Noida: दीपोत्सव का पर्व शुरू होने वाला है। धनतरेस से इस प्रकाश पर्व की शुरुआत होती है और भैयादूज तक चलता है। हर वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस साल 10 नवंबर को धनतेरस है। ऐसी मान्यता है जो कोई भी धनतेरस के दिन खरीदारी करता है, उसके घर पर सुख और समृद्धि आती है। मान्यता है कि धनतेरस के दिन खरीदी गई वस्तुएं कई वर्षों तक शुभ फल प्रदान करती हैं।
खरीदारी और पूजन शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार धनतेरस के दिन यानी 10 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से लेकर अगले दिन यानी 11 नवंबर की सुबह तक खरीदारी करने का शुभ मुहूर्त है। धनतेरस के पावन पर्व पर भगवान गणेश, मां लक्ष्मी और कुबेर देवता की पूजा की जाती है। धनतेरस पर लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त 10 नवंबर, शुक्रवार को शाम 05 बजकर 47 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
धनतेरस पर क्या खरीदें?
धनतेरस पर शुभ मुहूर्त में बर्तन और सोने-चांदी के अलावा वाहन, जमीन-जायदाद के सौदे, लग्जरी चीजें और घर में काम आने वाले अन्य दूसरी चीजों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि धनतेरस के दिन खरीदी गई चल-अचल संपत्ति में 13 गुऩा वृद्धि होती है। इसकेअलावा इसके अलावा झाड़ू खरीदना भी अच्छा माना जाता है। मान्यता है इस दिन झाड़ू खरीदने से मां लक्ष्मी मेहरबान रहती हैं। यदि धनतेरस के दिन आप कोई कीमती वस्तु नहीं खरीद पा रहे हैं तो साबुत धनिया जरूर घर ले आएं। मान्यता है इससे धन की कभी कमी नहीं होती है।
धनतेरस पर ये चीजें न खरीदें
धनतेरस पर लोहा या लोहे से बनी वस्तुएं घर लाना शुभ नहीं माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार यदि आप धनतेरस के दिन लोहे से बनी कोई भी वस्तु घर लाते हैं, तो घर में दुर्भाग्य का प्रवेश हो जाता है। इसके अलावा एल्युमिनियम या स्टील की वस्तुएं खरीदने से मां लक्ष्मी रूठ जाती हैं। प्लास्टिक की चीज खरीदने धन के स्थायित्व और बरकत में कमी आ सकती है। शीशा,चीनी मिट्टी या बोन चाइना की वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए।
Noida: दीपोत्सव पर्व इस साल 5 नहीं 6 दिन का होगा। जिसकी शुरुआत 10 नवंबर को धनतरेस से हो गई है। आइए जानते हैं इस दीपोत्सव पर पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि। हिंदू धर्म में दीपावली सबसे धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल दीपावली कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। इस बार कार्तिक अमावस्या 12 नवंबर को दिन में 2:12 बजे लग रही है, जो 13 नवंबर को दिन में 2:41 बजे तक रहेगी।
वैदिक शास्त्रों के अनुसार प्रदोष काल एवं महानिशीथ काल व्यापिनी अमावस्या में होती है। इसमें प्रदोष काल का महत्व गृहस्थों और व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण होता है। अमावस्या व्यापिनी महानिशीथ काल 12 नवंबर को मिल रहा है। अत: इस बार दीप ज्योति पर्व दीपावली 12 नवंबर को मनाई जाएगी। धर्म शास्त्रों में दीपावली के पूजन में प्रदोषकाल अति महत्वपूर्ण होता है। प्रदोष काल मानक समयानुसार शाम 5:11 से 6:23 बजे तक रहेगा।
पूजन विधि
दीपावली की शाम देव मंदिरों के साथ ही गृह द्वार, कूप, बावड़ी, गोशाला इत्यादि में दीपदान करना चाहिए। रात्रि के अंतिम प्रहर में लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा का निस्तारण किया जाता है। व्यापारी वर्ग को इस रात शुभ तथा स्थिर लग्न में अपने प्रतिष्ठान की उन्नति के लिए कुबेर-लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। इस रात गणेश-लक्ष्मी कुबेर जी का पंचोपचार का षोडशोपचार पूजन कर धूप दीप प्रज्जवलित कर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्तम, कनकधारा, लक्ष्मी चालीसा समेत किसी भी लक्ष्मी मंत्र का जप पाठ आदि करना चाहिए।
हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार दिवाली आज (12 नवंबर) को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। वर्ष की सभी अमावस्या में कार्तिक अमावस्या की तिथि श्रेष्ठतम मानी गई है। क्योंकि इस दिन महालक्ष्मी की पूजा-आराधना करके अपने इष्ट कार्य को तो सिद्ध किया ही जा सकता है। इसी दिन भगवान राम असुरों का संहार करके अयोध्या लौटे थे, जिनका दीपोत्सव करके स्वागत किया गया था। मान्यता है कि दीपावली पर मां लक्ष्मी के पूजन-अर्चना से धन-धान्य की पूरे साल कमी नहीं होती है।
उत्तर प्रदेश में पूजन का शुभ मुहूर्त
नोएडा में 5 बजकर 40 मिनट से 07 बजकर 36 मिनट तक। लखनऊ में 05 बजकर 29से 7 बजकर 26 मिनट तक। मेरठ में 5 बजकर 34 मिनट से 07 बजकर 34 मिनट तक, कानपुर में 5 बजकर 32 मिनट से 07 बजकर 29 मिनट तक, बनारस में 5 बजकर 23 मिनट से 07 बजकर 21 मिनट तक, प्रयागराज में 5 बजकर 28 मिनट से 07 बजकर 25 मिनट तक, मथुरा में 5 बजकर 23 मिनट से 07 बजकर 19 मिनट तक और वृंदावन में 5 बजकर 23 मिनट - 07 बजकर 19 मिनट तक लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त है।
दिवाली पर ऐसे करें पूजन
1-ज्योतिषाचार्यों के अनुसार प्रदोष वेला से लेकर पिशाच वेला के आरंभ से पहले तक ही महालक्ष्मी पूजा का विधान है। यह पिशाच वेला रात्रि 02 बजे से आरंभ होती है। पहले पूजा के लिए लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और इस पर साबुत अक्षत की एक परत बिछा दें। इसके बाद श्री लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा को विराजमान करें और पूजन सामग्री लेकर उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
2- जल कलश व अन्य पूजन सामग्री जैसे-खील पताशा, सिन्दूर,गंगाजल,अक्षत-रोली,मोली,फल-मिठाई,पान-सुपारी,इलाइची आदि उत्तर और उत्तर-पूर्व में ही रखें तो शुभ फलों में वृद्धि होगी।
3- गणेशजी के पूजन में दूर्वा, गेंदा और गुलाब के फूलों का प्रयोग शुभ माना गया है। पूजा स्थल के दक्षिण-पूर्व की तरफ घी का दीप जलाते हुए 'ॐ दीपोज्योतिः परब्रह्म दीपोज्योतिः जनार्दनः ! दीपो हरतु में पापं पूजा दीपं नमोस्तुते ! मंत्र बोलें। ध्यान रहे खुश होकर भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
4- देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश के लिए भोग में खीर, बूंदी के लड्डू,सूखे मेवे या फिर मावे से बनी हुई मिठाई रखें एवं आरती करें।
5-पूजन के बाद मुख्य दीपक को रात्रि भर जलने दें ।लक्ष्मी जी के मंत्र ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः । का यथाशक्ति जप करें।
6-पूजन कक्ष के द्वार पर सिन्दूर या रोली से दोनों तरफ स्वास्तिक बना देने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती हैं।
7-दीपावली पूजन में श्रीयंत्र की पूजा सुख-समृद्धि को आमंत्रित करती है। विद्यार्थी इस दिन माता महासरस्वती का मंत्र "या देवि ! सर्व भूतेषु विद्या रूपेण संस्थिता ! नमस्तस्यै ! नमस्तस्यै ! नमस्तस्यै नमोनमः !! का जप करके शिक्षा प्रतियोगिता में बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
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