कुछ हफ्ते पहले ही जेडीयू ने बिहार में राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन को तोड़ते हुए बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले ही पाला बदल लिया था. अब कुछ ऐसी ही अटकले यूपी के 'रालोद' (RLD) की आ रही है. 12 फरवरी को एक प्रतिमा अनावरण सामारोह में जब जयंत चौधरी के पहुंचने का कार्यक्रम स्थगित हुआ तब उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में गेहमा-गेहमी बढ़ गई.
Uttar Pradesh: लोकसभा चुनाव शुरू होने में केवल दो महीने रह गए हैं और यूपी में सियासी गरमी सर चढ़कर बोल रही है. ताजा मामला राष्ट्रीय लोक दल के एनडीए में शामिल होने का है. अभी तक खबरें आ रही थी कि यूपी में I.N.D.I अलायंस सीटों का बंटवारा कर एनडीए की जीत को उत्तर प्रदेश में ही रोक देना चाहती है. पहले बातें उठ रही थी कि समाजवादी पार्टी कांग्रेस को 10 सीटें और जयंत चौधरी के रोलोद को भी कुछ सीटें देकर चुनाव लड़ने वाली थी.
कार्यक्रम हुआ रद्द
12 फरवरी को छपरैली में अजीत सिंह की प्रतिमा अनावरण का कार्यक्रम सुनिश्चित था, लेकिन कुछ दिनों पहले ही खबर आई कि जयंत चौधरी इस कार्यक्रम में शिरकत करने नहीं जाएंगे. कहा ये भी जा रहा है कि दिल्ली कांग्रेस भी इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देते हुए जयंत चौधरी से संम्पर्क स्थापित करने की कोशिश कर रही है.
प्रधानमंत्री मोदी का बयान
प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में बयान देते हुए कहा था कि बीजेपी की गठबंधन में एनडीए 400 पार और बीजेपी 370+ सीटों के साथ पूरी बहुमत के साथ सत्ता में वापस लौटेगी. इसी सिलसिले में यूपी के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी चुनाव की तैयारियां करते हुए कार्यकरताओं को बूथ लेवल पर जाकर मेहनत करने और बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने की बात कही.
राष्ट्रीय लोक दल की चुप्पी - एनडीए का बयान
जयंत चौधरी और उनकी पार्टी ने फिलहाल पूरे मामले में चुप्पी साध रखी है और कोई भी बयान देने से पहले हर कदम को सोच-समझकर फैसले लेते दिखाई दे रहे हैं. यूपी सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद ने इस मामले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा - "जब किसान एनडीए के समर्थन में आ रहे हैं, तो किसान नेता कहां जाएंगे? सभी किसान अंततः हमारे साथ आएंगे।
लोकसभा चुनाव 2024 में पूर्वांचल का रण काफी दिलचस्प होने वाला है। इस बार पूर्वांचल की 13 सीटों में से केवल एक सीट कांग्रेस के खाते में आई है। जिसका कारण है इंडी गठबंधन। कांग्रेस ने वाराणसी छोड़ अन्य सभी सीटों पर इंडी गठबंधन के अन्य सहयोगियों को समर्थन दिया है। वह प्रत्यक्ष रूप से चुनाव मैदान में नहीं होगी, लेकिन पार्टी के नेता-कार्यकर्ता गठबंधन के सहयोगियों के लिए जरूर वोट मांगते नजर आएंगे। देखा जाए तो कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है पूर्वांचल। लोकसभा चुनाव के इतिहास में यह पहला मौका है, जब इन सीटों पर ईवीएम में कांग्रेस पार्टी का चुनाव निशान हाथ का पंजा नहीं होगा।
कांग्रेस को पूर्वांचल से सिर्फ वाराणसी लोकसभा सीट मिली
पूर्वांचल में वाराणसी और आसपास के तीन मंडलों में कुल 13 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से ज्यादातर वह लोकसभा क्षेत्र हैं, जहां वर्षों तक कांग्रेस का एकतरफा वर्चस्व रहा है। पंडित कमलापति त्रिपाठी, त्रिभुवन नारायण सिंह, विश्वनाथ गहमरी, श्यामलाल यादव, जैनुल बशर, मोहसिना किदवई, कल्पनाथ राय, रामप्यारे पनिका सरीखे सांसद इस क्षेत्र ने कांग्रेस को दिए हैं। कई सीटों पर हैट्रिक के साथ कांग्रेस उम्मीदवारों ने लगातार चार-पांच जीत भी हासिल की है। परिणाम चाहे जो भी रहा हो, कांग्रेस हर चुनाव में कोई न कोई प्रत्याशी जरूर उतारती रही है। इससे इतर इस बार पूर्वांचल की 13 में से 12 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार ही नहीं हैं। सपा सहित अन्य दलों से हुए गठबंधन के तहत कांग्रेस को पूरे यूपी में सिर्फ 17 सीटें मिली हैं। इसमें पूर्वांचल से सिर्फ वाराणसी लोकसभा सीट है। यहां से भाजपा प्रत्याशी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय चुनाव मैदान में हैं।
पहला मौका जब कांग्रेस सीधे मैदान में नहीं उतरी
इसके अलावा चंदौली, रॉबर्ट्सगंज, जौनपुर, गाजीपुर, घोसी, बलिया, मछलीशहर, सलेमपुर, लालगंज, भदोही, मिर्जापुर, आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने सपा या अन्य सहयोगी दलों को समर्थन दिया है। लिहाजा इन सीटों पर कांग्रेस कोई प्रत्याशी नहीं उतारेगी। जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव में यह पहला मौका है, जब कांग्रेस सीधे मैदान में नहीं है। इससे पहले वर्ष 2017 में हुए यूपी के विधानसभा चुनाव में भी सपा और कांग्रेस में गठबंधन हुआ था। दोनों दल मिलकर चुनाव लड़े थे। इस गठबंधन में कांग्रेस ने 105 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जबकि 298 सीटों पर सपा प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार किया था। तब कांग्रेस सात सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी। वहीं सपा को 47 सीटें मिली थीं। इस गठबंधन को कुल 28 प्रतिशत वोट मिले थे। इसमें सपा को 21.8, जबकि कांग्रेस को 6.2 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था।
लोकसभा चुनाव 2024 के 5वें चरण की वोटिंग 20 मई को होनी है। इस चरण में कई दिग्गजों की किस्मत का फैसला होना है। साथ ही कई कद्दावर नेताओं के सामने अपने गढ़ को बचाए रखने की भी चुनौती है। जिसको लेकर सभी दल जोर-शोर से चुनाव प्रचार में जुटे हैं। पांचवें चरण में देश के 8 राज्यों की 49 सीटों पर चुनाव है, जिसमें उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीट शामिल हैं। इस चरण में 695 उम्मीदवार मैदान में है, जिसमें 82 महिलाएं और 613 पुरुष कैंडिटेट शामिल हैं। इस चरण में राहुल गांधी से लेकर स्मृति ईरानी, राजनाथ सिंह, पीयूष गोयल, रोहिणी आचार्य और चिराग पासवान जैसे दिग्गज नेताओं की अग्निपरीक्षा होने के साथ-साथ बीजेपी, कांग्रेस और टीएमसी जैसे राजनीतिक दलों का कड़ा इम्तिहान भी है। बता दें कि पांचवें फेज की जिन सीटों पर चुनाव है, उन सीटों पर 2014 और 2019 में बीजेपी ने अपना एकछत्र राज कायम रखा है।
पांचवां फेज बीजेपी के लिए भी अहम
पांचवें चरण में देश के 8 राज्यों की 49 सीटों पर चुनाव है। जिसमें उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीट शामिल हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र की 13 सीट, पश्चिम बंगाल की 7 सीट, बिहार की पांच सीट, ओडिशा की पांच सीट, झारखंड की 3 सीट, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की 1-1 सीट शामिल हैं। इस चरण में राजनीतिक दलों के साथ-साथ गांधी परिवार के सियासी वारिस माने जाने वाले राहुल गांधी की भी परीक्षा होनी है। इसके अलावा लालू परिवार से पासवान और शिंदे परिवार सहित कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। 2019 के चुनाव की बात करें तो इन 49 सीटों में से बीजेपी 40 सीटों पर लड़कर 32 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। जबकि कांग्रेस सिर्फ एक सीट ही जीत सकी थी। इसके अलावा जेडीयू के एक, एलजेपी एक, शिवसेना 7, बीजेडी एक, नेशनल कॉफ्रेंस एक और टीएमसी चार सीटें जीतने में सफल रही थी। बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए 41 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। जबकि यूपीए सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी थी और अन्य को पांच सीटें मिली थी।
बीजेपी को चुनौती देना आसान नहीं
लोकसभा के तीन चुनाव से बीजेपी की सीटें जिस तरह बढ़ी है, उससे साफ जाहिर है कि कैसे इन सीटों पर उसे चुनौती देना आसान नहीं है। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने जिन 40 सीट पर चुनाव लड़ी थी, उसमें से 30 सीट पर उसे 40 फीसदी से भी ज्यादा वोट मिले थे और 9 सीटों पर उसे 30 से 40 फीसदी के बीच वोट शेयर था। कांग्रेस को सिर्फ 3 सीट पर ही 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे, जिनमें से एक सीट ही जीत सकी थी। कांग्रेस को 17 सीटों पर 10 फीसदी से कम वोट मिला था। कांग्रेस 36 सीट पर चुनाव लड़ी थी जबकि बीजेपी 40 सीट पर चुनावी मैदान में थी।
5वें चरण का रण बीजेपी और कांग्रेस के लिए काफी रोचक
पांचवें चरण में 12 सीटें ऐसी हैं, जिस पर पिछले तीन चुनाव से एक ही पार्टी को जीत मिल रही है। इसके चलते इन सीटों को उस दल के मजबूत गढ़ के तौर पर देखा जा रहा है। बीजेपी के पास 5, टीएमसपी के 3, बीजेडी के पास 2, शिवसेना-कांग्रेस के पास एक-एक सीट है। ओडिशा में बीजेपी के सामने अस्का और कंधमाल को बचाए रखने की चुनौती है। महाराष्ट्र में गढ़ माने जाने बीजेपी धुले और डिंडोरी और शिवसेना का गढ़ कल्याण शामिल हैं। बीजेपी के मिशन में झारखंड की हज़ारीबाग सीट शामिल है। पश्चिम बंगाल के हावड़ा, श्रीरामपुर और उलुबेरिया क्षेत्र टीएमसी के मजबूत गढ़ के तौर पर जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश में लखनऊ बीजेपी और रायबरेली सीट कांग्रेस के दुर्ग के तौर पर जानी जाती है। बिहार की मधुबनी सीट बीजेपी लगातार अपने नाम कर रखी है। इस तरह बीजेपी पांचवें चरण में मजबूत स्थिति में थी, लेकिन इस बार की चुनावी लड़ाई अलग तरीके की है। बीजेपी के लिए अपनी सीटें बचाए रखनी की चुनौती है जबकि कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। इस तरह कांग्रेस और बीजेपी के पांचवें चरण का चुनाव काफी रोचक माना जा रहा है।
क्या इंडी गठबंधन कर पाएगा बीजेपी के किले में सेंधमारी?
उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीट तो बिहार की पांच सीटों पर 20 मई को मतदान है। यूपी की 14 में से 13 सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी जबकि कांग्रेस 1 सीट ही जीत सकी थी। बिहार की जिन पांच सीट पर चुनाव है, उन सभी को एनडीए ने जीती थी। जेडीयू और एलजेपी एक-एक सीट और बीजेपी तीन सीटें जीतने में सफल रही। पांचवें चरण में झारखंड की जिन तीन सीट पर चुनाव हो रहे हैं, उन सभी पर बीजेपी का कब्जा है। इसी तरह महाराष्ट्र की जिन 13 सीटों पर चुनाव हैं, उनमें से सात सीटें शिवसेना जीतने में कामयाब रही थी और बीजेपी 6 सीटें जीतने में सफल रही। एनडीए ने पूरी तरह से विपक्ष का सफाया कर दिया था। वहीं पश्चिम बंगाल की जिन सात सीटों पर चुनाव है, उनमें से चार सीटें टीएमसी जीतने में कामयाब रही थी जबकि बीजेपी 3 सीटें ही जीत सकी थी। पिछली बार की तरह इस बार भी कांटे की फाइट मानी जा रही है। इसके अलावा ओडिशा के पांच लोकसभा सीटों पर पांचवे चरण में चुनाव है। इन पांच से तीन सीटें बीजेपी जीतने में सफल रही थी जबकि दो सीट बीजेडी ही जीत सकी थी। इस बार बिहार से लेकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में विपक्ष एकजुट होकर चुनावी मैदान में है। इस बार ये देखना दिलचस्प होगा कि जैसे तीन चुनावों से बीजेपी को बढ़त मिल रही है, वो इस बार भी कायम रहती है या फिर इंडी गठबंधन बीजेपी को नुकसान पहुंचाने में कामयाब हो पाता है।
आधा चुनाव करीब संपन्न हो चुका है, अब चौथे चरण के प्रचार-प्रसार में दिग्गज नेताओं ने ताकत झोंक दी है, वही हाईप्रोफाइल सीट लखनऊ से सटी मोहनलालगंज में इस बार चुनाव दिलचस्प हो चुका है, बीजेपी से कौशल किशोर को टिकट मिला है, जिनका मुकाबला सपा के आरके चौधरी है, हालांकि कौशल अपने दम पर इस जीत को लेकर आश्वस्त है. हालांकि जब Now Noida की टीम लोगों के बीच पहुंची तो उनहोंने भी बड़े दिलचस्प जवाब दिया.
गांव की मीना बोलीं- माई कसम जीतेंगे कौशल
चुनाव का माहौल चल रहा है, एक चाय के स्टाल पर पहुंचे तो वहां कई लोग बैठे हुए थे. इस दौरान वहां लोगों से चर्चा की तो उन्होंने बताया की इस बार मोदी का बहुत प्रभाव है राम मंदिर के लिए जो कर दिए है वो इतिहास है इस बार जीत उन्हीं की होगी, वहीं मौके पर एक और व्यक्त तपाक से बोला नहीं इस बार मोदी नहीं बल्कि सपा-राहुल को जीताना है, इस बीच बीजेपी समर्थक बोले की भ्रष्टाचारियों की मोदी ने कमर तोड़ दी है उसको कौनों हरा नहीं पाएगा, हालांकि ऐसी चर्चा काफी देर तक चलती रही इसके आगे जब हम एक सब्जी वाले के पास गई तो वहां एक महिला मौजूद थी, जिससे सवाल पूछा तो उन्होंने इस बार हमारे मोहनलाल गंज से कौशल जी जीतेंगे उन्होंने हमेशा बुरे वक्त में हमारा साथ दिया. इसके साथ ही महिला ने कहा मोदी-योगी हमारे लिए भगवान है. ऐसे में ये भी जानते है कि आखिर मोहनलालगंज का जातीय समीकरण क्या है.
मोहनलाल गंज का जातीय समीकरण
आपको बता दें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित मोहनलालगंज सीट पर ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. यहां अनुसूचित जाति की आबादी करीब 35 प्रतिशत है, तो अनुसूचित जनजाति की आबादी एक फीसदी से भी कम है. ऐसे में एससी वोटर्स ही यहां पर जीत का खाका तय करते हैं. मोहनलालगंज लोकसभा सीट 1962 के लोकसभा चुनाव में वजूद में आई. शुरुआती दौर में कांग्रेस की गंगा देवी ने 60 के दशक में लगातार 3 चुनाव जीतकर यहां पर चुनावी जीत की हैट्रिक लगाई थी. लेकिन उसके बाद यहां पर कोई भी सांसद हैट्रिक नहीं लगा सका है. सपा भले ही लगातार 4 बार चुनाव जीतने में कामयाब रही थी. बसपा तो यहां से अपना खाता तक नहीं खोल सकी है। अब देखना होगा कि क्या इस बार कौशल किशोर अपने खाते में जीत के साथ हैट्रिक लगा पाएंगे. या फिर विपक्षी दल आपसी एकजुटता दिखाते हुए राजधानी लखनऊ से सटी सीट पर बीजेपी के जीत पर ब्रेक लगाते हैं.
हरियाणा विधानसभा चुनाव में सपा अपने प्रत्याशी उतारेगी या फिर कांग्रेस उसे कुछ सीटें देगी इन कयासों के बीच अखिलेश यादव ने एक ट्वीट किया है। इस ट्वीट से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि सपा संभवतः यहां से अपने प्रत्याशी न उतारे। अखिलेश ने X पोस्ट पर लिखा कि ‘हरियाणा चुनाव में ‘INDI ALLIANCE’ की एकजुटता नया इतिहास लिखने में सक्षम है। हमने कई बार कहा है और एक बार फिर दोहरा रहे हैं व आगे भी दोहरायेंगे कि ‘बात सीट की नहीं जीत की है’।
भाजपा की नकारात्मक, साम्प्रदायिक, विभाजनकारी राजनीति
अखिलेश ने लिखा है कि हरियाणा के विकास व सौहार्द की विरोधी ‘भाजपा की नकारात्मक, साम्प्रदायिक, विभाजनकारी राजनीति’ को हराने में ‘इंडिया एलायंस’ की जो भी पार्टी सक्षम होगी। हम उसके साथ अपने संगठन और समर्थकों की शक्ति को जोड़ देंगे। बात दो-चार सीटों पर प्रत्याशी उतारने की नहीं है, बात तो जनता के दुख-दर्द को समझते हुए उनको भाजपा की जोड़-तोड़ की भ्रष्टाचारी सियासत से मुक्ति दिलाने की है। साथ ही हरियाणा के सच्चे विकास और जनता के कल्याण की है। पिछले 10 सालों में भाजपा ने हरियाणा के विकास को बीसों साल पीछे धकेल दिया है।
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके हैं। नतीजों में एनडीए ने विपक्षी गठबंधन को करारी मात दी। साथ ही नतीजों में एनडीए बहुमत के आंकड़े के पार चली गई है। वाराणसी में पीएम मोदी ने लगातार तीसरी बार जीत का परचम लहराया है। यानी कि साफ है कि एक बार फिर केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन सकती है। मतलब कि एक बार फिर सत्ता पर मोदी का राज चलने वाला है। वहीं इस बात से विपक्षी गठबंधन काफी नाखुश है। देखा जाए तो विपक्ष अपनी भरकस कोशिशों के बावजूद भाजपा के अजेय किले में अपनी पैठ नहीं बना पा रहा है। वहीं दूसरी ओर पीएम मोदी एक बार फिर इतिहास दोहराने के लिए तैयार हैं। पीएम मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनकर पूर्व पीएम पंडित नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी करने वाले हैं।
पीएम मोदी पर जनता का विश्वास आज भी कायम
देश की जनता ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनका विश्वास अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पहले की तरह ही कायम है। साथ ही मौजूदा राजनीति में और हाल के वर्षों में शायद ही कोई नेता हो जो पीएम मोदी के करिश्मे की बराबरी कर सके। 7 अक्तूबर 2001 की तारीख भारतीय राजनीति में मील की पत्थर कही जा सकती है। दरअसल इसी तारीख को नरेंद्र मोदी ने पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके बाद से आज तक पीएम मोदी कोई चुनाव नहीं हारे हैं। पीएम मोदी आज भारतीय राजनीति और देश की जनता के लिए कितने अहम हैं ये शब्दों में बयां करना आसान नहीं है।
2014 की शानदार जीत के बाद बने पीएम
गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने विकास का गुजरात मॉडल दिया, जिसने पूरे देश में उनकी खास पहचान बनाई। इसी पहचान के दम पर साल 2014 में उन्हें भाजपा ने पीएम पद का दावेदार घोषित किया। 2014 में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे काम किए, जो क्रांतिकारी साबित हुए, जिनमें मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों ने देश के विकास को गति दी तो सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक ने उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनाई, जो दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देना जानता है। पीएम मोदी ने देशवासियों में देश को लेकर एक विश्वास और स्वाभिमान की भावना जाग्रत की। जिसके दम पर साल 2019 में भाजपा बंपर बहुमत लेकर सत्ता में वापस लौटी।
दूसरे कार्यकाल में लिए कई ऐतिहासिक फैसले
देशवासियों के मिले समर्थन से पीएम मोदी ने दूसरे कार्यकाल में कई ऐसे ऐतिहासिक फैसले लिए, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए हैं। इनमें जम्मू कश्मीर के अनुच्छेद 370 हटाना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में देश में हिंदू पहचान मजबूत हुई है और वह खुद इसे लेकर काफी मुखर हैं। इसकी वजह से कई बार उन्हें आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने इसकी कभी परवाह नहीं की। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर देश बेहतर स्थिति में है। रूस-यूक्रेन युद्ध, इस्राइल-हमास युद्ध और चीन के आक्रामक रूख के खिलाफ पीएम मोदी ने जिस तरह से स्टैंड लिया है, साथ ही जी20 के सफल आयोजन और दुनियाभर में पीएम मोदी की लोकप्रियता ने उन्हें मजबूत वैश्विक नेता के तौर पर स्थापित कर दिया है।
तीसरे कार्यकाल में क्या होंगे पीएम के ऐतिहासिक कदम
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल के सफर पर हैं। देश की जनता अब ये देखने को बेसब्र है कि इस बार पीएम मोदी क्या करने वाले हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो कार्यकालों को देखते हुए ये अनुमान लगाया जा सकता है कि इस बार का कार्यकाल भी पिछले दो कार्यकालों की तरह ही यादगार होगा। वहीं पीएम मोदी अपने बयानों में भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और साल 2047 तक देश को महाशक्ति बनाने की बात करते हैं। उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उनके ये बयान झूठे होना तो नामुमकिन है। अब देखना ये होगा कि पीएम देश की जनता के विश्वास को और कितना मजबूत कर पाते हैं।
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