भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान किया गया है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को देश के प्रभावशाली किसान नेता में से एक माना जाता है. अपने प्रधानमंत्रित्व काल में चौधरी चरण सिंह ने किसान के हित में कई ऐसे फैसले लिए थे, जिन्हें आज भी याद किया जाता है. वैसे तो वह पूरे देश में लोकप्रिय थे, लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश में उनका प्रभाव काफी ज्यादा था. भारत सरकार ने चौधरी चरण सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा ऐसे वक्त की गई है, उनके पोते जयंत चौधरी के NDA के साथ आने की चर्चाएं तेज हैं. बता दें कि इसी साल लोकसभा चुनाव भी होने हैं.
श्री चरण सिंह के संघर्ष की कहानी
श्री चरण सिंह का जन्म साल 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। कानून में प्रशिक्षित श्री सिंह ने गाजियाबाद से अपने पेशे की शुरुआत की। वे 1929 में मेरठ आ गये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
राजनीतिक सफर
वे सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया। जून 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया। बाद में 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था।
श्री सी.बी. गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह एवं कृषि मंत्री (1960) थे। श्रीमती सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में वे कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे। उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया।
जब पहली बार यूपी के बने सीएम
कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। श्री चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की एवं उनकी ख्याति एक ऐसे कड़क नेता के रूप में हो गई थी जो प्रशासन में अक्षमता, भाई – भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। प्रतिभाशाली सांसद एवं व्यवहारवादी श्री चरण सिंह अपने वाक्पटुता एवं दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते हैं।
भूमि सुधार में चौधरी चरण सिंह को श्रेय
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके।
सरल स्वाभाव के चलते हुए लोकप्रिय
देश में कुछ-ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की हो। एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले श्री चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला। श्री चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखी जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्’ आदि प्रमुख हैं।
भारत सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने का ऐलान किया है। 8 बार चुनाव जीतने वाले नरसिंह राव को कांग्रेस पार्टी में 50 साल से ज्यादा समय गुजारने के बाद प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। नरसिंह राव को कई कारणों की वजह से खास माना जाता है। यहां तक कि नरसिंह राव को भारत की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। नरसिंह राव कई भाषाओं के भी जानकार थे। कहा तो ये भी जाता है कि उन्हें 10 भाषाओं में बात करने और उसका अनुवाद करने का महारथ हासिल था। आज हम भारत रत्न से सम्मानित होने जा रहे पीवी नरसिंह राव के बारे में आपको सबकुछ बताने जा रहे हैं।
परिवार के बारे में
श्री पी. रंगा राव के पुत्र श्री पी.वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को करीमनगर में हुआ था। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की। श्री पी.वी. नरसिंह राव के तीन बेटे और पांच बेटियां हैं। पेशे से कृषि विशेषज्ञ एवं वकील श्री राव राजनीति में आए एवं कुछ महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला।
ऐसे हुई राजनीति की शुरुआत
पीवी नरसिम्हा राव आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून एवं सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री एवं 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे। वे 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वे 1975 से 76 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव, 1968 से 74 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष एवं 1972 से मद्रास के दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उपाध्यक्ष रहे। वे 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य, 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे और दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए।
विश्व भर में मिली ख्याति
लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के तौर पर 1978-79 में उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के एशियाई एवं अफ्रीकी अध्ययन स्कूल द्वारा आयोजित दक्षिण एशिया पर हुए एक सम्मेलन में भाग लिया। श्री राव भारतीय विद्या भवन के आंध्र केंद्र के भी अध्यक्ष रहे। वे 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री, 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक गृह मंत्री एवं 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक रक्षा मंत्री रहे। उन्होंने 5 नवंबर 1984 से योजना मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था। 25 सितम्बर 1985 से उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में पदभार संभाला।
कला प्रेमी थे पी.वी. नरसिम्हा राव
श्री राव संगीत, सिनेमा एवं नाटकशाला में रुचि रखते थे। भारतीय दर्शन एवं संस्कृति, कथा साहित्य एवं राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएँ सीखने, तेलुगू एवं हिंदी में कविताएं लिखने एवं साहित्य में उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने स्वर्गीय श्री विश्वनाथ सत्यनारायण के प्रसिद्ध तेलुगु उपन्यास ‘वेई पदागालू’ के हिंदी अनुवाद ‘सहस्रफन’ एवं केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित स्वर्गीय श्री हरि नारायण आप्टे के प्रसिद्ध मराठी उपन्यास “पान लक्षत कोन घेटो” के तेलुगू अनुवाद ‘अंबाला जीवितम’ को सफलतापूर्वक प्रकाशित किया। उन्होंने कई प्रमुख पुस्तकों का मराठी से तेलुगू एवं तेलुगु से हिंदी में अनुवाद किया एवं विभिन्न पत्रिकाओं में कई लेख एक उपनाम के अन्दर प्रकाशित किया। उन्होंने राजनीतिक मामलों एवं संबद्ध विषयों पर संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम जर्मनी के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिया। विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने 1974 में ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली और मिस्र इत्यादि देशों की यात्रा की।
विदेश मंत्री के रूप में शानदार कार्यकाल
विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान श्री राव ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक अनुभव का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। प्रभार सँभालने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने जनवरी 1980 में नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के तृतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने मार्च 1980 में न्यूयॉर्क में जी-77 की बैठक की भी अध्यक्षता की। फरवरी 1981 में गुट निरपेक्ष देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में उनकी भूमिका के लिए श्री राव की बहुत प्रशंसा की गई थी। श्री राव ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों में व्यक्तिगत रूप से गहरी रुचि दिखाई थी। व्यक्तिगत रूप से मई 1981 में कराकास में ईसीडीसी पर जी-77 के सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया।
ये भी उपलब्धि इनके नाम
साल 1982 और 1983 भारत और इसकी विदेश नीति के लिए अति महत्त्वपूर्ण था। खाड़ी युद्ध के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन का सातवाँ सम्मलेन भारत में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी ने की। वर्ष 1982 में जब भारत को इसकी मेजबानी करने के लिए कहा गया और उसके अगले वर्ष जब विभिन्न देशों के राज्य और शासनाध्यक्षों के बीच आंदोलन से सम्बंधित अनौपचारिक विचार के लिए न्यूयॉर्क में बैठक की गई, तब श्री पी.वी. नरसिंह राव ने गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों के साथ नई दिल्ली और संयुक्त राष्ट्र संघ में होने वाली बैठकों की अध्यक्षता की थी।
दूसरे देशों के मसलों को भी सुलझाया
श्री राव विशेष गुट निरपेक्ष मिशन के भी नेता रहे जिसने फिलीस्तीनी मुक्ति आन्दोलन को सुलझाने के लिए नवंबर 1983 में पश्चिम एशियाई देशों का दौरा किया। श्री राव नई दिल्ली सरकार के राष्ट्रमंडल प्रमुखों एवं सायप्रस सम्बन्धी मामले पर हुई बैठक द्वारा गठित कार्य दल के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे। विदेश मंत्री के रूप में श्री नरसिंह राव ने अमेरिका, यू.एस.एस.आर, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, वियतनाम, तंजानिया एवं गुयाना जैसे देशों के साथ हुए विभिन्न संयुक्त आयोगों की भारत की ओर से अध्यक्षता की।
भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले एमएस स्वामीनाथन जिन्हें लोग ग्रेन गुरु से लेकर प्यार से SMS भी कहते थे. 98 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था, यह देश को अपूर्णीय क्षति थी. पूरी दुनिया उन्हें भारत में हरित क्रांति के वास्तुकार के रूप में देखती है. उन्होंने देश के हर आम व्यक्ति के लिए हित के काम किए. उन्होंने देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया. स्वामीनाथन जितना बीजों के जीनोम के बारे में समझते थे, उतना ही वो किसानों की जरूरतों के प्रति भी जागरूक थे.
खेती को वो पूरी तरह समझते थे
खेती की जटिलताओं को समझने की उनकी यही क्षमता उन्हें एक असाधारण व्यक्तित्व बनाती है. ये साठ के दशक के मध्य की बात है, जब भारत को लगातार सूखे का सामना करना पड़ा था. ऐसे कठिन वक्त में किसानों को दूसरी फसल लेने के लिए प्रेरित करना एक चुनौती थी. ऐसे में विश्व स्तर पर कृषि अर्थशास्त्री अपने लोगों को सर्वाइवल के लिए पर्याप्त अनाज उगाने के भारत के प्रयासों को नकार रहे थे. प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री योगिंदर के.अलघ ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया है कि उस दौर में फसल के पैटर्न और पैदावार पर अनुभव से तैयार डेटा और फीडबैक इकट्ठा करने के काम के लिए सरकार द्वारा चुने गए सभी जिला कलेक्टरों को ऐसी जानकारी साझा करने के लिए मैंने भी लिखा था. यहां तक कि जिन्होंने पहले कभी खेती नहीं की थी, उन्हें भी स्वामीनाथन के मार्गदर्शन से आत्मविश्वास मिला. उनमें मैं भी शामिल था.
पंजाब-हरियाणा की पहचान की
योगिंदर के.अलघ के अनुसार जिले-वार डेटा इकट्ठा करने की कवायद से हमें अच्छी कृषि वृद्धि दिखाने वाले जिलों की हरित क्रांति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आवश्यक प्रयासों को समझने में मदद मिली. व्यापक मानचित्र तैयार करने के दौरान स्वामीनाथन हमारे पीछे खड़े रहे. उपलब्ध सिंचाई सुविधाओं और व्यवहारिक जरूरतों पर उनकी अंतर्दृष्टि बहुत काम आई और हमें पंजाब और हरियाणा पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिली.
मौसम और मिट्टी के अनुसार बनाया पैटर्न
स्वामीनाथन टिकाऊ और विविध कृषि के लिए काम करने वालों के लिए ताकत का एक मजबूत स्तंभ रहे हैं. हालांकि, स्वामीनाथन आश्वस्त थे कि पंजाब और हरियाणा के मॉडल को हर जगह दोहराया नहीं जा सकता है. उन्होंने यह भी महसूस किया कि देश के अन्य हिस्सों में अलग-अलग फसल पैटर्न और मॉडल की आवश्यकता है. बाद में, यह उनका ही दृष्टिकोण था जिसने देश में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का एक नेटवर्क बनाने में मदद की, कॉर्पोरेट्स की भागीदारी के लिए दरवाजे खोले और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किया.
मिले हैं ये सम्माान
एमएस स्वामीनाथन को 1967 में 'पद्म श्री', 1972 में 'पद्म भूषण' और 1989 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया जा चुका है. स्वामीनाथन सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर में सराहे जाते थे. उन्हें 84 बार डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका था. उन्हें मिली 84 डॉक्टरेट की उपाधि में से 24 उपाधियां अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने दी थीं. "भारत की हरित क्रांति के जनक" के रूप में प्रतिष्ठित, डॉ. स्वामीनाथन के अग्रणी कार्य ने न केवल देश के कृषि परिदृश्य को नया आकार दिया है, बल्कि भोजन की कमी से लड़ने के लिए वैज्ञानिक उत्कृष्टता और समर्पण का एक स्थायी उदाहरण भी स्थापित किया है।
"हरित क्रांति" के पिता के तौर पर बनी पहचान
7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में जन्मे डॉ. स्वामीनाथन की कृषि महानता की यात्रा जल्दी शुरू हुई। मद्रास कृषि कॉलेज से कृषि विज्ञान की डिग्री के साथ, उन्होंने प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई की, जहां आनुवंशिकी और पौधों के प्रजनन में उनकी रुचि जागृत हुई। कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को 'फादर ऑफ ग्रीन रेवोल्यूशन इन इंडिया' यानी 'हरित क्रांति के पिता' भी कहा जाता है के कुम्भकोणम में जन्मे एमएस स्वामीनाथन पौधों के जेनेटिक वैज्ञानिक थे. उन्होंने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किए थे. भारतीय कृषि पर डॉ. स्वामीनाथन का परिवर्तनकारी प्रभाव 1960 के दशक में उभरना शुरू हुआ जब उन्होंने उच्च उपज देने वाली फसल किस्मों की शुरूआत की वकालत की। उनका दूरदर्शी दृष्टिकोण उस समय भारत में हरित क्रांति को आगे बढ़ाने में सहायक था जब देश अभी भी गरीबी और सामाजिक सुरक्षा की कमी से जूझ रहा था।
भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया आगे
समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को पहचानते हुए, उन्होंने गेहूं और चावल की ऐसी किस्में विकसित करने के लिए अथक प्रयास किया जो न केवल अधिक उपज देने वाली थीं, बल्कि रोग प्रतिरोधी भी थीं और भारतीय मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के लिए उपयुक्त थीं। डॉ. स्वामीनाथन के प्रयासों का प्रभाव किसी क्रांतिकारी से कम नहीं था। भारत का खाद्य उत्पादन आसमान छू गया, और देश भोजन की कमी की स्थिति से खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ गया। उनके काम ने न केवल संभावित अकाल को टाला, बल्कि अनगिनत कृषक समुदायों की आर्थिक स्थिति को भी ऊंचा उठाया। अपने वैज्ञानिक योगदान के अलावा, डॉ. स्वामीनाथन ने हमेशा टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों के महत्व पर जोर दिया है। उन्होंने माना कि हालाँकि उत्पादकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे दीर्घकालिक पर्यावरणीय क्षरण की कीमत पर नहीं आना चाहिए। टिकाऊ कृषि के लिए उनकी वकालत विश्व स्तर पर गूंजी है।
MSP को लेकर किसानों का आंदोलन दिन पर दिन उग्र होता जा रहा है. किसानों ने आर-पार की लड़ाई को लेकर जमकर कमर कस ली है. जिसके चलते हरियाणा और पंजाब के किसान संगठनों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कानूनी गारंटी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने समेत अन्य मांगों को लेकर 13 फरवरी को दिल्ली कूच का ऐलान किया है. जहां एक ओर किसानों के इस ऐलान के बाद सरकार और प्रशासन हाथ पांव फूलने लगे हैं और प्रशासन ने किसानों को रोकने के लिए प्लान भी तैयार कर लिया है. जिसके चलते हरियाणा पुलिस ने ट्रैफिक एडवाइजरी जारी कर दी है और जनता से अपील की है कि लोग 13 फरवरी को राज्य के मुख्य मार्ग का उपयोग अति आवश्यक स्थिति में ही करें और अति आवश्यक होने पर ही पंजाब की यात्रा करें. साथ ही प्रशासन द्वारा हरियाणा से पंजाब की ओर जाने वाले सभी मुख्य मार्गों पर यातायात बाधित होने की भी संभावना जताई जा रही है .
पुलिस ने बताया कहां से मिलेगी जानकारी
हरियाणा की एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) ममता सिंह ने बताया कि ट्रैफिक की वर्तमान स्थिति जानने के लिए हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म- @police_haryana, @DGPHaryana और Haryana Police फेसबुक पेज को फॉलो करें. दिल्ली-चंडीगढ़ हाईवे पर यातायात बाधित होने की स्थिति में चंडीगढ़ से दिल्ली जाने वाले यात्रियों को डेराबस्सी, बरवाला/रामगढ़, साहा, शाहबाद, कुरूक्षेत्र के रास्ते अथवा पंचकूला, एनएच-344 यमुनानगर इंद्री/पिपली, करनाल होते हुए दिल्ली जाने की सलाह दी गई है. इसी प्रकार, दिल्ली से चंडीगढ़ जाने वाले यात्री करनाल, इंद्री/पिपली, यमुनानगर, पंचकूला होते हुए या फिर कुरूक्षेत्र, शाहबाद, साहा, बरवाला, रामगढ़ होते हुए अपने गन्तव्य पर पहुंच सकते हैं.
हरियाणा के करीब 12 जिलों में लगी धारा 144
एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) ममता सिंह ने लोगों से किसी भी आपात परिस्थिति में डायल-112 पर संपर्क करने की अपील करते हुए कहा कि लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने, किसी भी तरह की हिंसा को रोकने और ट्रैफिक सुगम बनाने के लिए पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद है. इस संबंध में सभी रेंज एडीजीपी/आईजीपी, पुलिस आयुक्त और जिलों के एसपी को दिशा-निर्देश जारी कर दिये गए हैं. प्रभावित जिलों खासकर अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, फतेहाबाद, सिरसा में ट्रैफिक डायवर्जन की व्यवस्था की गई है. वहीं राज्य के अंदर अन्य सभी मार्गों पर ट्रैफिक की स्थिति सामान्य रहेगी. हरियाणा के कम से कम 12 जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है और चंडीगढ़ से सटे पंचकूला में भी धारा 144 लागू है। जिसका आदेश पंचकूला के डीसीपी सुमेर सिंह प्रताप ने जारी किए हैं. साथ ही सार्वजनिक स्थान पर एकसाथ पांच या उससे अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध रहेगा.
13 फरवरी तक इंटरनेट सेवाएं बाधित
हरियाणा के गृह विभाग ने एक आदेश जारी कर जानकारी दी है कि अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद, सिरसा और पुलिस जिला डबवाली में 11 फरवरी सुबह 6 बजे से लेकर 13 फरवरी रात 12 बजे तक मोबाइल इंटरनेट सेवाएं, बल्क एसएमएस और डोंगल सर्विस ठप रहेंगी. पर्सनल एसएमएस, बैकिंग एसएमएस, ब्रॉडबैंड व लीज लाइंस पहले की तरह चलती रहेंगी और पैदल या ट्रैक्टर-ट्रालियों व अन्य वाहनों के साथ जलूस निकालने, प्रदर्शन करने, मार्च करने, लाठी, डंडा या हथियार लेकर चलने पर प्रतिबंध रहेगा. वहीं हरियाणा और पंजाब के करीब 23 किसान संगठनों का कहना है कि सरकार जब तक उनकी मांगों को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाती, तब तक उनका आंदोलन नहीं रुकेगा.
12 फरवरी को दूसरे दौर की बैठक
किसान संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल 12 फरवरी को चंडीगढ़ सेक्टर 26 स्थित महात्मा गांधी स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में केंद्र सरकार के साथ दूसरे दौर की वार्ता करेगा. किसानों और सरकार के बीच पहले दौर की वार्ता 8 फरवरी को यहीं पर हुई थी. दूसरे दौर की बैठक में सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पीयूष गोयल और नित्यानंद राय मौजूद रहेंगे.
राहुल द्रविड़ भारतीय क्रिकेट टीम को विश्व चैंपियन बनाने वाले राहुल द्रविड़ को पूरे देश से सराहना मिली। राहुल द्रविड़ का कार्यकाल तो पिछले साल वनडे क्रिकेट वर्ल्ड कप के बाद ही पूरा हो गया था, लेकिन टी-20 विश्वकप 2024 तक के लिए उनका कार्यकाल बढ़ा दिया गया था और उसका परिणाम सभी ने देखा। लेकिन अब राहुल द्रविड़ के लिए भारत रत्न की मांग की गई है। वो भी लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर ने...
'द वॉल' को मिले भारत रत्न
राहुल द्रविड़ भारतीय टीम के सबसे पसंदीदा कोच रहे हैं। क्रिकेट जगत से अब तक सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न से नवाजा गया है, लेकिन अब सुनील गावस्कर ने मांग की है कि राहुल द्रविड़ को भी भारत रत्न मिलना चाहिए। हालांकि उनका कहना है कि ऐसा कोच के पद के लिए नहीं बल्कि कप्तान और खिलाड़ी के तौर पर होना चाहिए।
सुनील गावस्कर ने भारत सरकार से आग्रह करते हुए कहा, "यह उचित होगा यदि सरकार राहुल द्रविड़ को भारत रत्न से सम्मानित करे और वे इसके हकदार भी हैं। वे एक महान खिलाड़ी और कप्तान रहे। उन दिनों वेस्टइंडीज में सीरीज जीतना आसान नहीं था और वे ऐसे केवल तीसरे भारतीय कप्तान भी रहे। जिन्होंने इंग्लैंड में जाकर इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज जीती हो। उन्होंने नेशनल क्रिकेट अकादमी में नए टैलेंट को उभारने का काम बखूबी किया और सीनियर टीम के एक बढ़िया कोच भी रहे।"
साल 2014 में की कोचिंग की शुरुआत
राहुल द्रविड़ एक महान खिलाड़ी रहे, फिर वो साल 2014 में इंग्लैंड दौरे पर भारतीय टीम के मेंटर रहे थे। साल 2015 में उन्हें अंडर-19 और इंडिया-ए टीम का हेड कोच नियुक्त किया गया। उनके कोच रहते अंडर-19 टीम 2016 के वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंची, लेकिन जीत नहीं पाई। लेकिन उसके 2 साल बाद टीम इंडिया ने ट्रॉफी उठाकर ही दम लिया। इस दौरान उन्होंने ऋषभ पंत, वॉशिंग्टन सुंदर और ईशान किशन जैसे फ्यूचर स्टार्स को तैयार किया। आखिरकार 2019 में उन्हें भारत की सीनियर टीम का कोच नियुक्त किया गया।
खिलाड़ी राहुल द्रविड़ का करियर शानदार
राहुल द्रविड़ के व्यक्तिगत करियर पर नजर डालें, तो उन्होंने 164 टेस्ट मैचों में 13,288 रन बनाए. उन्होंने 344 वनडे मैचों में 10,889 रन भी बनाए हैं। राहुल द्रविड़ के नाम इंटरनेशनल क्रिकेट में 24 हजार से अधिक रन हैं और तीनों फॉर्मेट में मिलाकर दुनिया में सातवें सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज भी हैं। इंटरनेशनल क्रिकेट में उनके नाम 48 शतक और 146 फिफ्टी भी हैं।
सिक्सर किंग युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह अक्सर पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पर जुबानी हमला करते रहते हैं। हाल ही में योगराज सिंह ने जी स्विच को एक इंटरव्यू दिया, जिसमें उन्होंने धोनी को तो बातें सुनाई ही, साथ ही पूर्व कप्तान कपिल देव को भी घेरे में ले लिया। आपको बता दें, युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह भी भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रह चुके हैं। उन्होंने भारत के लिए 1 टेस्ट और 6 वनडे खेले हैं।
योगराज सिंह ने कपिल देव पर लगाया आरोप
युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह के रिश्ते कपिल देव से कुछ तनावपूर्ण हैं। योगराज सिंह के मुताबिक, साल 1981 में कपिल देव उनमें अपना प्रतिद्वन्दी देखते थे, यही वजह है कि उन्होंने उन्हें टीम से बाहर कर दिया। योगराज सिंह ने इंटरव्यू में कहा कि मैं लोगों को दिखाना चाहता हूं कि योगराज चीज क्या है? आज सारी दुनिया मेरे पैरों के नीचे है। वहीं जिन लोगों ने बुरा किया उनमें से किसी को कैंसर है, किसी का घर टूट गया, तो किसी का बेटा ही नहीं है। उन्होंने कहा कि आप समझ रहे होंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूं। वो हैं आपके सर्वाकालिक महान कप्तान मिस्टर कपिल देव।
‘वो हाल करके छोड़ूंगा दुनिया थूकेगी’
योगराज सिंह ने आगे कहा कि कपिल देव को मैंने कहा था कि वो हाल करके छोड़ूंगा दुनिया थूकेगी पर आज युवराज सिंह के पास 13 ट्रॉफी है और कपिल देव के पास सिर्फ एक वर्ल्ड कप। बस बात यहीं पर खत्म हो जाती है।
धोनी पर फिर से साधा निशाना
योगराज सिंह महेंद्र सिंह धोनी पर जुबानी हमला करते अक्सर सुनाई देते है। एक बार फिर से योगराज सिंह धोनी पर बोले कि वो जिंदगी भर धोनी को माफ नहीं करेंगे। उन्होंने धोनी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें अपना चेहरा शीशे में देखना चाहिए। धोनी ने युवराज की जिंदगी बर्बाद कर दी है। वो अभी 4-5 साल और खेल सकता था। योगराज सिंह ने भारत को वर्ल्ड कप जिताने के लिए अपने बेटे युवराज सिंह को भारत रत्न से भी नवाजे जाने की मांग की।
पैसे बचाने के तरीके: चाहकर भी नहीं कर पाते हैं धन की बचत, तो ये टिप्स आपके काम की हैं
December 17, 2022