18वीं लोकसभा के स्पीकर पद के नाम को लेकर अभी भी असमंजस बना हुआ है। लोकसभा के स्पीकर पद को लेकर करीब एक हफ्ते से नामों पर चर्चा जारी है लेकिन अब तक अंतिम निर्णय नहीं हो सका है। 26 जून यानी अब से 8 दिन बाद 18वीं लोकसभा के स्पीकर का चुनाव होना हैं। वहीं इस बीच लोकसभा स्पीकर के चयन को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों से अध्यक्ष पद के लिए नाम सुझाने को कहा है। सूत्रों की मानें तो बीजेपी ने तेलगु देशम पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और लोजपा (आर) से पूछा है कि क्या उनकी नजर में स्पीकर के लिए कोई नाम है? हालांकि अब तक किसी भी सहयोगी दलों की ओर से इसको लेकर कोई टिप्पणी नहीं की गई है। इन दलों ने प्रधानमंत्री मोदी पर फैसला छोड़ दिया है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के घर बैठकों का दौर जारी
लोकसभा के नए स्पीकर को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के घर पर मंगलवार शाम को बैठक प्रस्तावित है। राजनाथ सिंह के घर पर दो दिन पहले भी एनडीए नेताओं की बैठकी हो चुकी है। कहा जा रहा है कि स्पीकर को लेकर सर्व-सम्मति बनाने की जिम्मेदारी बीजेपी हाईकमान की तरफ से राजनाथ सिंह को ही दी गई है। राजनाथ सिंह के घर पर जो पहली बैठक हुई थी, उसमें जेडीयू, टीडीपी और लोजपा (आर) के नेता शामिल हुए थे।

कैसे होता है लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव?
लोकसभा अध्यक्ष बनने के लिए सबसे पहली शर्त होती है कि स्पीकर को सदन का सदस्य होना चाहिए। इसके अलावा अध्यक्ष पद के लिए कोई विशेष क्वालिफिकेशन का प्रावधान नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष के साथ पीठासीन अधिकारियों और उपाध्यक्ष का चयन सदन के सदस्यों द्वारा साधारण बहुमत के आधार पर किया जाता है। आमतौर पर सत्ताधारी दल के सदस्य ही स्पीकर पद के लिए चुने जाते हैं। परंपरा के अनुसार सत्ताधारी पार्टी अन्य दलों के नेताओं के साथ विचार-विमर्श के बाद अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार की घोषणा करती है। उम्मीदवार का फैसला किए जाने के बाद संसदीय कार्य मंत्री या प्रधानमंत्री अध्यक्ष पद के लिए उनके नाम का प्रस्ताव रखते हैं। फिर सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुन लिए जाते हैं। हालांकि, अगर किसी नाम पर सदस्य एकमत न हों तो ऐसी स्थिति में अध्यक्ष के चयन के लिए वोटिंग कराई जाती है।

लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां
लोकसभा अध्यक्ष सदन की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं। उन पर सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से संचालित करने की जिम्मेदारी होती है। सदन के अध्यक्ष ही सदस्यों को बोलने की अनुमति देते हैं और उनके वक्तव्य का समय निर्धारित करते हैं। इसके अलावा अगर कोई सदस्य सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है तो अध्यक्ष उसकी सदस्यता भी निलंबित कर सकते हैं। किसी प्रस्ताव पर वोटिंग के समय भी स्पीकर की भूमिका बेहद अहम हो जाती है। अगर किसी विधेयक पर पक्ष और विपक्ष, दोनों ओर से समान संख्या में मत पड़ते हैं तो ऐसी स्थिति में लोकसभा स्पीकर के पास वोट करने का अधिकार होता है। स्पीकर अपने वोट से तय करते हैं कि विधेयक पास होगा या नहीं। वहीं 52वें दल बदल विरोधी संविधान संशोधन अधिनियम 1985 के बाद लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां और बढ़ गई हैं और उनकी भूमिका बेहद अहम हो गई है। इस संशोधन के तहत स्पीकर दल-बदल कानून के अंतर्गत सदस्यों की सदस्यता भी रद्द कर सकते हैं। इस तरह अध्यक्ष के पास न्यायिक शक्तियां भी होती हैं।