पूर्वांचल की सियासत का जिक्र हो और बाहुबलियों की बात न हो तो कुछ हजम सा नहीं होता.इसी पूर्वांचल में एक फाटक का बड़ा बोलबाला है. अगर इस फाटक की पनाह में आ गए तो मौज ही मौज होती थी.फाटक यानी खौफ का सबब.सफर करते.आपने या हमने कभी न कभी फाटक जरूर देखा होगा.फाटक का अर्थ होता है बड़ा दरवाज़ा.लेकिन पूर्वांचल में एक ऐसा फाटक है.जहां जिंदगी और मौत के फैसले होते है.जिंदगी और मौत का फैसला करने वाला ये फाटक है गाजीपुर के मोहम्मदाबाद युसुफपुर इलाके में मौजूद एक हवेली.बड़े फाटक की वजह से इस हवेली को ही बड़का फाटक कहा जाता है.कभी स्वतंत्रता सेनानी डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी का घर के रूप में इसकी पहचान थी.ये फाटक एक जमाने में स्वतंत्रता सेनानियों की शरण स्थली था.लेकिन समय बदला और वो खूंखार अपराधियों की पनाहगाह बन गया.इसी फाटक में 1963 में जन्मे मुख्तार अपना दरबार लगाता था.जहां उसकी छवि रॉबिनहुड वाली थी.

दहशतगर्दी के इस बुलंद दरवाजे यानी फाटक से जुड़े कई किस्से
दहशतगर्दी के इस बुलंद दरवाजे यानी फाटक से जुड़े कई किस्से है.कहते हैं गाजीपुर में अफीम, अपराधी और अफसर साथ-साथ पैदा होते है.ये भूमिहार बहुल इलाका है यानी खेती बारी करने वाले या फिर एक वर्ग का इलाका.कुछ लोग इसे 'भूमिहारों का वेटिकन' भी कहते हैं.बनारस यहां से करीब है और गाजीपुर वालों को बनारस सेही सबकुछ मिल जाता है. केवल गुंडई छोड़कर.लेकिन इस गुंडई की बात हो और फाटका का जिक्र न हो तो सबकुछ अधूरा सा है.अमीरों के सताए जब फाटक पहुंचते तो सबको न्याय की उम्मीद होती.

रॉबिनहुड की छवि बनाने में मुख्तार कामयाब रहा
झगड़े में फंसी जमीनें हों… पार्टनरशिप का विवाद हो….
शादी करके भी कोई लड़का-लड़की को रखने को तैयार न हो….
किसी की बेटी की शादी पैसों की वजह से न हो रही हो….
किसी ने किसी की जमीन पर कब्जा जमा लिया हो…..कोई सड़क न बन रही हो….
सरकारी महकमे के लोग किसी को परेशान कर रहे हों….
किसी दफ्तर में किसी का काम न हो रहा हो तो लोग फाटक पहुंचते….
अपराध की दुनिया से ठेके, पट्टे, विवादित जमीन-जायदादों पर कब्जा के साथ रॉबिनहुड
की छवि बनाने में मुख्तार कामयाब भी रहा…..

डॉन मुख्तार अंसारी के लोग शहर भर में घूमा करते थे
इलाकाई लोग बताते है कि डॉन मुख्तार अंसारी के लोग शहर भर में घूमा करते थे.किसी के सताए लोग उनसे आसानी से संपर्क कर लेते थे.सताए लोगों का फैसला फाटक पर होता.और वहीं से फरमान जारी होता.समझाया तो प्यार से जाता.लेकिन सामने वाले को पता होता था कि अगर बात न मानी तो नतीजा क्या होगा.डरे सताए लोगों को पता होता कि मुख्तार कितना बड़ा बाहुबली है.चाय-पान की दुकानों पर चर्चा राजनीति से शुरू होती.लेकिन खत्म अपराध की कहानी पर ही होती.और इन्हीं बातों में जिक्र आता मुख्तार का कोई उसे रॉबिनहुड कहता.कोई उसे 6 फुटिया, तो कोई दबंग छवि वाला नेता. दरअसल मुख्तार का परिवार कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ा था.उनके पिता सुभानुल्लाह अंसारी भी राजनीति में दखल रखते थे.मुख्तार के बड़े भाई अफजाल ने उसे आगे बढ़ाया और 1985 में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी से विधायक चुने गए.सीट थी गाजीपुर की मुहम्मदाबाद.कांग्रेस के दौर में भाई को चुनाव जिताने में मुख्तार का बड़ा हाथ माना गया. इसके बाद मुख्तार की राजनीतिक इच्छाएं हिलोरे मारने लगी. मुख्तार अब अपनी छवि चमकाने में लग गए थे. उस दौरान गाजीपुर में हैंडलूम का काम भी प्रमुखता से होता था.लेकिन बिजली की समस्या थी.मुख्तार ने इसे मुद्दा बना लिया.उन्होंने अफसरों पर दबाव बनाया कि उन्हें तय करना होगा कि इलाके में बिजली कितने घंटे आएगी. इसका असर दिखने लगा.लोगों को लगने लगा कि मुख्तार उनके लिए लड़ सकते हैं.'फाटक' पहुंचने वालों की संख्या में और इजाफा होने लग गया.

मुख्तार को पहली बार मायावती ने 1996 में मऊ से मैदान में उतरने का आदेश दिया

मुख्तार को पहली बार मायावती ने 1996 में मऊ से मैदान में उतरने का आदेश दिया था.मऊ की सीट मुस्लिम बहुल है और ये मुख्तार के लिए वरदान साबित हुई.मुख्तार 96 में पहली बार बीएसपी से विधायक चुने गए.इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.तब से 2017 तक वे लगातार यहां से चुने जाते रहे हैं.मुख्तार अंसारी की छवि का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वो जो जेल में बंद रहकर भी चुनाव जीतते रहे है.लेकिन योगी सरकार के आने के बाद से लगातार मुख्तार और उनके परिवार पर शिकंजा कसता जा रहा है.अब फाटक की जगह सताए लोग योगी के जनता दरबार में पहुंचने लगे है.लेकिन इस फाटक का इतिहास आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है. जहां अब मातम छाया हुआ है.