। उन्होंने कॉपीराइट संशोधन कानून के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। उन्होंने मुहिम चलाकर फिल्म जगत के तमाम गीतकारों और संगीतकारों के अधिकार की रक्षा करने वाला कानून में संशोधन करवाया, जिसकी लोग प्रशंसा करते हैं। राज्यसभा में कभी पृथ्वीराज कपूर भी कला और सिनेमा से जुड़े मुद्दे उठाते थे तो आज भी जया बच्चन ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बुलंद आवाज के लिए जानी जाती हैं।
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