जिस पल का पूरे देश को इंतज़ार है वो कल आने वाला है देश की 542 सीटों पर हुए लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आएगा. एक ओर जहां एग्जिट पोल्स में NDA आई सरकार बनती दिख रही है तो वहीं दूसरी ओर इंडी गठबंधन को बड़ा झटका दिख रहा है लेकिन इस चुनाव में उन सियासी दलबदलुओं पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई है जिन्होंने चुनाव से पहले पार्टी का साथ छोड़ा. बता दें लोकसभा चुनाव से पहले सूबे में दूसरे दलों के तमाम दिग्गज नेताओं ने सियासी पाला बदला था। जिसमें यूपी में राज्यसभा चुनाव के दौरान सपा के 7 विधायकों ने बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी, जिसमें राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, मनोज पांडेय, विनोद चतुर्वेदी, पूजा पाल और आशुतोष मौर्य शामिल थे। तो वहीं सपा की विधायक महाराजी देवी ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था। सपा के इन विधायकों ने सिर्फ राज्यसभा चुनाव में ही बीजेपी का साथ नहीं दिया, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के पक्ष में प्रचार करने का काम किया और पार्टी के बड़े नेताओं के साथ मंच भी शेयर किया था। अब नतीजों के आने के बाद साफ हो जाएगा कि सपा के ये बागी विधायक बीजेपी की जीत में कितना अहम रोल निभा पाए हैं।
बागी नेताओं को लेकर बीजेपी की रणनीति कितनी सफल
बीजेपी ने कांग्रेस से आरपीएन सिंह को राज्यसभा भेजा, तो जितिन प्रसाद को लोकसभा का चुनाव लड़ाया। पूर्व एमएलसी यशवंत की बीजेपी ने घर वापसी कराई, तो बाहुबली धनंजय सिंह का भी समर्थन जुटाया। वहीं लोकसभा चुनाव के सियासी सरगर्मी के बीच सपा से गठबंधन तोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाने वाले आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी से लेकर सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के लिए भी यह नतीजे किसी इम्तिहान से कम नहीं है। इसके अलावा सपा के बागी विधायक मनोज पांडेय रायबरेली के ऊंचाहार विधानसभा सीट से लगातार तीन बार से चुनाव जीत रहे हैं। इस तरह उनका सियासी आधार रायबरेली के साथ-साथ अमेठी सीट के ब्राह्मण मतदाताओं पर है। लोकसभा चुनाव में मनोज पांडेय ने खुलकर दोनों ही सीटों पर बीजेपी का प्रचार किया है। अमित शाह के साथ उन्होंने चुनावी जनसभा को भी संबोधित किया। रायबरेली और अमेठी सीट को मजबूत बनाने की बीजेपी की रणनीति कितनी सफल रही, यह दोनों सीटों के परिणाम साफ कर देंगे।
महाराजी देवी और राकेश प्रताप सिंह कितने मददगार रहे
राकेश प्रताप सिंह अमेठी की गौरीगंज सीट से तीसरी बार सपा के विधायक हैं। गौरीगंज क्षेत्र के ठाकुर मतदाताओं के बीच राकेश प्रताप सिंह की मजबूत पकड़ मानी जाती है। अमेठी से बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी के लिए राकेश प्रताप सिंह ने जमकर प्रचार किया है। अमित शाह के साथ रैली और रोड-शो में भी शिरकत की। अमेठी की सपा विधायक महाराजी देवी भी बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी के लिए वोट मांगती हुई नजर आई। तो वहीं बात करें राकेश पांडेय की, तो राकेश पांडेय अंबेडकर नगर की जलालाबाद सीट से विधायक हैं और अभय सिंह अयोध्या की गोसाईगंज सीट से विधायक है। बीजेपी ने राकेश पांडेय के बेटे रीतेश पांडेय को अंबेडकर नगर लोकसभा सीट से प्रत्याशी भी बनाया है। अभय सिंह को वाई श्रेणी की सुरक्षा दी गई है। राकेश की ब्राह्मण समुदाय में तो अभय सिंह की ठाकुरों में पकड़ मानी जाती है। सपा के दोनों बागी विधायक अंबेडकर नगर लोकसभा क्षेत्र के तहत आते हैं। जातीय समीकरण के तहत यह सीट बीजेपी के लिए मुफीद नहीं मानी जाती है, जिसके चलते ही पार्टी ने सपा के दोनों बागी विधायकों को अपने साथ मिलाया है।
कालपी, कौशांबी, बदायूं और कुशीनगर में 4 बागियों की प्रतिष्ठा का सवाल
विनोद चतुर्वेदी कालपी विधानसभा सीट से सपा विधायक हैं तो पूजा पाल कौशांबी की चायल से विधायक हैं और आशुतोष मौर्य बदायूं के बिसौली सीट से विधायक हैं। तीनों ही नेताओं का अपनी-अपनी लोकसभा सीटों पर सियासी आधार है। पूजा पाल की सियासी पकड़ कौशांबी और प्रयागराज दोनों सीट पर पाल समुदाय के बीच है। सपा के तीनों बागी विधायक अपने-अपने इलाके में बीजेपी के उम्मीदवारों के लिए खुलकर चुनाव प्रचार करते हुए नजर आए थे। तो वहीं बात करें कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने वाले कुशीनगर के पूर्व सांसद आरपीएन सिंह की तो, कुशीनगर के पूर्व सांसद आरपीएन सिंह की कुशीनगर ही नहीं पूर्वांचल के तमाम जिलों में सैंथवार समुदाय के बीच उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। कुशीनगर सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
बस्ती सीट पर कितना काम आएगा बीजेपी का गणित
आजमगढ़, बलिया और आसपास के क्षेत्रों में ठाकुर समुदाय के मतदाताओं में असर रखने वाले पूर्व एमएलसी यशवंत सिंह की पिछले माह ही बीजेपी में वापसी कराई गई। उन्हें साल 2022 में पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित किया गया था। इनके आने से भाजपा को कितना फायदा हुआ, यह भी चुनाव नतीजे से साफ होगा। मुलायम सिंह के करीबी रहे पूर्वांचल के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह और उनके भाई बृज किशोर सिंह को चुनावी फायदे के लिहाज से बीजेपी में शामिल कराया गया है। बस्ती लोकसभा सीट पर राजकिशोर सिंह की मजबूत पकड़ ठाकुर नेताओं के बीच मानी जाती है। ऐसे में देखना है कि बस्ती सीट पर कितने मुफीद साबित हुए हैं।
धनंजय सिंह और जितिन प्रसाद कितने मददगार साबित हुए
जौनपुर से सांसद रहे बाहुबली धनंजय सिंह को भले ही बीजेपी ने पार्टी में शामिल न कराया हो, लेकिन उका समर्थन जुटाने में कामयाब रही है। धनंजय की पत्नी श्रीकला रेड्डी ने जौनपुर सीट से चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए थे। धनंजय सिंह के जरिए बीजेपी ने जौनपुर और मछली शहर सीट के सियासी समीकरण को साधने की कवायद की है। तो वहीं कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए जितिन प्रसाद को पहले योगी सरकार में मंत्री बनाया गया और लोकसभा चुनाव में पीलीभीत सीट से उतारा गया है। जितिन प्रसाद का सियासी असर शहजहांपुर से लेकर धौरहरा सीट तक है। अब देखना होगा कि वो ब्राह्मण समुदाय के मतदाताओं को बीजेपी के पक्ष में लामबंद करने में कितने मददगार रहे।
RLD-सुभासपा-बीजेपी गठबंधन राजनीतिक हैसियत से कितना कामयाब
यूपी में सपा के साथ 2022 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने वाली आरएलडी और सुभासपा ने 2024 में बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी थी। आरएलडी का सियासी आधार पश्चिमी यूपी के जाट समुदाय के बीच है तो सुभासपा की पकड़ पूर्वांचल के राजभर समुदाय के बीच है। बीजेपी ने जयंत चौधरी के साथ गठबंधन किया तो योगी कैबिनेट में आरएलडी कोटे से एक मंत्री और एक एमएलसी का पद दिया। इसी तरह ओमप्रकाश राजभर को योगी कैबिनेट में शामिल किया गया तो उनकी पार्टी को एक एमएलसी और चुनाव लड़ने के लिए एक लोकसभा की सीट दी गई है। लोकसभा चुनाव के नतीजों से दोनों दलों का सियासी कद भी तय हो जाएगा।
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