Ayodhya: राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के लिए पीएम मोदी, अमिताभ बच्चन समेत नामचीन हस्तियां पहुंच चुकी हैं। पीए मोदी प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूजन सामग्री लेकर राम मंदिर पहुंच चुके हैं। प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूजन शुरू हो चुकी है। कुछ ही देर में रामलाल की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होगी। जिसके मुख्य यजमान पीएम मोदी हैं।
अयोध्या राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर अनुष्ठान सुबह से ही शुरू हो गया है। वीआईपी लगातार पहुंच रहे हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में राम भक्त भी अयोध्या पहुंचे हैं। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए न्यूनतम विधि-अनुष्ठान रखे गए हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की विधि दोपहर 12:20 बजे शुरू होगी और 1 एक बजे पूरा हो जाएगा। सीएम योगी अयोध्या पहुंच चुके हैं और कार्यक्रम की तैयारियों का जायजा ले रहे हैं।
सांसकृतिक कार्यक्रम शुरू
प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरी नगरी को आध्यात्मिक रंग देकर सजाया गया है। पूरे मंदिर परिसर की छंटा देखती ही बनती है। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, क्रिकेटर, मशहूर हस्तियां, उद्योगपति, संत और विभिन्न देशों के प्रतिनिधि पहुंच रहे हैं। अब भारत समेत दुनिया की नजरें प्राण प्रतिष्ठा की ऐतिहासिक घड़ी पर टिकी हुई हैं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रातः काल 10 बजे से 'मंगल ध्वनि' का भव्य वादन होगा। विभिन्न राज्यों से 50 से अधिक मनोरम वाद्ययंत्र लगभग दो घंटे तक इस शुभ घटना का साक्षी बनेंगे।
इस शुभ मुहूर्त में होगी प्राण प्रतिष्ठा
बता दें कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समय काशी के विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने निकाला है। यह कार्यक्रम पौष माह के द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त, इंद्र योग, मृगशिरा नक्षत्र, मेष लग्न एवं वृश्चिक नवांश में होगा। शुभ मुहूर्त दिन के 12 बजकर 29 मिनट और 08 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट और 32 सेकंड तक का रहेगा। यानि प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त केवल 84 सेकंड का है।
काशी के विद्वान संपन्न कराएंगे अनुष्ठान
पूजा-विधि के यजमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों श्रीरामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होगी। अनुष्ठान काशी के प्रख्यात वैदिक आचार्य गणेश्वर द्रविड़ और आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित के निर्देशन में 121 वैदिक आचार्य संपन्न कराएंगे। इस दौरान 150 से अधिक परंपराओं के संत-धर्माचार्य और 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी, तटवासी, द्वीपवासी, जनजातीय परंपराओं की भी उपस्थिति होगी।
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