आज हर कोई राजनीति के अखाड़े में उतरने को तैयार है। किसी के पुरखों की विरासत है राजनीति, तो कोई रुतबे और रुआब के लिए इस क्षेत्र को चुनता है लेकिन वहीं अब राजनीति के अखाड़े में खुद को आजमाने के लिए न्यायाधीशों ने भी कमर कस ली है। दरअसल कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और इस बात का ऐलान किया है कि वे 7 मार्च को बीजेपी ज्वॉइन कर रहे हैं। हालांकि वह लोकसभा चुनाव किस सीट से लड़ेंगे इसकी जानकारी अभी तक नहीं दी गई है। आपको बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है जब एक जज ने राजनीति की राह चुनी है।
केएस हेगड़े ने अपनी राजनीतिक पारी के लिए कांग्रेस का दामन थामा
साल 1947 से 1957 तक सरकारी वकील लोक अभियोजक रहने के बाद केएस हेगड़े राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने के लिए कांग्रेस का दामन थामा। 1952 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। खास बात ये रही है कि राज्यसभा सदस्य रहते हुए उन्हें मैसूर हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें दिल्ली, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। 30 अप्रैल 1973 को उन्होंने अपने पद से इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उनके जूनियर को मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। 1973 में इस्तीफे के बाद जनता पार्टी के टिकट पर दक्षिण बेंगलुरू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता। 20 जुलाई 1977 तक वो सांसद रहे और 21 जुलाई 1997 को उन्हें लोकसभा अध्यक्ष चुना गया।
बहरूल इस्लाम आजादी के बाद से कांग्रेस के नेता रहे
असम के बहरूल इस्लाम आजादी के बाद से कांग्रेस के नेता रहे। वे 1962 और 1968 में कांग्रेस के टिकट से राज्यसभा पहुंचे मगर दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा देकर गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज बन गए। वहीं 1 मार्च 1980 को रिटायरमेंट के बाद 4 दिसम्बर 1980 को इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें SC में जज बनाया गया । वहीं 1982 में SC की एक बेंच ने बिहार के अर्बन कोऑपरेटिव घोटाले पर फैसला सुनाते हुए कांग्रेस नेता जगन्नाथ मिश्रा को आरोपों से बरी कर दिया। उस बेंच में बहरूल इस्लाम भी थे। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट ने इस्तीफा दिया और कांग्रेस ने इनको अपना उम्मीदवार घोषित किया। हालांकि असम में विरोध-प्रदर्शन और आंदोलनों के कारण चुनाव नहीं हुए लेकिन पार्टी इन्हें भूली नहीं और 1983 में तीसरी बार राज्यसभा सांसद बनाया।
रंगनाथ मिश्रा 1990 से 1991 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे
SC में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की नियुक्ति 1983 में हुई, लेकिन 1990 में मुख्य न्यायाधीश बने। 1984 में तत्कालीन PM इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख दंगे भड़के। इन दंगों की जांच के लिए राजीव गांधी सरकार ने रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट 1986 में पेश कर कांग्रेस को क्लीन चिट दी। हालांकि बाद में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार सहित कई नेताओं को दोषी मानकर सजा सुनाई गई। रिटायरमेंट के बाद रंगनाथ मिश्रा कांग्रेस ज्वॉइन कर राज्यसभा पहुंचे और 1998 से 2004 तक सांसद रहे। मिश्रा 25 सितंबर 1990 से 24 नवंबर 1991 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे।
अन्य न्यायाधीश जिन्होंने राजनीति में आजमाई किस्मत
देश के 11वें CJI हिदायतुल्ला 25 फरवरी 1968 से 16 दिसंबर 1970 तक मुख्य न्यायाधीश रहे। इसके बाद 31 अगस्त 1979 से 30 अगस्त 1984 तक उप-राष्ट्रपति रहे। 20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969 तक इन्होंने देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर जिम्मेदारी संभाली। वहीं सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला जज एम फातिमा बीबी को रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस सरकार ने तमिलनाडु का राज्यपाल नियुक्त किया था। जस्टिस फातिमा बीबी 25 जनवरी 1997 से 3 जुलाई 2001 तक तमिलनाडु की राज्यपाल रहीं। साल 2014 मोदी सरकार ने पूर्व CJI पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था। उनकी नियुक्ति पर बवाल भी हुआ था। मार्च 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। हालांकि रंजन गोगोई का राज्यसभा आना चौंकाने वाला था।
New Delhi: देश के जाने-माने 500 से अधिक वकीलों ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र भेजा है। पत्र लिखने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से लेकर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा सहित कई बड़े वकील हैं। वकीलों ने पत्र में न्यापालिका की अखंडता पर खतरे को लेकर चिंता जताई है। वकीलों का कहना है कि कुछ 'खास समूह' न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।
न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश
पत्र में कहा गया है कि कुछ समूह राजनीतिक एजेडों के साथ आधारहीन आरोप लगा रहे हैं। न्यायपालिका की छवि के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में घिरे राजनीतिक चेहरों से जुड़े केसों में यह हथकंडे जाहिर तौर पर दिखते हैं। ऐसे मामलों में अदालती फैसलों को प्रभावित करने और न्यायपालिका को बदनाम करने के प्रयास सबसे अधिक हो रहे हैं। पत्र में लिखा है कि खास समूह कथित तौर पर झूठी कहानी बनाकर न्यायपालिका के कामकाज की गलत छवि पेश करना चाहते हैं। न्यायिक फैसलों को प्रभावित किया जा सके और न्यापालिका पर जनता के विश्वास को डिगाया जा सके।
ग्रेटर नोएडा के जीएल बजाज एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस में "राइट टू एक्सीलेंस" एजुकेशन समिट-2024 का आयोजन किया गया। समिट में पूर्व आईएएस और यूपी सीएम के सलाहकार अवनीश अवस्थी, इग्नू के वीसी नागेश्वर राव, नीति आयोग की निदेशक उर्वशी प्रसाद, बॉलीवुड अभिनेता विक्रांत मैसी और प्रतिष्ठित उद्योगपति श्रीकांत बोला, दिव्या गंडोत्रा टंडन, डॉ एम शशिकुमार, डॉ प्रतापसिंह देसाई, संजीव बंजल और श्रुति कपूर ने भाग लिया। इन सभी ने राइट टू एक्सीलेंस एजुकेशन समिट में उन प्रमुख योजनाओं को उजागर किया। जिनसे शिक्षा और रोजगार के बीच के अंतर को भरा जा सकें और सुनिश्चित किया जा सके कि युवा सही कौशल के साथ आगे बढ़कर रोजगार पा सकें और समझें कि वे भारत में शिक्षा और रोजगार के भविष्य को कैसे आकार दे रहे हैं। इस दौरान प्रश्नोत्तर सत्र में छात्रों के पूछे गए सवालों का सभी ने बड़ी उत्सुकता से जवाब दिये।
स्टार्टअप शुरू करना है तो सरकार करेगी मदद- सीएम सलाहकार
मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश अवस्थी ने शिखर सम्मेलन में बोलते हुए समावेशी और न्यायसंगत शिक्षा को बढ़ावा देने में सरकारी नीतियों और संस्थागत ढांचों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने समावेशी और न्यायसंगत शिक्षा के कार्यान्वयन में बाधा डालने वाली चुनौतियों पर चर्चा की और इस सवाल का जवाब दिया कि भारत में शिक्षा की गुणवत्ता बाज़ार के पीछे क्यों चली गई है। मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश अवस्थी ने कहा कि प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा के "छात्रों के नामांकन में 2018 में 44% से 2022 में 59% तक 18% की उछाल आई है। उत्तर प्रदेश में कक्षा 6 स्कूल प्रणाली में पूरे भारत में सबसे ज़्यादा नामांकन हुआ है। प्राथमिक स्कूली शिक्षा विकास की नींव रखती है। इसलिये शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों के दौरान एक मजबूत आधार प्रदान करने के महत्व पर बल दिया, क्योंकि यह भविष्य में सीखने और विकास के लिए आधार तैयार करता है। उत्तर-प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों में लगभग 2 करोड़ छात्र है जो सरकार की मुख्य प्राथमिकता में से एक है। इसीलिए सरकार का प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक पूरा ध्यान है और शिक्षा का स्तर बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए प्रदेश सरकार ने रास्ते पर भीख मांग रहें बच्चों की एक बड़ी संख्या को स्कूल भेजने का प्रावधान किया है। उन्होंने छात्रों से कहा कि अगर आप अपना स्टार्टअप शुरू करना चाहते है तो सरकार पूरी मदद करेगी।
अपना आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास बनाए रखें- विक्रांत मैसी
बॉलीवुड अभिनेता विक्रांत मैसी ने अपनी पहचान और पृष्ठभूमि को गरिमा और गर्व के साथ स्वीकार करने के महत्व पर जोर दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि चाहें आपकी सामाजिक स्थिति या व्यवसाय कुछ भी हो। अपना आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास बनाए रखिये। मायने नहीं रखता है कि आप कौन हैं और कहाँ से आए हैं बस अपनी जड़ों और विरासत को सम्मान के साथ अपनाएं और खुद को गर्व के साथ आगे बढ़ाएं।
"लीडर के रूप में दूसरों की मदद करने से खुद को ही मिलता लाभ"
प्रतिष्ठित उद्योगपति श्रीकांत बोला ने समिट में कहा कि एक लीडर के रूप में दूसरों की मदद करने से अंततः खुद को ही लाभ होता है। बाधाओं के खिलाफ खड़े होने और व्यक्तिगत विकास, समुदाय और व्यावसायिक सफलता के लिए संघर्ष करने के लिए चुनौतियों का सामना करना आवश्यक है। उद्यमिता की तुलना एक आध्यात्मिक यात्रा से की जाती है, जिसमें कड़ी मेहनत, जोखिम उठाने और अद्वितीय मानसिकता और समर्पण की आवश्यकता के कारण अलगाव की भावना शामिल होती है। अंत में उन्होंने नेतृत्व, व्यक्तिगत विकास और उद्यमिता के परस्पर संबंध पर जोर देते हुए दृढ़ता, निस्वार्थता और उद्यमशीलता की खोज की एकान्त प्रकृति को समझने के महत्व पर प्रकाश डाला।
"छात्र आत्म-देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा ना करें"
जीएल बजाज शिक्षण संस्थान के सीईओ कार्तिकेय अग्रवाल ने समिट में सुझाव दिया कि छात्रों को अपनी अकादमिक पढ़ाई के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव भी लेना चाहिए। उन्होंने कहा किसी प्रसिद्ध कंपनी में इंटर्नशिप करने से पेशेवर दुनिया का अच्छा अनुभव मिल सकता है। उन्होंने छात्रों से कॉलेज की गतिविधियों में भाग लेने, मेंटर से जुड़ने और मौजूदा कौशल से अपडेट रहने पर जोर दिया और समय प्रबंधन, मल्टीटास्किंग एवं तनाव प्रबंधन जैसे आवश्यक कौशल विकसित करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कौशल की कमी को कम करने के लिए समय प्रबंधन, मल्टीटास्किंग और तनाव प्रबंधन महत्वपूर्ण हैं। छात्र आत्म-देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा ना करें। कार्तिकेय अग्रवाल ने सफलता के लिए छात्रों को एक महत्वपूर्ण सलाह देते हुए कहा अपनी इंटर्नशिप और नौकरी को एक करीबी रिश्ते की तरह ही गंभीरता से लें। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सफलता के लिए समर्पण और जुनून की आवश्यकता होती है। वहीं संस्थान के चेयरमैन पंकज अग्रवाल ने अथितियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया और कहा कि इस एजुकेशन समिट से हमारे छात्रों और शिक्षकों को शिक्षा और इसके विभिन्न क्षेत्रों की अमूल्य समझ हासिल करने का एक अनूठा अवसर मिला।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की न्यायिक हिरासत 3 जुलाई तक बढ़ा दी गई है। अरविंद केजरीवाल को ईडी ने कथित आबकारी मामले में गिरफ्तार किया था, जिसके बाद अब राउज एवेन्यू कोर्ट ने उनकी न्यायिक हिरासत 3 जुलाई तक बढ़ा दी है। सीएम केजरीवाल देश में लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर 1 जून तक अंतरिम जमानत पर बाहर आए थे, जिसके बाद उन्हें फिर जेल जाना पड़ा था। अरविंद केजरीवाल की न्यायिक हिरासत आज बुधवार को खत्म हो रही थी। राउज एवेन्यू कोर्ट ने उनकी हिरासत बढ़ा दी है, जिसके बाद वह अब 3 जुलाई तक जेल में ही रहेंगे।
‘अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के लिए फंड मांगा’
कोर्ट में ईडी की तरफ से पेश ASG एसवी राजू ने कहा कि अरविंद केजरीवाल को CBI मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया है, यह ED का मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इसकी जरूरत नहीं है। ASG ने एक फैसला पढ़ते हुए कहा कि अनुसूचित अपराध में आरोपी होने की जरूरत नहीं है। वह अभी भी PMLA के तहत आरोपी हो सकता है। CBI का मामला है कि अरविंद केजरीवाल ने रिश्वत मांगी, उन्होंने 100 करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी। ASG ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के लिए फंड मांगा।
अंतरिम जमानत को लेकर कही ये बात
ASG ने सीएम केजरीवाल की अंतरिम जमानत को लेकर भी अपना पक्ष रखा। ASG ने कहा कि ‘उन्होंने कहा कि आपने मुझे इसलिए गिरफ़्तार किया, क्योंकि आप नहीं चाहते थे कि मैं चुनाव में हिस्सा लूं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का ध्यान रखा है। ASG ने अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया और कहा कि सरेंडर की अवधि नहीं बढ़ाई गई है। कृपया शर्तों पर गौर करें। यह आदेश केवल उन्हें चुनाव प्रचार करने की अनुमति देने के लिए था। केजरीवाल अंतरिम जमानत को आगे बढ़ाना चाहते थे, लेकिन उनकी जमानत खारिज कर दी गई। केजरीवाल को पता था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वरूप अलग था, इसलिए उन्होंने मेडिकल आधार पर याचिका दायर की, उस आदेश को चुनौती नहीं दी गई है। यह कोई नियमित अंतरिम जमानत नहीं थी, यह केवल चुनावों के लिए दी गई थी। अरविंद केजरीवाल के वकील विवेक जैन ने कहा कि हमने मामले की मेरिट के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कभी भरोसा नहीं किया।
दिल्ली आबकारी नीति मामले में सीएम अरविंद केजरीवाल को करारा झटका लगा है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने सीएम अरविंद केजरीवाल की न्यायिक हिरासत 3 जुलाई तक के लिए बढ़ा दी है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर बुधवार को कोर्ट में सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। सीएम की तरफ से वरिष्ठ वकील विक्रम चौधरी ने दलील पेश की। अब गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। इसके साथ ही आबकारी नीति मामले में आरोपी विनोद चौहान की हिरासत में भी बढ़ा दी गई है। दोनों की हिरासत की अवधि समाप्त होने पर उन्हें बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश किया गया था। सुनवाई के दौरान जज न्याय बिंदू ने कहा कि मैं फैसला सुरक्षित नहीं रखूंगी। हर कोई जानता है कि यह एक हाई-प्रोफाइल मामला है। मैं सुनवाई के बाद आदेश पारित करूंगी। मैं आदेश सुरक्षित नहीं रखूंगी।
कोर्ट में केजरीवाल ने कुछ भी कहने से किया इंकार
लाइव लॉ के मुताबिक केजरीवाल की ओर से वरिष्ठ वकील विवेक जैन पेश हुए। कोर्ट ने सीएम केजरीवाल से पूछा कि क्या वह कुछ कहना चाहते हैं। इस पर सीएम केजरीवाल ने कहा, ''मैं कुछ नहीं कहना चाहता। मेरे वकील मौजूद हैं।'' इसके बाद उनके वकील विवेक जैन ने कहा, ''न्यायिक हिरासत को न्यायोचित ठहराने जैसा कुछ नहीं है। हम न्यायिक हिरासत का विरोध करते हैं। गिरफ्तारी को पहले ही चुनौती दी गई है। यह सुप्रीम कोर्ट के सामने विचाराधीन है।''
केजरीवाल की न्यायिक हिरासत 3 जुलाई तक बढ़ी
जज ने सीएम केजरीवाल की न्यायिक हिरासत 3 जुलाई तक के लिए बढ़ा दी है। न्यायिक हिरासत पर सुनवाई के दौरान सीएम केजरीवाल को तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया। सुनवाई के दौरान केजरीवाल की ओर से पेश वकील ने उनकी न्यायिक हिरासत बढ़ाने की ईडी की अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि उनकी हिरासत बढ़ाने का कोई आधार नहीं है। आपको बता दें कि दिल्ली आबकारी नीति मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी ने सीएम केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया था। उन्होंने इस गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसी दौरान शीर्ष अदालत ने 10 मई को 21 दिनों के लिए लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी। इसके बाद उन्होंने दो जून को तिहाड़ जेल में सरेंडर किया। गिरफ्तारी को चुनौती के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला रिजर्व है।
एक जुलाई से भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू होगा। पुराने तीन कानूनों में बदलाव से आम आदमी को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अब वह कहीं से भी एफआईआर दर्ज करा सकेंगे। बनारस बार एसोसिएशन के पूर्व महामंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि तीन नए कानून लागू होने के बाद मुकदमों को वापस लेना आसान नहीं होगा। अदालत में लंबित आपराधिक मुकदमे को वापस लेने के लिए पीड़ित को कोर्ट में अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा।
पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना मुकदमा वापस लेने की सहमति अदालत नहीं देगी। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जैसे कि वीडियो और फोटो इत्यादि को नए कानून में जगह दी गई है। मारपीट की छोटी घटनाओं, गालीगलौज या छोटे अपराध में जमानत टूटने के मामले में वारंटी को हथकड़ी लगाए बगैर पुलिस थाने ले जाएगी। शर्त यह रहेगी कि आरोपी का पुराना आपराधिक इतिहास न हो। इसी तरह से आपराधिक मुकदमों में अब तारीख पर तारीख वाला हिसाब-किताब नहीं चलेगा। तीन वर्ष में मुकदमे का निस्तारण करने की बाध्यता नए कानून में है।
Noida: गौतमबुद्धनगर पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह द्वारा थाना सेक्टर-39 पर निर्मित प्रभारी निरीक्षक कार्यालय का लोकार्पण किया। इसके साथ ही स्थानीय नागरिकों के साथ संवाद करते हुए उन्हें तीनों नए कानूनों (भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023) के बारे में बताया।
कम समय केस का होगा निपटारा
पुलिस कमिश्नर ने लोगों व विवेचकों को तीनों नये कानूनों के बारे में जानकारी देते महत्वपूर्ण बदलावों व कानूनों से जुड़े तथ्यों के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि तीनों कानूनों में नागरिकों को सुविधा देने के लिए बदलाव किए गये है। जिनमे कई नए महत्वपूर्ण प्रावधान दिये गये है। जिससे कम समय में विवेचनाओं का निष्पक्ष व गुणवक्तापूर्ण निस्तारण किया जाएगा।
डिजिटल साक्ष्य से जल्द मिलेगा न्याय
पुलिस कमिश्नर ने सभी विवेचकों को साक्ष्य संकलन/संग्रहित करने के महत्व के बारे में आवश्यक दिशा-निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि तीनों कानूनों में दिये गये सभी प्रावधानों का पूर्ण रूप से पालन करते हुए विवेचनात्मक कार्रवाई की जाए। डिजिटल/इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के महत्व को समझते हुए विवेचनात्मक कारवाई के दौरान उनका सही तरीके से उपयोग किया जाए, जिससे पीड़ितों को शीघ्र व उचित न्याय दिलाया जा सके। विवेचकों को कानूनों में बदलाव से संबंधित बुकलेट वितरित की गयी। इस मौके पर अपर पुलिस आयुक्त कानून व्यवस्था शिव हरि मीणा, डीसीपी नोएडा रामबदन सिंह, एडीसीपी नोएडा मनीष कुमार मिश्र, एसीपी प्रवीण कुमार सिंह, एसीपी शैव्या गोयल, थाना प्रभारी व कई स्थानीय नागरिक उपस्थित रहे।
पैसे बचाने के तरीके: चाहकर भी नहीं कर पाते हैं धन की बचत, तो ये टिप्स आपके काम की हैं
December 17, 2022