Greater Noida: भारत का ज्योतिष विज्ञान दुनिया के किसी देश की तकनीक से आगे है। ये सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की सटीक जानकारी देते है और अपनी जंत्री में लिख देते हैं। विकसित देश की तकनीक पूर्वानुमान को कई बार बदलना पड़ जाता है। यह बात ग्रेनो के नॉलेज पार्क स्थित शारदा विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज ने आयोजित मंथन भारतीय ज्ञान प्रणाली पर संवाद के दौरान इंद्रेश कुमार प्रचारक राष्ट्रीय स्वयंसेवक (आरएसएस) ने कही।

भारतीय ज्ञान प्रणालियों में जीवन दर्शन भी शामिल


कार्यक्रम के दौरान आरएसएस के प्रचारक इंद्रेश कुमार कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणालियों में ज्ञान, विज्ञान और जीवन दर्शन शामिल हैं जो अनुभव, अवलोकन, प्रयोग और कठोर विश्लेषण से विकसित हुए हैं। मान्य करने और व्यवहार में लाने की इस परंपरा ने हमारी शिक्षा, कला, प्रशासन, कानून, न्याय, स्वास्थ्य, विनिर्माण और वाणिज्य को प्रभावित किया है। हाल के वर्षों में, भारतीय ज्ञान प्रणाली की अवधारणा ने गति प्राप्त की है, जिसका उद्देश्य भारत की प्राचीन परंपराओं और ज्ञान को पुनर्जीवित करना है।


भारतीय ज्ञान प्रणाली सभी गुण मौजूद


इंद्रेश कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत, भारत भारतीय ज्ञान परंपराओं के आधार पर अपनी शिक्षा प्रणाली के पुनर्गठन के लिए एक परिवर्तनकारी यात्रा की शुरुआत कर रहा है। इसमें आदिवासी ज्ञान और सीखने के स्वदेशी और पारंपरिक तरीके शामिल होंगे और इसमें गणित, खगोल विज्ञान, दर्शन, योग, वास्तुकला, चिकित्सा, कृषि, इंजीनियरिंग, भाषा विज्ञान, साहित्य, खेल, साथ ही शासन, राजनीति और संरक्षण शामिल होंगे। भारतीय ज्ञान प्रणाली छात्रों को जोखिम लेने और नवाचार को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके उद्यमशीलता की मानसिकता पैदा करती है । यह दृष्टिकोण उद्यमशीलता की भावना पैदा करता है, छात्रों को नौकरी चाहने वालों के बजाय निर्माता बनने के लिए प्रेरित करता है।


ज्ञान से चरित्र निर्माण होता है चरित्र का निर्माण


शारदा विश्वविद्यालय चांसलर पीके गुप्ता ने कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली का उद्देश्य समसामयिक सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिए आगे के शोध का समर्थन और सुविधा प्रदान करना है , वैदिक साहित्य, वेदों और उपनिषदों पर आधारित है। मौजूदा आईकेएस पाठ्यक्रमों को डिजिटल शिक्षण प्लेटफार्मों के साथ समन्वयित किया जा रहा है। ज्ञान से चरित्र निर्माण व बोध होता है । ज्ञान धन की तरह है, जितना एक मनुष्य को प्राप्त होता है , वह उतना ही ज्यादा पाने की इच्छा रखता है । एक बार प्राप्त किया गया ज्ञान सतत प्रयोग किया जाने वाला बन जाता है । प्राचीन भारत में शिक्षा एक आजीवन प्रक्रिया थी। ज्ञान को मनुष्य की सर्वोत्तम आंख माना जाता था । प्राचीन भारतीय परंपरा पेशे को समृद्ध करने और पूरे समुदाय को रोशन और शिक्षित करने के लिए मनुष्य में भावना को सक्रिय करने पर बहुत महत्व देती है।

कार्यक्रम में ये रहे मौजूद


इस दौरान शारदा विश्वविद्यालय प्रो चांसलर वाईके गुप्ता, वाइस चांसलर डॉ सिबाराम खारा, प्रो वाइस चांसलर परमानंद, डायरेक्टर पीआर डॉ अजीत कुमार, रजिस्ट्रार विवेक गुप्ता, डीन डॉ अनविति गुप्ता समेत विभिन्न विभागों डीन और एचओडी मौजूद रहे।