चुनावी बॉन्ड स्कीम ! आप भी सोच रहे होंगे कि अब ये क्या बला है, अरे रुकिये जरा हम आपको सब कुछ बतायेंगे और विस्तार से, लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि इन बॉन्ड को लेकर SC ने क्या फैसला सुनाया है. दरअसल लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स यानी चुनावी बॉन्ड योजना पर SC ने अवैध करार देते हुए रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा है "कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और वोटर्स को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है. नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है।" कोर्ट ने माना है कि गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. इस पर CJI ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस बॉन्ड के अलावा भी काले धन को रोकने के दूसरे तरीके हैं. बॉन्ड की गोपनीयता 'जानने के अधिकार' के खिलाफ है। साथ ही कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए.
आखिर है क्या चुनावी बॉन्ड ?
चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी SBI की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है. चुनावी बॉन्ड को ऐसा कोई भी दाता खरीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है और जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं. बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है. ये बॉन्ड SBI की 29 शाखाओं को जारी करने और भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था, और ये बॉन्ड 1,000 रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं. ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं. चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते थे.
कब और क्यों चुनावी बॉन्ड जारी किया गया?
2017 में केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया. संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया. इसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा मिलता है. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे. इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में या वेबसाइट से भी ऑनलाइन इसे खरीद सकता था.
चुनावी बॉन्ड योजना पर क्यों छिड़ा विवाद?
बॉन्ड को लेकर कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स समेत 4 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि चुनावी बॉन्ड के जरिए गुपचुप फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित करती है और यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन है. उनका कहना था कि इसमें शेल कंपनियों की तरफ से भी दान की अनुमति दे दी गई है. चुनावी बॉन्ड पर सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर को शुरू हुई थी,. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने की.
आज हर कोई राजनीति के अखाड़े में उतरने को तैयार है। किसी के पुरखों की विरासत है राजनीति, तो कोई रुतबे और रुआब के लिए इस क्षेत्र को चुनता है लेकिन वहीं अब राजनीति के अखाड़े में खुद को आजमाने के लिए न्यायाधीशों ने भी कमर कस ली है। दरअसल कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और इस बात का ऐलान किया है कि वे 7 मार्च को बीजेपी ज्वॉइन कर रहे हैं। हालांकि वह लोकसभा चुनाव किस सीट से लड़ेंगे इसकी जानकारी अभी तक नहीं दी गई है। आपको बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है जब एक जज ने राजनीति की राह चुनी है।
केएस हेगड़े ने अपनी राजनीतिक पारी के लिए कांग्रेस का दामन थामा
साल 1947 से 1957 तक सरकारी वकील लोक अभियोजक रहने के बाद केएस हेगड़े राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने के लिए कांग्रेस का दामन थामा। 1952 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। खास बात ये रही है कि राज्यसभा सदस्य रहते हुए उन्हें मैसूर हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें दिल्ली, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। 30 अप्रैल 1973 को उन्होंने अपने पद से इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उनके जूनियर को मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। 1973 में इस्तीफे के बाद जनता पार्टी के टिकट पर दक्षिण बेंगलुरू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता। 20 जुलाई 1977 तक वो सांसद रहे और 21 जुलाई 1997 को उन्हें लोकसभा अध्यक्ष चुना गया।
बहरूल इस्लाम आजादी के बाद से कांग्रेस के नेता रहे
असम के बहरूल इस्लाम आजादी के बाद से कांग्रेस के नेता रहे। वे 1962 और 1968 में कांग्रेस के टिकट से राज्यसभा पहुंचे मगर दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा देकर गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज बन गए। वहीं 1 मार्च 1980 को रिटायरमेंट के बाद 4 दिसम्बर 1980 को इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें SC में जज बनाया गया । वहीं 1982 में SC की एक बेंच ने बिहार के अर्बन कोऑपरेटिव घोटाले पर फैसला सुनाते हुए कांग्रेस नेता जगन्नाथ मिश्रा को आरोपों से बरी कर दिया। उस बेंच में बहरूल इस्लाम भी थे। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफा दिया और कांग्रेस ने इनको अपना उम्मीदवार घोषित किया। हालांकि असम में विरोध-प्रदर्शन और आंदोलनों के कारण चुनाव नहीं हुए लेकिन पार्टी इन्हें भूली नहीं और 1983 में तीसरी बार राज्यसभा सांसद बनाया।
रंगनाथ मिश्रा 1990 से 1991 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे
SC में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की नियुक्ति 1983 में हुई, लेकिन 1990 में मुख्य न्यायाधीश बने। 1984 में तत्कालीन PM इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख दंगे भड़के। इन दंगों की जांच के लिए राजीव गांधी सरकार ने रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट 1986 में पेश कर कांग्रेस को क्लीन चिट दी। हालांकि बाद में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार सहित कई नेताओं को दोषी मानकर सजा सुनाई गई। रिटायरमेंट के बाद रंगनाथ मिश्रा कांग्रेस ज्वॉइन कर राज्यसभा पहुंचे और 1998 से 2004 तक सांसद रहे। मिश्रा 25 सितंबर 1990 से 24 नवंबर 1991 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे।
अन्य न्यायाधीश जिन्होंने राजनीति में आजमाई किस्मत
देश के 11वें CJI हिदायतुल्ला 25 फरवरी 1968 से 16 दिसंबर 1970 तक मुख्य न्यायाधीश रहे। इसके बाद 31 अगस्त 1979 से 30 अगस्त 1984 तक उप-राष्ट्रपति रहे। 20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969 तक इन्होंने देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर जिम्मेदारी संभाली। वहीं सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला जज एम फातिमा बीबी को रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस सरकार ने तमिलनाडु का राज्यपाल नियुक्त किया था। जस्टिस फातिमा बीबी 25 जनवरी 1997 से 3 जुलाई 2001 तक तमिलनाडु की राज्यपाल रहीं। साल 2014 मोदी सरकार ने पूर्व CJI पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था। उनकी नियुक्ति पर बवाल भी हुआ था। मार्च 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। हालांकि रंजन गोगोई का राज्यसभा आना चौंकाने वाला था।
New Delhi: देश के जाने-माने 500 से अधिक वकीलों ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र भेजा है। पत्र लिखने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से लेकर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा सहित कई बड़े वकील हैं। वकीलों ने पत्र में न्यापालिका की अखंडता पर खतरे को लेकर चिंता जताई है। वकीलों का कहना है कि कुछ 'खास समूह' न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।
न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश
पत्र में कहा गया है कि कुछ समूह राजनीतिक एजेडों के साथ आधारहीन आरोप लगा रहे हैं। न्यायपालिका की छवि के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में घिरे राजनीतिक चेहरों से जुड़े केसों में यह हथकंडे जाहिर तौर पर दिखते हैं। ऐसे मामलों में अदालती फैसलों को प्रभावित करने और न्यायपालिका को बदनाम करने के प्रयास सबसे अधिक हो रहे हैं। पत्र में लिखा है कि खास समूह कथित तौर पर झूठी कहानी बनाकर न्यायपालिका के कामकाज की गलत छवि पेश करना चाहते हैं। न्यायिक फैसलों को प्रभावित किया जा सके और न्यापालिका पर जनता के विश्वास को डिगाया जा सके।
चुनावों का दौर है और ऐसे में किसी राजनेता के खिलाफ कोई मुकदमा हो जाए तो मुश्किलें तो बढ़ेंगी ही। ऐसा ही कुछ हुआ है अभिनेता और भाजपा के गोरखपुर सांसद रवि किशन के साथ भी। दरअसल रवि किशन इस बार अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में हैं। दरअसल कुछ दिन पहले अपर्णा ठाकुर नाम की महिला ने लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि उसने रवि किशन से 28 साल पहले शादी की थी और दोनों की एक बेटी है जिसका नाम शिनोवा है। मां-बेटी का कहना है कि रवि किशन उनके साथ हमेशा से संपर्क में रहे हैं और उनका घर पर भी आना जाना रहा है, लेकिन वह जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते।
अपर्णा उनके परिवार को ब्लैकमेल कर रही- प्रीति
जिसके बाद अब अपर्णा ठाकुर चाहती है कि रवि किशन शिनोवा को सबके सामने बेटी स्वीकार करें। हालांकि अभिनेता की ओर से इसपर कोई रिएक्शन नहीं आया है, लेकिन उनकी पत्नी प्रीति किशन ने अपर्णा और उसकी बेटी के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज कराया है। प्रीति का दावा है कि अपर्णा उनके परिवार को ब्लैकमेल कर रही है। वह 20 करोड़ की मांग कर रही थी, जो पूरी न होने पर उसने प्रेस कॉन्फ्रेंस में रवि किशन को लेकर झूठे दावे किए हैं। जहां एक तरफ रवि किशन की पत्नी अपर्णा और उसकी बेटी के दावों को झुठला रही है, वहीं मां-बेटी इसे साबित करने के लिए डीएनए टेस्ट करवाने के लिए भी तैयार हैं। इसके लिए शिनोवा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
बेटी को इंसाफ दिलाना चाहती हैं अपर्णा
वहीं दूसरी ओर अपर्णा सोनी का कहना है कि'मैंने रवि किशन से किसी भी प्रकार के जबरन वसूली की मांग नहीं की है। मैं बस अपनी बेटी शिनोवा को इंसाफ दिलाना चाहती हूं'। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अपर्णा सोनी को चुप करवाने के लिए उनपर यह एफआईआर दर्ज करवाया गया है। यह एफआईआर कुछ और नहीं बल्कि प्रतिशोध की भावना से प्रेरित है।
अदालत के कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनके फैसलों में देरी जरूर होती है. मगर जब इंसाफ होता है तो पीड़ित को काफी सुकून और राहत मिलता है. भले ही वो इस गम से सारी जिंदगी ना उबर पाए. ऐसा ही एक मामला दिल्ली से सटे नोएडा का है. जहां एक रेप पीड़िता को तीन साल की कड़ी मशक्कत और दर-दर की ठोंकरें खाने के बाद इंसाफ मिला है. दरअसल नाबालिग छात्रा का अपहरण करके रेप करने के दोषी को कोर्ट ने 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है. इसके साथ ही 30 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. दोषी ने साल 2021 में इस वारदात को अंजाम दिया था.
2021 में हुई थी वारदात
गौतम बुद्ध नगर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विकास नागर ने आरोपी प्रशांत कुमार को भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (अवैध संभोग के लिए किसी महिला का अपहरण करना) और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 (यौन उत्पीड़न) के तहत दोषी ठहराया था. इसके बाद सजा का ऐलान किया गया है. जानकारी के मुताबिक, पीड़िता के पिता की दुकान के पास ही प्रशांत कुमार एक कपड़े की दुकान में काम करता था. इस वजह से दोनों के बीच पहले से जान पहचान थी. उस वक्त पीड़िता की उम्र 14 वर्ष थी और वो कक्षा 9 की छात्रा थी. एक दिन प्रशांत उसे बहला-फुसलाकर अपने साथ भगा ले गया. इसके बाद पीड़िता के पिता ने एक्सप्रेसवे पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने प्रशांत कुमार को गिरफ्तार कर लिया.
आरोपी पर रहम की दलील को कोर्ट ने किया खारिज
वहीं कोर्ट में आरोपी की ओर से दलील देते हुए अधिवक्ता धर्मेंद्र पाल सिंह ने कोर्ट में कहा कि वो अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला है. उसका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है. ऐसे में उसे कम से कम सजा दी जाए. इस पर विशेष लोक अभियोजक जय प्रकाश भाटी ने कहा कि दोषी ने बहुत गंभीर अपराध किया है. इसलिए कोर्ट की ओर से उसे कोई नरमी नहीं मिलनी चाहिए. दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद न्यायाधीश विकास नागर ने प्रशांत कुमार को दोषी ठहरा दिया.
आरोपी को मिला 10 साल का कठोर कारावास
इस मामले में आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) भी लगाई गई थी, लेकिन पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत समान सजा का प्रावधान होने की वजह से कोर्ट ने एक ही धारा के तहत सजा सुनाई है. इस तरह प्रशांत कुमार को पॉक्सो अधिनियम के तहत 10 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई. इसके साथ ही 20 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है. जुर्माना अदा न करने की स्थिति में छह महीने का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "दोषी को आईपीसी की धारा 366 के तहत 3 साल की कठोर कारावास और 10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई जाती है.'' इसके जुर्माना अदा न करने पर दोषी को एक महीने का अतिरिक्त साधारण कारावास भुगतना होगा. खंडपीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान द्वारा जेल में बिताई गई अवधि को उसे दी गई मूल सजाओं में समायोजित किया जाएगा. दोनों अपराध एक ही क्रम में किए गए हैं, इसलिए सजाएं साथ चलेंगी.
आज के जमाने में भी ना जाने कितने लोग ऐसे है. जो खुद के साथ बड़ी से बड़ी घटना होने पर भी पुलिस की मदद नहीं लेते. यहां तक कि किसी बड़ी घटना का चश्मदीद गवाह होने के बाद भी गवाही देने से कतराते हैं. आप कहेंगे ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए है क्योंकि आज भी लोग सोचते हैं कि कहीं किसी का भला करने पहुंचे और पुलिस ने उन्हें ही पकड़ लिया तो क्या होगा. इससे अच्छा दूर ही रहो. दरअसल तमिलनाडु के चेन्नई में ऐसा ही एक मामला सामने आया है. जहां एक महिला पुलिस के पास छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज कराने थाने गई थी. महिला का कहना था कि ऑटोरिक्शा वाले उसके साथ छेड़छाड़ कर रहे थे लेकिन पुलिस ने शिकायत दर्ज नहीं की. पुलिस ने उल्टा उसे ही वेश्यावृत्ति के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. यह मामला सामने आने के बाद तमिलनाडु राज्य महिला आयोग ने कार्रवाई की सिफारिश की है. आयोग ने दो पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच की मांग की है.
राज्य महिला आयोग ने पुलिस कमिश्नर तमबरम को लिखा पत्र
मिली जानकारी के अनुसार तमिलनाडु राज्य महिला आयोग ने पुलिस कमिश्नर तमबरम को एक पत्र लिखा है. पुलिस कमिश्नर तमबरम को लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि उतिरामेरूर की रहने वाली एक महिला ने आयोग से शिकायत कर बताया कि उसने 9 अगस्त 2023 को तमबरम पुलिस स्टेशन में फोन कर छेड़छाड़ की शिकायत की गई थी. अगले दिन 10 अगस्त 2023 को वह खुद पुलिस स्टेशन गईं. महिला ने आयोग को बताया कि थाने में पुलिस ने उसका केस दर्ज नहीं किया. पुलिस ने उसका फोटो मोबाइल से खींच लिया. जब विरोध किया तो एक पुलिस अधिकारी ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया. विरोध करने पर सब-इंस्पेक्टर ने झूठे आरोप में गिरफ्तार करने की धमकी दी. इसके बाद झूठे आरोप में अरेस्ट कर लिया गया और पांच महीने तक न्यायिक हिरासत में रखा गया.
मामले में राज्य महिला आयोग ने सख्त कार्रवाई की मांग की
मामले को लेकर महिला ने आयोग से कहा कि पुलिस ने उसके खिलाफ वेश्यावृत्ति के आरोपों के तहत केस दर्ज किया था. इस मामले में राज्य महिला आयोग ने हस्तक्षेप करते हुए पाया कि महिला की गिरफ्तारी के दौरान जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. राज्य महिला आयोग ने इंस्पेक्टर चार्ल्स और सब-इंस्पेक्टर दुर्गा के खिलाफ विभागीय जांच की सिफारिश की है. इसी के साथ आयोग ने महिला को मुआवजा देने की भी अनुशंसा की है. इस पूरे मामले में राज्य महिला आयोग ने सख्त कार्रवाई की मांग की है.
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