फिल्म दबंग का एक डायलॉग है, "हम यहां के रॉबिनहुड हैं, नाम है रॉबिनहुड पांडे।" ये डायलॉग फिल्मी है, लेकिन जौनपुर में जैसे ही आपकी जुबान से रॉबिनहुड शब्द निकलेगा लोग खुद-बा-खुद धनंजय सिंह बोल देंगे जो फिर से चर्चा में छाए हुए है। जिन्हें कोर्ट ने 46 महीने पहले दर्ज अपहरण मामले में सजा सुनाई है। MP-MLA कोर्ट ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के इंजीनियर अभिनव सिंघल के अपहरण और रंगदारी केस में 7 साल की सजा सुनाई है। साथ ही 50 हजार का जुर्माना लगाया है। जिसने जौनपुर की सियासत में भूचाल लाकर रख दिया है।
क्यों धनंजय सिंह को कोर्ट ने सुनाई सजा?
जिला शासकीय अधिवक्ता सतीश पांडेय ने बताया "कि नमामि गंगे परियोजना के प्रबंधक मुजफ्फरनगर निवासी अभिनव सिंघल ने 10 मई, 2020 को जौनपुर के लाइनबाजार थाने में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और उनके साथी विक्रम के खिलाफ अपहरण और रंगदारी मांगने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। मामले में आरोप लगाया गया था कि विक्रम ने अपने दो साथियों के साथ पहले उनका अपहरण किया और फिर उन्हें पूर्व सांसद धनंजय सिंह के आवास पर ले गया। जहां धनंजय सिंह पिस्टल लेकर आए और गालियां देते हुए धमकी देने के बाद रंगदारी मांगी। वहीं मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह गिरफ्तार भी हुए लेकिन बाद में उन्होंने उच्च न्यायालय इलाहाबाद से जमानत हासिल कर ली थी। इसी मामले में अपर सत्र न्यायाधीश शरद कुमार त्रिपाठी ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद पूर्व सांसद धनंजय सिंह और उनके साथी संतोष विक्रम को दोषी करार देकर सजा सुनाई है।
अपराधों से अलग है बाहुबली धनंजय सिंह की निजी जिंदगी
धनंजय सिंह ने पहली बार रारी से विधायक बनने के बाद 12 दिसंबर 2006 को मीनू सिंह से शादी की। मीनू सिंह के पिता बिहार के पटना में बैंक मैनेजर थे। शादी के 9 महीने बाद 2007 में मीनू की संदिग्ध हालातों में मौत हो गई। हालांकि परिवार ने आत्महत्या बताया था। जिसके बाद 29 जून 2009 को धनंजय ने जागृति सिंह से शादी कर ली। जागृति के पिता उमाशंकर सिंह दो दशक पहले जौनपुर में परियोजना निदेशक के पद पर कार्यरत थे। जागृति पेशे से डॉक्टर थीं। 2013 में दिल्ली स्थित सांसद निवास में जागृति ने अपनी नौकरानी की बेरहमी से पिटाई कर दी जिससे उसकी मौत हो गई। इस विवाद के बाद 2017 में धनंजय ने आपसी सहमति से जागृति से तलाक ले लिया। उसके बाद जून, 2017 में धनंजय ने तेलंगाना की श्रीकला रेड्डी से पेरिस में शादी की और लखनऊ में हुए रिसेप्शन में योगी सरकार में शामिल कई मंत्री और राजनेता शामिल हुए थे। उस समय कृपाशंकर सिंह भी आशीर्वाद देने पहुंचे थे, जिन्हें हाल ही में बीजेपी ने जौनपुर से प्रत्याशी बनाया है। श्रीकला रेड्डी तेलंगाना की बिजनेस फैमिली निप्पो बैट्री ग्रुप से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता स्वर्गीय जितेंद्र रेड्डी नलगोंडा जिले की कोऑपरेटिव के अध्यक्ष और तेलंगाना की हुजूर नगर सीट से निर्दलीय विधायक भी रह चुके हैं। श्रीकला की मां ललिता रेड्डी अपने गांव की सरपंच रह चुकी हैं। श्रीकला रेड्डी को 5 साल पहले बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तेलंगाना में पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। साल 2021 के पंचायत चुनाव में धनंजय सिंह अपने रसूख के दम पर श्रीकला रेड्डी को जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर बिठाने में सफल रहे। धनंजय का डॉक्टर जागृति सिंह से एक बेटा है, जो धनंजय के ही पास रहता है और श्रीकला रेड्डी से एक बेटी है।
चुनावों का दौर चल रहा है तो वहीं जहां कभी यूपी की सियासत में बाहुबली नेताओं का अस्सी के दशक में दबदबा रहा है और नब्बे के दशक में जिनकी तूती बोलती थी। वो बाहुबली नेता अब उत्तर प्रदेश की सियासी पिच से नदारद नजर आ रहे हैं। पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक जहां एक समय बाहुबलियों की सियासी रुतबा था, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में उनका तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है। कुछ बाहुबली नेताओं का निधन हो चुका है तो कुछ जेल की सलाखों के पीछे हैं। राजनीतिक दल भी इन नेताओं से कन्नी काट रहे हैं। जिससे इनकी राजनीतिक विरासत भी खत्म होती दिखाई दे रही है। वहीं जौनपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे बाहुबली धनंजय सिंह को मिली सजा ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सपा ने बाबू सिंह कुशवाहा को जौनपुर से प्रत्याशी बनाकर धनंजय की पत्नी के चुनाव लड़ने की उम्मीदों का झटका दे दिया है।
मुख्तार और अतीक का सियासी साम्राज्य खत्म होने की कगार पर
मुख्तार अंसारी आज किसी पहचान का मोहताज नहीं, जिसकी पूर्वांचल में तूती बोलती थी, खासकर गाजीपुर, मऊ, बलिया और आजमगढ़ क्षेत्र में। आज मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है तो वहीं मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं। तो वहीं उनके करीबी अतुल राय घोसी से चुनाव जीते थे। अतुल राय आज जेल में बंद हैं और घोसी सीट से उन्हें किसी भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है, जिसके चलते चुनावी मैदान से पूरी तरह बाहर हो गए हैं। तो वहीं एक और बाहुबली नेता अतीक अहमद की दबंगई का आलम यह था कि प्रयागराज के इलाके में उनके मर्जी के बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। फूलपुर सीट से अतीक सांसद रहे, लेकिन पिछले साल प्रयागराज में उनकी और उनके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई थी। अतीक के दो बेटे अभी भी जेल में बंद हैं और उनकी पत्नी फरार हैं। इसके चलते अतीक के परिवार से कोई भी सदस्य इस बार के चुनावी मैदान में नजर नहीं आ रहा है। अतीक का भी सियासी साम्राज्य खत्म होता नजर आ रहा है।
डीपी यादव और गुड्डू पंडित चुनावी पिच से बाहर
जहां एक समय पश्चिमी यूपी में डीपी यादव का सियासी दबदबा था। नोएडा के रहने वाले पूर्व मंत्री डीपी यादव बदायूं से चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन बसपा और सपा ने किनारा किया तो उनकी सियासी जमीन खिसक गई। डीपी यादव इस बार अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन सपा और बीजेपी दोनों ने ही उन्हें टिकट नहीं दिया। इसी तरह गुड्डू पंडित बुलंदशहर के रहने वाले हैं, लेकिन अलीगढ़ से लेकर फतेहपुरी सीकरी तक से चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार उन्हें किसी भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बनाया है। डीपी यादव और गुड्डू पंडित दोनों ने ही पश्चिमी यूपी के बड़े बाहुबली नेताओं के रूप में पहचान बनाई थी, लेकिन इस बार चुनावी पिच से बाहर हैं.
धनंजय को टिकट की जगह मिली जेल और अमनमणि को मिला धोखा
अपहरण, रंगदारी के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह को सात साल की सजा होने के चलते सियासी पिच से बाहर हो गए हैं। धनंजय सिंह जौनपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे, लेकिन उन्हें सजा हो गई। इसके बाद अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाने की जुगत में थे। माना जा रहा था कि सपा धनंजय की पत्नी को जौनपुर सीट से टिकट दे सकती है, लेकिन रविवार को बाबू सिंह कुशवाहा को प्रत्याशी बना दिया गया। इसके चलते धनंजय सिंह इस बार लोकसभा चुनाव मैदान में नहीं नजर आएंगे। वहीं कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी ने जेल में रहते हुए अपने भाई अजीतमणि त्रिपाठी को लोकसभा का चुनाव लड़ाया था। बेटे अमनमणि को विधायक बनवाया था, लेकिन इस बार उनके साथ खेला हो गया। अमनमणि त्रिपाठी ने कांग्रेस का दामन थामा और महाराजगंज सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने उनकी जगह चौधरी बीरेंद्र को प्रत्याशी बना दिया। इसके चलते अमरमणि के परिवार से कोई भी चुनावी रण में नहीं हैं।
उमाकांत और रमाकांत खा रहे जेल की हवा
वहीं तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे उमाकांत यादव भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। दरअसल जौनपुर जिले के शाहगंज रेलवे स्टेशन स्थित जीआरपी थाने के 1985 के सिपाही हत्याकांड मामले में बसपा के पूर्व सांसद उमाकांत यादव अब आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। उमाकांत ही नहीं उनके भाई रमाकांत यादव जेल में बंद हैं. चार बार के सांसद और पांच बार के विधायक बाहुबली नेता रमाकांत यादव फतेहगढ़ जेल में बंद हैं और आजमगढ़ सीट से धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे हैं। नब्बे के बाद से पहली बार रमाकांत का परिवार चुनावी मैदान से नदारद है.
अतीक को चुनौती देने वाले करवरिया बंधु भी मैदान से नदारद
आगरा जेल में बंद ज्ञानपुर के पूर्व विधायक विजय मिश्र की सियासी तूती बोलती थी। हत्या, लूट, अपहरण, दुष्कर्म, एके-47 की बरामदगी जैसे अपराधों से नाता रहा है। चार बार विधायक रहे विजय मिश्र को वाराणसी की एक गायिका के साथ दुष्कर्म के मामले में 15 साल की सजा हो गई। इस बार के चुनावी मैदान से विजय मिश्रा बाहर हो गए हैं। इसी तरह इलाहाबाद में अतीक अहमद को सियासी चुनौती देने वाले करवरिया बंधु भी इस बार के चुनावी मैदान से नदारद हैं। अतीक के सामने कोई चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होता था तब करवरिया बंधु ही मैदान में उतरे थे। फूलपुर के पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया व उनके छोटे भाई पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की गिनती भी बाहुबली नेताओं में होती रही है, लेकिन इस बार कोई बड़ा नाम प्रभावी नहीं दिख रहा है।
हरिशंकर तिवारी के बेटे भीम शंकर को मिला चुनावी में उतरने का मौका
पूर्वांचल में एक समय बाहुबली नेता के तौर पर उभरे हरिशंकर तिवारी का दबदबा था। इस बार के चुनाव में हरिशंकर तिवारी के बेटे भीम शंकर तिवारी को डुमरियागंज सीट से सपा ने प्रत्याशी बनाया है। इसके अलावा पूर्वांचल में कोई दूसरा बाहुबली नेता के परिवार से कोई नजर नहीं आ रहा है। बुंदेलखंड में डकैत ददुआ उर्फ शिव कुमार पटेल की सियासी तूती बोलती थी। मिर्जापुर से उनके भाई बाल कुमार पटेल सांसद रह चुके हैं। इसके बाद बांदा सीट से भी चुनाव लड़े, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में नहीं नजर आ रहे हैं। वहीं हमीरपुर के कुरारा गांव के रहने वाले अशोक चंदेल बाहुबल के दम पर चार बार विधायक और एक बार सांसद रहे। अशोक चंदेल इस समय एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या के मामले में आगरा जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, जिसके चलते चुनावी मैदान में नहीं हैं। ऐसे ही फर्रुखाबाद के इंस्पेक्टर हत्याकांड मामले में मथुरा जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे माफिया अनुपम दुबे भी चुनावी रण से दूर हैं। बीजेपी के कद्दावर नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्याकांड में पूर्व विधायक विजय सिंह छह वर्षों से जेल में बंद हैं। विजय सिंह का दमखम कमजोर पड़ चुका है।
बृजेश सिंह के परिवार से भी किसी को टिकट नहीं
उन्नाव के बाहुबली कुलदीप सेंगर जेल में बंद हैं जबकि एक समय उनकी तूती बोलती थी। इसी तरह प्रतापगढ़ जिले में रघुराज प्रताप सिंह का तूती बोला करती थी, उनके रिश्ते में भाई अक्षय प्रताप सिंह सांसद रह चुके हैं। इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरे। इसी तरह बृजभूषण शरण का अपना गोंडा, कैसरगंज में दबदबा है, लेकिन बीजेपी ने अभी तक उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया है। इसी क्षेत्र में बाहुबली और तीन बार के सांसद रिजवान जहीर जेल में बंद हैं, जिसके चलते चुनावी मैदान से बाहर हैं। माफिया बृजेश सिंह का पूर्वांचल में अपना दबदबा है, लेकिन इस बार उनके परिवार के किसी को टिकट नहीं मिला है। ऐसे में चुनावी मैदान से पूरी तरह बाहर हैं।
क्या बाहुबली नेताओं का टूट गया तिलिस्म
देखा जाए तो एक तरह से सभी पार्टियों ने एक समय अपना रुतबा रखने वाले बाहुबलियों से कन्नी काट ली है। अब देखना होगा कि एक समय अपना दबदबा कायम करने वाले बाहुबली क्या फिर से एक बार उठ खड़े होते हैं या फिर जैसी हवा बह रही है उसी ओर चल पड़ेंगे। क्या कभी कायम रहा गुंडाराज अब अपना दम तोड़ देगा। ये तो समय आने पर पता ही चल जाएगा कि कौन कितने पानी में है।
जौनपुर के चर्चित बाहुबली सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी ने आज अपना नामांकन दाखिल किया। श्रीकला रेड्डी बसपा के टिकट पर जौनपुर से चुनावी मैदान में उतरीं हैं। नामांकन दाखिल करने से पहले श्रीकला रेड्डी ने एक सभा में शिरकत की। वहीं दूसरी ओर आज ही बाहुबली धनंजय सिंह को बरेली जेल से रिहा किया गया है। जिसके बाद बाहुबली सांसद सीधे बाबा नीम करोली महाराज के कैंची धाम पहुंचे। जहां उन्होंने नीम करोली महाराज के दरबार में पहुंचकर बाबा को धन्यवाद किया। इसके साथ ही उन्होंने अपनी पत्नी श्रीकला की जीत के लिए आशीर्वाद मांगा।
श्रीकला ने मजेदार अंदाज में की चुनावी सभा
नामांकन से पहले श्रीकला रेड्डी एक चुनावी सभा को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने आए हुए लोगों से देसी अंदाज में बात की। उन्होंने कहा,'हमें पहचानत हो, बताइए हम कौन हैं? अरे हम धनंजय सिंह की मेहरारू हैं।' दक्षिण भारतीय मूल की श्रीकला के बोलने के अंदाज को देखकर वहां मौजूद लोग जोर-जोर से हंसने लगते हैं। इसके बाद श्रीकला सभा में मौजूद महिलाओं से कहती हैं- 'हम आपकी पतोह हैं। अगर वोट ना देबो तो हम आपसे आके झगड़ा करबे। सोच लिहो, हम बड़ी झगड़ालू हैं।'
'हमारी सुप्रीमो मायावती भी मजदूरों को सपोर्ट करती हैं'
वहीं श्रीकला रेड्डी ने दिन में नामांकन कर दिया। अपने सहयोगियों और वकील के साथ पहुंचीं श्रीकला ने एक सेट नामांकन किया है। उन्होंने कहा कि धनंजय जी बाहर आ गए हैं। आज का मुहूर्त अच्छा है और आज मजदूर दिवस भी है। हमारी सुप्रीमो मायावती भी मजदूरों का सपोर्ट करती हैं। उन्होंने धनंजय के साथ आकर दूसरा सेट भरने की बात भी कही।
नीम करोली धाम में पत्नी की जीत का मांगा आशीर्वाद
नीम करोली धाम में बाहुबली धनंजय सिंह ने अपनी पत्नी श्रीकला की जीत के लिए आशीर्वाद भी मांगा। धनंजय सिंह ने कहा कि मेरी पत्नी बहुजन समाज पार्टी से चुनाव जौनपुर सीट पर चुनाव लड़ रही हैं। मैं यहां से सीधा जौनपुर अपने क्षेत्र में जाऊंगा और उनके लिए प्रचार करूंगा। इसके अलावा धनंजय सिंह ने बताया कि वह अपनी सजा पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। अगर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत दी, तो धनंजय सिंह अपना नामांकन दाखिल करेंगे। आपको बता दें कि अप्रैल 2024 में जौनपुर के बाहुबली सांसद धनंजय सिंह को लखनऊ बेंच द्वारा एक आपराधिक मामले में जमानत दी है। साल 2021 में उन पर एक पूर्व प्रधान की हत्या की साजिश रचने का आरोप था। इस हत्याकांड के एक मामले में वह आरोपित किए गए थे। इस मामले के चलते उन्हें हिरासत में लिया गया था और बाद में उन्हें बरेली जेल में बंद कर दिया गया था।
लोकसभा चुनावों के पांचवें चरण की रणभूमि तैयार है। सियासी दल अपने-अपने शब्दबाण लेकर तैयार हैं। वहीं इस बीच यूपी के दो बाहुबलियों ने फैसले ने सियासी माहौल में हलचल मचा दी है। जहां एक ओर हर कोई बीजेपी का दामन थाम कर अपने दामन के दाग धोने में लगा है। फिर चाहें वो गैंगस्टर हो या सुर्खियों में बना रहने वाला नेता। वहीं दूसरी ओर प्रदेश के एक बाहुबली ने बीजेपी की सियासी गाड़ी में बैठने से मना कर दिया है, तो दूसरे बाहुबली ने बीजेपी के इस प्रस्ताव को ससम्मान स्वीकार कर लिया है। सूबे के ये दो बाहुबली कोई और नहीं बल्कि जौनपुर में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और कुंडा से विधायक राजा भैया हैं। जहां जौनपुर में पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। वहीं दूसरी ओर कुंडा से विधायक राजा भैया ने बीजेपी को समर्थन देने से इनकार कर दिया और अपने समर्थकों को पसंद के आधार पर वोट देने की घोषणा कर दी है। अब देखना होगा कि दो बड़े बाहुबली नेताओं के इस ऐलान के बाद सियासत में और कौन सा मोड़ सामने आने वाला है।
क्या राजा भैया की 'ना' डुबो देगी बीजेपी की नैया?
यूपी की सियासत में बीजेपी से अलग रहकर भी राजा भैया सत्ताधारी दल के साथ चल रहे थे। पिछले आठ सालों से राजा भैया हर मुश्किल समय में बीजेपी के साथ खड़े रहे। अब उन्होंने आगे ऐसा न करने की घोषणा कर दी है। प्रतापगढ़ में अपने घर पर उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं की बैठक बुलाई। जिसके बाद तय हुआ कि उनके समर्थक जैसा चाहे, वैसा करें। इस बार के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी जनसत्ता दल ने उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है। पिछले हफ्ते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद कहा जा रहा था कि राजा भैया अब बीजेपी के साथ रहेंगे, लेकिन उन्होंने ऐन वक्त पर झटका दे दिया है। राजा भैया के इस ऐलान ने बीजेपी को मायूस कर दिया है। राजा भैया के ना से बीजेपी को कौशांबी और प्रतापगढ़ की लोकसभा सीट पर कड़ी टक्कर मिलेगी। जबकि बीजेपी इस उम्मीद में थी कि अगर राजा भैया उनके साथ आ गए, तो इन दो सीटों पर उनकी राह आसान होने के साथ ही बीजेपी को लेकर ठाकुरों के बीच में जो नाराजगी है। वो भी कम हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कौशांबी ऐसी लोकसभा सीट है जहां चुनाव में राजा भैया फैक्टर काम करता है। कौशांबी के पश्चिम में फतेहपुर, उत्तर में प्रतापगढ़, दक्षिण में चित्रकूट आता है।
धनंजय सिंह का साथ बीजेपी को दे पाएगा राहत?
धनंजय सिंह के ऐलान के बाद केवल जौनपुर में ही नहीं बल्कि पूर्वांचल की कई सीटों पर सियासी समीकरण बदल जाएंगे। पूर्व सांसद के खुलेतौर पर साथ आ जाने से जौनपुर में बीजेपी उम्मीदवार कृपाशंकर सिंह की राह अब और आसान होने वाली है। इसके साथ-साथ पूर्वांचल की कई सीटों पर भी बीजेपी डैमेज कंट्रोल करने में सफल रह सकती है। जौनपुर की राजनीति में धनंजय सिंह पुराने खिलाड़ी हैं। जौनपुर में 2 लाख से ज्यादा ठाकुर वोटर हैं। धनंजय खुद भी ठाकुर हैं और अपने समाज में उनकी अच्छी खासी पैठ भी रखते हैं। ऐसे में धनंजय का ऐलान बीजेपी के लिए राहत देने वाला हो सकता है। धनंजय सिंह का रिश्ता वाराणसी में बृजेश सिंह से लेकर मिर्जापुर में विनीत सिंह और कुंडा में रघुराज प्रताप सिंह जैसे ठाकुर बाहुबलियों के साथ रहा है। पूर्वांचल में इन ठाकुर बाहुबली की तूती बोलती है। खासकर ठाकुर वोटरों में इन बाहुबलियों को अच्छी पकड़ रही है। जौनपुर सीट से लेकर प्रतापगढ़, गाजीपुर, बलिया, अयोध्या, भदोही, चंदौली, मछलीशहर, घोसी, सोनभद्र और वाराणसी जैसी सीटों पर ठाकुर मतदाता ठीक-ठाक हैं। देखा जाए तो धनंजय सिंह का पार्टी के साथ खड़े होना राहत भरा है।
जौनपुर का जातीय समीकरण
बात करें जौनपुर लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की तो इस सीट पर करीब 29.5 लाख मतदाता हैं। इनमें 15.72 फीसदी के आसपास ब्राह्मण हैं। दूसरे नंबर पर ठाकुर वोटर आते हैं। जौनपुर सीट पर करीब 13.30 फीसदी राजपूत हैं। मुस्लिम करीब 2.20 लाख, यादव करीब 2.25 लाख और करीब 2.30 लाख के आसपास दलित मतदाता है। जौनपुर में अब तक हुए 17 चुनावों में से 11 बार राजपूत उम्मीदवारों को जीत मिली है। वहीं, दो बार ब्राह्मण और चार बार यादव कैंडिडेट भी जीते हैं। मौजूदा उम्मीदवार कृपाशंकर सिंह भी ठाकुर हैं। ऐसे में धनंजय के दूर रहने से ठाकुर वोटरों में जो बिखराव का खतरा था जो कि अब टल गया है।
कौशांबी का जातीय समीकरण
कौशांबी लोकसभा सीट दलित बहुल सीट मानी जाती है। कौशांबी लोकसभा सीट के भीतर मंझनपुर, चायल और सिराथू विधानसभा सीटें हैं। इन तीन विधानसभा सीटों पर मंझनपुर और चायल में पासी वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। सिराथू में सोनकर और जाटव के लोग ज्यादा संख्या में हैं। सीट पर पिछड़ी जातियों में पटेल, मौर्य, लोधी, पाल, यादव वोटरों की भी ठीक ठाक संख्या है। चायल में कुर्मी और पाल वोटर अधिक हैं। तीनों विधानसभा में सामान्य जातियों के वोटर भी ठीक ठाक संख्या में हैं। कौशांबी, नेवादा ब्लाक में ब्राह्मण वोटर भी हैं। इन सभी वोटरों में राजा भैया की अच्छी खासी पैठ मानी जाती है। यही हाल प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर भी है। प्रतापगढ़ में ठाकुर और ब्राह्मण वोटरों से भी राजा भैया के अच्छे संबंध माने जाते हैं। ऐसे में यूपी के दो बाहुबलियों के बाद सियासत का ऊंट किस करवट बैठता है ये देखने वाली बात होगी।
पैसे बचाने के तरीके: चाहकर भी नहीं कर पाते हैं धन की बचत, तो ये टिप्स आपके काम की हैं
December 17, 2022