आज हर कोई राजनीति के अखाड़े में उतरने को तैयार है। किसी के पुरखों की विरासत है राजनीति, तो कोई रुतबे और रुआब के लिए इस क्षेत्र को चुनता है लेकिन वहीं अब राजनीति के अखाड़े में खुद को आजमाने के लिए न्यायाधीशों ने भी कमर कस ली है। दरअसल कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और इस बात का ऐलान किया है कि वे 7 मार्च को बीजेपी ज्वॉइन कर रहे हैं। हालांकि वह लोकसभा चुनाव किस सीट से लड़ेंगे इसकी जानकारी अभी तक नहीं दी गई है। आपको बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है जब एक जज ने राजनीति की राह चुनी है।
केएस हेगड़े ने अपनी राजनीतिक पारी के लिए कांग्रेस का दामन थामा
साल 1947 से 1957 तक सरकारी वकील लोक अभियोजक रहने के बाद केएस हेगड़े राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने के लिए कांग्रेस का दामन थामा। 1952 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। खास बात ये रही है कि राज्यसभा सदस्य रहते हुए उन्हें मैसूर हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें दिल्ली, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। 30 अप्रैल 1973 को उन्होंने अपने पद से इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उनके जूनियर को मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। 1973 में इस्तीफे के बाद जनता पार्टी के टिकट पर दक्षिण बेंगलुरू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता। 20 जुलाई 1977 तक वो सांसद रहे और 21 जुलाई 1997 को उन्हें लोकसभा अध्यक्ष चुना गया।
बहरूल इस्लाम आजादी के बाद से कांग्रेस के नेता रहे
असम के बहरूल इस्लाम आजादी के बाद से कांग्रेस के नेता रहे। वे 1962 और 1968 में कांग्रेस के टिकट से राज्यसभा पहुंचे मगर दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा देकर गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज बन गए। वहीं 1 मार्च 1980 को रिटायरमेंट के बाद 4 दिसम्बर 1980 को इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें SC में जज बनाया गया । वहीं 1982 में SC की एक बेंच ने बिहार के अर्बन कोऑपरेटिव घोटाले पर फैसला सुनाते हुए कांग्रेस नेता जगन्नाथ मिश्रा को आरोपों से बरी कर दिया। उस बेंच में बहरूल इस्लाम भी थे। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफा दिया और कांग्रेस ने इनको अपना उम्मीदवार घोषित किया। हालांकि असम में विरोध-प्रदर्शन और आंदोलनों के कारण चुनाव नहीं हुए लेकिन पार्टी इन्हें भूली नहीं और 1983 में तीसरी बार राज्यसभा सांसद बनाया।
रंगनाथ मिश्रा 1990 से 1991 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे
SC में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की नियुक्ति 1983 में हुई, लेकिन 1990 में मुख्य न्यायाधीश बने। 1984 में तत्कालीन PM इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख दंगे भड़के। इन दंगों की जांच के लिए राजीव गांधी सरकार ने रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट 1986 में पेश कर कांग्रेस को क्लीन चिट दी। हालांकि बाद में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार सहित कई नेताओं को दोषी मानकर सजा सुनाई गई। रिटायरमेंट के बाद रंगनाथ मिश्रा कांग्रेस ज्वॉइन कर राज्यसभा पहुंचे और 1998 से 2004 तक सांसद रहे। मिश्रा 25 सितंबर 1990 से 24 नवंबर 1991 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे।
अन्य न्यायाधीश जिन्होंने राजनीति में आजमाई किस्मत
देश के 11वें CJI हिदायतुल्ला 25 फरवरी 1968 से 16 दिसंबर 1970 तक मुख्य न्यायाधीश रहे। इसके बाद 31 अगस्त 1979 से 30 अगस्त 1984 तक उप-राष्ट्रपति रहे। 20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969 तक इन्होंने देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर जिम्मेदारी संभाली। वहीं सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला जज एम फातिमा बीबी को रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस सरकार ने तमिलनाडु का राज्यपाल नियुक्त किया था। जस्टिस फातिमा बीबी 25 जनवरी 1997 से 3 जुलाई 2001 तक तमिलनाडु की राज्यपाल रहीं। साल 2014 मोदी सरकार ने पूर्व CJI पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था। उनकी नियुक्ति पर बवाल भी हुआ था। मार्च 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। हालांकि रंजन गोगोई का राज्यसभा आना चौंकाने वाला था।
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