हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। जबकि एग्जिट पोल और राजनीतिक पंडितों ने कांग्रेस को हरियाणा में अच्छे संकेत दिए थे। अभी तक आए रुझाने के अनुसार सत्ता विरोधी लहर के बाद भी कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं दिख रही है। जबकि भाजपा के सिर ताज सजता नजर आ रहा है। बता दें कि सुबह 11 बजे तक हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) 47 सीटों पर आगे चल रही थी। जबकि कांग्रेस 36 सीटों पर आगे चल रही थी. कांग्रेस का वोट शेयर 40.57 प्रतिशत था, जबकि भाजपा का 38.80 फीसदी था। बता दें कि राज्य में बहुमत का आंकड़ा 46 सीटों का है। 90 सीटों पर 25 प्रतिशत वोटों की गिनती हो चुकी है।
बीजेपी ने गैर-जाट वोटरों को किया एकजुट
ऐसा लगता है कि कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर बहुत निर्भर थी। यह निर्भरता उसके लिए कारगर साबित नहीं हुई। कांग्रेस का मानना था कि जाट, दलित और मुस्लिम वोट मिलकर राज्य में जीत सुनिश्चित करेंगे, लेकिन ऐसा लगता है कि बीजेपी ने गैर-जाट और गैर-मुस्लिम वोटों के बीच अपने वोट को बेहतर तरीके से एकजुट कर लिया है। इसके अलावा, गैर-जाट अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोटों को एकजुट करने की योजना भाजपा के लिए कारगर साबित हुई। बीजेपी ने पूर्वी और दक्षिणी हरियाणा के गैर-जाट इलाकों में अपना गढ़ बरकरार रखा है। जाट-बहुल पश्चिमी हरियाणा में उल्लेखनीय रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है। गैर-जाट वोट बड़ी संख्या में बीजेपी के पक्ष में मतदान किया है।
भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा में अंदरूनी कलह ने डुबाई नैया
बीजेपी के खिलाफ कथित सत्ता विरोधी लहर के बावजूद कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच अंदरूनी कलह को रोकने में सफल नहीं रही। दोनों के तनाव ने भी पार्टी की संभावनाओं पर पानी फेर दिया। जमीनी स्तर पर कांग्रेस ने बीजेपी की तरह एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ा। जिसकी वजह से कई बागी निर्दलीय चुनाव लड़े। हालांकि कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया था, लेकिन यह भी पक्ष में नहीं गया. हरियाणा में गैर-जाट वोटों के बीच 2004 से 2014 के बीच हुड्डा सरकार को भ्रष्ट माना जाता था और शासन के मापदंडों पर उसका प्रदर्शन खराब था। हुड्डा के शासन के दौरान, राज्य में कानून और व्यवस्था भी खराब बताई गई थी।
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