Delhi: पिछले काफी समय से देश में राहुल गांधी OBC फैक्टर को लेकर सवाल उठाते रहते है लेकिन अबकी बार PM मोदी ने राहुल को ऐसा जवाब दिया है जिसकी उम्मीद शायद उन्होंने कभी नहीं की होगी. दरअसल PM मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब दिया. इस दौरान राज्यसभा में PM मोदी ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरु का जिक्र करते हुए उनकी लिखी एक चिट्ठी को पढ़ा. राज्यसभा को संबोधित करते हुए PM मोदी ने कहा कि एक बार नेहरू जी ने एक चिट्ठी लिखी थी और ये उस समय देश के मुख्यमंत्रियों को लिखी गई चिट्ठी है. मैं इसका अनुवाद पढ़ रहा हूं. 'मैं किसी भी आरक्षण को पसंद नहीं करता और खासकर नौकरी में आरक्षण तो कतई नहीं. मैं ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ हूं, जो अकुशलता को बढ़ावा दे और दोयम दर्जे की तरफ ले जाए. ये पंडित नेहरू की मुख्यमंत्रियों को लिखी चिट्ठी है.'
'जन्मजात आरक्षण के विरोधी हैं'
PM मोदी ने कांग्रेस पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि इसलिए मैं कहता हूं कि कांग्रेस जन्मजात आरक्षण के विरोधी हैं. उनके इस बयान के बाद राज्यसभा में शोरगुल भी दिखा. PM ने इसके आगे अपनी बात को रखते हुए कहा कि नेहरू कहते थे कि अगर एससी-एसटी-ओबीसी को नौकरियों में आरक्षण मिला तो सरकारी कामकाज का स्तर गिर जाएगा. आज ये लोग . गिना रहे हैं कि कौन सी जाति के कितने अफसर हैं. जो आंकड़ें गिनाते हैं ना, उसका मूल यहां हैं. उस समय इन लोगों ने इसे रोक दिया था. अगर उस समय सरकार में भर्ती हुई होती और वो प्रमोशन करते-करते आगे बढ़ते तो आज यहां पर पहुंचते.
कब लिखी थी पंडित नेहरु ने ये चिट्ठी ?
27 जून 1961 को नेहरू द्वारा देश के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी गई थी. जिसका जिक्र PM मोदी ने राज्यसभा में किया. इस चिट्ठी में नेहरू ने पिछड़े समूहों को जाति के आधार पर नौकरियों में आरक्षण की पैरवी ना कर उन्हें अच्छी शिक्षा देकर सशक्त करने पर जोर दिया था.
बाबा साहेब आंबेडकर का अपमान किया
इसके बाद PM मोदी ने कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस के मुंह से सामाजिक न्याय की बात अच्छी नहीं लगती. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ओबीसी को कभी भी पूर्ण आरक्षण नहीं दिया इसलिए उन्हें सामाजिक न्याय पर ज्ञान नहीं देना चाहिए. जनरल कैटेगरी के गरीबों को कभी आरक्षण नहीं दिया. इन्होंने कभी बाबा साहेब आंबेडकर को भारत रत्न के योग्य नहीं समझा. अब ये लोग सामाजिक न्याय का पाठ पढ़ा रहे हैं. जिनकी नेता के तौर पर कोई गारंटी नहीं है, वे मोदी की गारंटी पर सवाल उठा रहे हैं.
राहुल लगातार उठाते है आरक्षण की बात
आए दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी देश में जातिगत जनगणना की मांग करते रहते है. राहुल ने कुछ समय पहले ही कहा था कि लोगों को पता चलना चाहिए है कि किसकी कितनी आबादी है. इसके आगे कहा कि 90 अफसरों में से सिर्फ 3 ओबीसी समाज से आते हैं. वहीं भारत जोड़ो न्याय यात्रा जब रांची पहुंची तो एक रैली करते हुए वादा किया था कि केंद्र में ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार बनने पर जाति आधारित जनगणना होगी. साथ ही हम आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा हटा देंगे. उन्होंने इस दौरान PM मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि जब जाति आधारित जनगणना की मांग उठी और ओबीसी, दलितों और आदिवासियों को अधिकार देने का समय आया तो प्रधानमंत्री ने कहा कि कोई जाति नहीं है, लेकिन जब वोट लेने का समय आता है तो वो कहते हैं कि वो ओबीसी हैं.
लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां बढ़ी हुई है. तमाम नेता प्रचार-प्रसार में ताकत लगाए हुए है PM मोदी एक दिन यूपी में रैली करते है तो दूसरे दिन तमिलनाडु में वो रैली करते है, लेकिन क्या आप जानते है कि आजाद भारत में जब पहली बार चुनाव हुए थे तो खुद प्रधानमंत्री ने अपने हेलीकॉप्टर का किराया दिया था. ये शायद सुनकर यकीन न हो लेकिन ये बात सच है. एक किताब में ऐसा दावा किया गया है.
फ़्रॉम कर्ज़न टू नेहरू एंड आफ़्टर में जिक्र
दरअसल ये वो वक्त था जब दुनिया में कुछ बड़े नेताओं की हत्या कर दी गई थी. ऐसे में पंडित नेहरु की सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती थी. वैसे तो उस वक्त प्रधानमंत्री को इंडियन एयरफोर्स का हेलिकॉप्टर मिलता ही था लेकिन नेहरू नहीं चाहते थे कि वो चुनाव प्रचार में इसका इस्तेमाल करें, क्योंकि कई तरह के सवाल जनता पार्टी से उस वक्त जुड़े नेता खड़े करते थे. तब इसका भी एक रास्ता निकाला गया, फ़्रॉम कर्ज़न टू नेहरू एंड आफ़्टर नाम की किताब में ये बताया गया है कि सरकार ने तब इस मसले का हल निकालने के लिए एक कमेटी बनाई, जिसके बाद ये तय हुआ कि प्रधानमंत्री को सुरक्षा के मद्देनज़र सरकारी हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल करने दिया जाएगा.
40 हजार किलोमीटर का किया था सफर
इसमें तय ये भी हुआ कि नेहरू अपना किराया देंगे, उनके साथ जो सुरक्षाकर्मी रहेंगे उनका खर्च सरकार वहन करेगी, क्योंकि वो प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगे हैं. साथ ही अगर कोई कांग्रेस का नेता उस विमान में सफर करता है, तब भी उसको किराया देना होगा. इस तरह नहरू के चुनाव प्रचार का मसला हल हो गया. नेहरू ने अपना चुनाव प्रचार 1 अक्टूबर से शुरू कर दिया था, 25 अक्टूबर को पहला वोट पड़ा था. दावा किया जाता है कि 8-9 महीने के वक्त में ही नेहरू ने तब 40 हज़ार किमी तक का सफर कर लिया था, इसमें हवाई जहाज, गाड़ी, रेल और नाव तक के जरिए नेहरू प्रचार कर रहे थे.
अमेठी गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। कांग्रेस ने लंबे समय तक इस सीट पर राज भी किया है, लेकिन अब अमेठी से गांधी परिवार के लगभग पांच दशकों के चुनावी जुड़ाव पर फिलहाल विराम लग गया है। कांग्रेस पार्टी ने इस बार किशोरी लाल शर्मा को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। किशोरी लाल शर्मा का गांधी परिवार से वर्षों का नाता है। किशोरी लाल शर्मा परिवार के प्रतिनिधि के नाते अरसे से अमेठी और रायबरेली से जुड़े रहे हैं लेकिन वहां के वोटरों के बीच उनकी पहचान गांधी परिवार के सहयोगी तक सीमित रही है। तो वहीं शर्मा की उम्मीदवारी के बाद अटकलों और कयासों का बाजार गर्म हो गया है। हर कोई इसी उधेड़बुन में लगा है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है जिसके कारण गांधी परिवार का इस सीट से मोहभंग हो गया है।
25 साल बाद गांधी परिवार का कोई भी सदस्य नहीं लड़ेगा चुनाव
अमेठी गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। संजय, राजीव, सोनिया से लेकर राहुल गांधी तक ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। 1999 से 2019 तक इस सीट पर गांधी परिवार का कब्जा था। 1999 में सोनिया गांधी यहां से चुनाव जीतीं। 2004 में राहुल गांधी यहां से पहली बार सांसद बने। लगातार तीन बार वो यहां से चुनाव जीते। मगर 2019 में राहुल को बीजेपी की स्मृति ईरानी ने शिकस्त दी। राहुल को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा। देखा जाए तो 2019 की हार के बाद से ही राहुल अमेठी से दूरी बनाए हुए हैं। समर्थक भले न मानें लेकिन सच यही है कि अमेठी, गांधी परिवार के मोहपाश से काफी कुछ उबर चुकी है। उसे सिर्फ पहचान दिलाने वाले ही नहीं बल्कि काम करने और उसकी जरूरतों के लिए लड़ने वाले प्रतिनिधि की तलाश रहती है। राहुल गांधी इस कसौटी पर खरे नहीं उतर सके और 2019 में अमेठी ने उन्हें ठुकरा दिया। हार के बाद राहुल ने अमेठी से दूरी बनाई तो वोटरों ने बाद के विधानसभा सहित हर अगले चुनाव में कांग्रेस को भुला दिया।
आखिर क्या है राहुल की अमेठी छोड़ने की वजह?
2019 की हार के बाद 2024 में एक बार फिर अमेठी के चुनावी मैदान में उतरने पर क्षेत्र को भूल जाने के लिए उनकी घेराबंदी होना तय थी। इस मुद्दे पर सिर्फ प्रतिद्वंदी स्मृति ईरानी ही नहीं बल्कि तमाम मुखर वोटरों के सवाल राहुल को परेशान करने को तैयार थे। इससे भी एक बड़ा सवाल दोनों स्थानों से जीतने की हालत में जनता को यह भरोसा दिलाना बड़ी चुनौती होती कि वे वायनाड छोड़ेंगे और अमेठी में टिकेंगे ? हालांकि इस सवाल से उन्हें रायबरेली में भी रूबरू होना पड़ेगा, लेकिन इस मुद्दे पर अमेठी में स्मृति ईरानी के हमले कहीं अधिक पैने और तेज होते। जिनसे बचने के लिए राहुल ने अमेठी से दूरी बनाना ही उचित समझा।
1976 में शुरू हुआ अमेठी और गांधी परिवार का मोह
बता दें कि गांधी परिवार ने 1976 में अमेठी में दस्तक दी। 1977 के पहले चुनाव में कांग्रेस के संजय गांधी चुनाव हार गए थे। फिर 1980 में उन्होंने चुनाव जीता। मगर उसी साल उनका विमान हादसे में निधन हो गया। इसके बाद 1981 में यहां उपचुनाव हुआ। इसके बाद उनके बड़े भाई राजीव गांधी चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद से वो लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीते। 1984, 1989, 1991 में राजीव गांधी लगातार जीते। 1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद यहां उपचुनाव हुआ। राजीव के सहयोगी व करीबी कैप्टन सतीश शर्मा ने विरासत संभाली। 1991 में हुए उपचुनाव में उन्होंने जीत हासिल की। 1996 में भी उन्होंने बाजी मारी, लेकिन 1998 में हार गए। इस साल हुए चुनाव में बीजेपी के संजय सिंह ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 1999 में फिर से सोनिया गांधी इस सीट पर पैठ बनाने में कामयाब हुईं थी।
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October 05, 2024