NOIDA: सेक्टर-20 थाना क्षेत्र के सेक्टर-30 में रहने वाली महिला वकील का शव बरामद कर लिया गया है। महिला वकील रेनु सिन्हा का शव उन्ही के घर के अंदर ग्राउंड फ्लोर पर बने वॉशरूम में पड़ा मिला। जिसके बाद तत्काल पुलिस ने आरोपी पति को भी गिरफ्तार कर लिया। दरअसल, स्टाइलोम सेक्टर-45 में रहने वाले अजय कुमार ने सेक्टर-20 थाना पुलिस को सूचना दी थी कि पिछले दो दिनों से उनकी बहन रेनु सिन्हा और उनके जीजा नितिन नाथ सिंह का फोन नहीं लग रहा है। सूचना के आधार पर पुलिस जब मौके पर पहुंची तो घर अंदर से लॉक मिला। जिसके बाद पुलिस ने मृतक महिला के भाई और पड़ोसियों के सामने ही उनके घर का दरवाजा तोड़ा।
महिला वकील की हत्या की पूरी कहानी जानिए
सेक्टर-30 रहने वाली महिला वकील रेनु सिन्हा का शव बरामद कर पुलिस ने हत्या का भी खुलासा कर दिया है। मृतक महिला का पति नितिन नाथ सिंह हत्या का आरोपी निकला। पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला कि मृतक रेनु सिन्हा और उनके पति नितिन नाथ सिंह के बीच काफी दिनों से अनबन चल रही थी। बताया जा रहा है प्रॉपर्टी विवाद को लेकर दोनों के बीच अनबन थी। इसे लेकर दोनों के बीच तू-तू मैं-मैं के साथ मारपीट भी हो चुकी थी। डीसीपी हरीश चंद्र के मुताबिक नितिन नाथ अपनी प्रॉपर्टी को बेंचना चाहता था। जिसका रेनु सिन्हा विरोध कर रही थी।
साढ़े चार करोड़ में हुई थी मकान की डील
डीसीपी हरीश चंद्र ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि नितिन नाथ अपनी प्रॉपर्टी को बेंचना चाहता था। आरोपी नितिन नाथ जो कि खुद सिविल सर्वेंट भी रह चुका है, उसने मकान की डील भी साढ़े चार करोड़ में कर ली थी। लेकिन रेनु सिन्हा मकान बेंचने का विरोध कर रही थी। जब रेंनु ने नितिन की बात नहीं मानी, तो उसने रेनु को रास्ते से हटाने का ही प्लान बना लिया और वकील रेनु को मौत के घाट उतार दिया।
हत्या के बाद मकान में छिपा रहा आरोपी
अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद आरोपी मकान में ही छिप गया। बताया जा रहा है दो दिन तक वकील का शव उनके घर में पड़ा रहा और आरोपी भी उसी घर में खुद को कैद कर रखा था।
विदेश भागने की भी थी तैयारी
नितिन नाथ सिंह जो इंडियन इन्फॉर्मेशन सर्विस में अफसर रह चुका है, उसने हत्या के बाद विदेश भागने की भी तैयारी कर ली थी। पुलिस ने आरोपी के पास से पासपोर्ट भी जब्त किया है। जानकारी के मुताबिक आरोपी का बेटा भी विदेश में पढ़ाई करता है। वो वहीं पर भागने की तैयारी कर रहा था।
चुनावी बॉन्ड स्कीम ! आप भी सोच रहे होंगे कि अब ये क्या बला है, अरे रुकिये जरा हम आपको सब कुछ बतायेंगे और विस्तार से, लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि इन बॉन्ड को लेकर SC ने क्या फैसला सुनाया है. दरअसल लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स यानी चुनावी बॉन्ड योजना पर SC ने अवैध करार देते हुए रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा है "कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और वोटर्स को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है. नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है।" कोर्ट ने माना है कि गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. इस पर CJI ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस बॉन्ड के अलावा भी काले धन को रोकने के दूसरे तरीके हैं. बॉन्ड की गोपनीयता 'जानने के अधिकार' के खिलाफ है। साथ ही कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए.
आखिर है क्या चुनावी बॉन्ड ?
चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी SBI की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है. चुनावी बॉन्ड को ऐसा कोई भी दाता खरीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है और जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं. बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है. ये बॉन्ड SBI की 29 शाखाओं को जारी करने और भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था, और ये बॉन्ड 1,000 रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं. ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं. चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते थे.
कब और क्यों चुनावी बॉन्ड जारी किया गया?
2017 में केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया. संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया. इसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा मिलता है. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे. इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में या वेबसाइट से भी ऑनलाइन इसे खरीद सकता था.
चुनावी बॉन्ड योजना पर क्यों छिड़ा विवाद?
बॉन्ड को लेकर कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स समेत 4 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि चुनावी बॉन्ड के जरिए गुपचुप फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित करती है और यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन है. उनका कहना था कि इसमें शेल कंपनियों की तरफ से भी दान की अनुमति दे दी गई है. चुनावी बॉन्ड पर सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर को शुरू हुई थी,. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने की.
देश की राजधानी दिल्ली से इस समय की बड़ी खबर सामने आ रही है, जहां पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 1 अक्टूबर तक बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। बुलडोजर कार्यवाही के लिए अब राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट से इजाजत लेनी होगी। आपको बता दें, उत्तर प्रदेश में ‘सीएम योगी का बुलडोजर एक्शन’ काफी चर्चा में रहा था। वहीं, बीते दिनों देश के अन्य राज्यों जैसे कि राजस्थान, मध्य-प्रदेश, गुजरात और अन्य जगहों से भी बुलडोजर एक्शन की खबरें लगातार सामने आ रही थीं।
सीएम योगी के बुलडोजर मॉडल पर SC की रोक!
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की तरह बुलडोजर एक्शन लेने वाले राज्यों पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है और सभी राज्यों को साफ निर्देश दिया है कि बिना इजाजत के बुलडोजर एक्शन नहीं लिया जाएगा। बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर हुई याचिकाओं के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने ये रोक लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि अगली सुनवाई तक किसी भी राज्य में कोई बुलडोजर एक्शन नहीं होगा।
इन मामलों में होगा बुलडोजर एक्शन!
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बुलडोजर एक्शन पर रोक तो लगाई गई है, लेकिन कुछ मामलों में छूट भी दी गई है। बुलडोजर एक्शन वाले अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को अवैध अतिक्रमण में बुलडोजर चलाने की छूट दी है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि उसका ये आदेश सड़क, फुटपाथ, रेलवे लाइनों, जलाशयों पर अतिक्रमण पर लागू नहीं होगा यानी कि अगर सड़क, फुटपाथ या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर कोई अतिक्रमण करता है तो राज्य सरकार बुलडोजर एक्शन ले सकती है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दायर की थी याचिका
बुलडोजर एक्शन के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद में याचिका दायर की थी। जिसमें बुलडोजर एक्शन को लेकर सरकारों द्वारा मनमानी की बात कही गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान 1 अक्टूबर तक रोक लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया कि अगर कार्रवाई दो हफ्ते रोक दी तो आसमान नहीं फट पड़ेगा। आप इसे रोक दीजिए, 15 दिन में क्या होगा?
योगी सरकार के कांवड रुट पर नेम प्लेट लगाने के फरमान को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ रूट पर पड़ने वाली दुकानों पर दुकानदारों के नाम लिखने के निर्देशपालन पर रोक लगा दी। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड की सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनाई 26 जुलाई को होगी।
नेम प्लेट मसले पर कोर्ट में क्या हुआ?
कांवड़ यात्रा के रास्तें में पड़ने वाली दुकानों पर नेम प्लेट लगाने के फरमान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दी गईं थीं, जिसे संज्ञान में लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही की। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, अभी ये फैसला 2 राज्यों में हुआ है। अन्य 2 राज्य और इसे करने वाले हैं। अल्पसंख्यक और दलितों को अलग-थलग किया जा रहा है।
इसके साथ ही दूसरी याचिकाकर्ता के तौर पर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ये स्वैच्छिक नहीं, अनिवार्य है। वकील सी यू सिंह ने कहा, पुलिस को ऐसा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हरिद्वार पुलिस का आदेश देखिए, कठोर कार्रवाई की बात कही गई है। ये हजारों किलोमीटर का रास्ता है। लोगों की आजीविका प्रभावित की जा रही है। जिसके जवाब में अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दुकानदार और स्टाफ का नाम लिखना जरूरी किया गया है। यह exclusion by identity है। नाम न लिखो तो व्यापार बंद, लिख दो तो बिक्री खत्म। जिस पर जस्टिस भट्टी ने कहा, बात को बढ़ा-चढ़ा कर नहीं रखना चाहिए। आदेश से पहले यात्रियों की सुरक्षा को भी देखा गया होगा।
छुआछूत को दिया जा रहा है बढ़ावा
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध सब इन यात्रियों के काम आते रहे हैं। आप शुद्ध शाकाहारी लिखने पर जोर दे सकते हैं। दुकानदार के नाम पर नहीं। आर्थिक बहिष्कार की कोशिश है। छुआछूत को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
जस्टिस एसवी भट्टी ने इस मसले के बीच में कहा कि 'क्या मांसाहार करने वाले कुछ लोग भी हलाल मांस पर जोर नहीं देते'? सीयू सिंह ने कहा, 'देखिए उज्जैन में भी प्रशासन ने दुकानदारों के लिए ऐसा निर्देश जारी कर दिया गया है'। जस्टिस राय ने कहा, 'क्या कांवड़िया इस बात की भी अपेक्षा कर सकते हैं कि खाना किसी विशेष समुदाय के दुकानदार का हो, अनाज किसी विशेष समुदाय का ही उपजाया हुआ हो'? जिसपर वकील सिंघवी ने कहा, 'यही हमारी दलील है'।
जज ने केरल रेस्टोरेंट का दिया उदाहरण
जस्टिस एसवी भट्टी ने कहा, 'केरल के एक शहर में 2 प्रसिद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट हैं। एक हिंदू का और एक मुस्लिम का। मैं व्यक्तिगत रूप से मुस्लिम के रेस्टोरेंट में जाना पसंद करता था, क्योंकि वहां सफाई अधिक नजर आती थी'। इस पर सिंघवी ने कहा, 'खाद्य सुरक्षा कानून भी सिर्फ शाकाहारी-मांसाहारी और कैलोरी लिखने की बात कहता है। निर्माता कंपनी के मालिक का नाम लिखने की नहीं'। सिंघवी ने कहा, 6 अगस्त को कांवड़ यात्रा खत्म हो जाएगी। इसलिए इन आदेशों का एक भी दिन जारी रहना गलत है।
बुलडोजर मॉडल के तहत एक्शन की काफी चर्चा रही। उत्तर प्रदेश समेत राजस्थान, मध्य प्रदेश तमाम जगहों से बुलडोजर मॉडल के एक्शन की खबरें सुनने को मिलती हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बुलडोजर एक्शन को लेकर टिप्पणी की और कहा कि किसी के घर को गिराना उचित नहीं है। वहीं, जस्टिस विश्वनाथन ने सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है। कोर्ट द्वारा नोटिस, कार्रवाई और अन्य आरोपों पर सरकार को उत्तर देने के निर्देश दिए हैं। इस मामले में अगली सुनवाई 17 सितंबर को होना तय किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन को बताया गलत!
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपनी कार्रवाई के दौरान बुलडोजर एक्शन पर कई गंभीर सवाल उठाए हैं। कोर्ट की ओर से कहा गया कि सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी के घर को गिराना उचित नहीं है। अदालत ने शासन और प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति दोषी भी है, तो भी उसके घर को गिराया नहीं जा सकता। साथ ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अपराध में दोषी साबित होने पर भी घर नहीं गिराया जा सकता। उन्होंने साफ किया कि जिनके खिलाफ ये एक्शन हुआ है, वो अवैध कब्जे या निर्माण के कारण निशाने पर हैं, न कि अपराध के आरोप की वजह से।
जानिए किसने दाखिल की थी याचिका
बुलडोजर एक्शन को लेकर जमीयत उलेमा ए हिन्द ने याचिका दाखिल की थी। जमीयत उलेमा ए हिन्द ने सरकारों द्वारा आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने पर रोक लगाने की मांग की है। इस याचिका में यूपी, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हाल में हुई बुलडोजर कार्रवाइयों का उल्लेख करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया गया है। आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो किसी भी अवैध संरचना को सुरक्षा नहीं प्रदान करेगा जो सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध कर रही हो। साथ ही कोर्ट ने संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे हैं ताकि वो उचित दिशा-निर्देश जारी कर सके। इस मामले में 17 सितंबर को आगे की सुनवाई होगी।
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