लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से ही यूपी की सियासत की हर ओर चर्चा हो रही है. इसके साथ ही सीएम और डिप्टी सीएम के बीच मची खींचतान ने विपक्ष को हंसने का जबरदस्त मौका दे दिया है.वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव लखनऊ का मैदान छोड़कर दिल्ली के रण में पैर जमाने के लिए पहुंच चुके हैं. इन सबके बीच यूपी में 29 जुलाई काफी अहम मानी जा रही है. दरअसल उत्तर प्रदेश का विधानसभा का मानसून सत्र 29 जुलाई से शुरू हो रहा है. इसी दिन सूबे के राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है. अखिलेश यादव के विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का 29 जुलाई से पहले चयन कर लेना है. ऐसे में विधानसभा सत्र से पहले सीएम योगी को पार्टी नेताओं के बीच जारी मनमुटाव को दूर करने के साथ-साथ सहयोगी दलों के विश्वास को भी जीतने की चुनौती होगी. इसीलिए 29 जुलाई पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं.
लोकसभा चुनाव के बाद पहला विधानसभा सत्र
लोकसभा 2024 के 4 जून को नतीजे आने के बाद सूबे में पहला विधानसभा सत्र शुरू होने वाला है. जहां सपा के यूपी की 80 में से 37 सीटें जीतने के बाद तेवर तल्ख हैं. सपा के विधायकों के साथ कांग्रेस के विधायकों में भी 37 सीटें जीतने की खुशी साफ नजर आ रही है. जिसके बाद से ही सपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां सड़क से लेकर संसद तक बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को आड़े हाथों लेने में जुटी हुई हैं. वहीं लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद बीजेपी ने दो कदम पीछे खींच लिए हैं. ऐसी स्थिति में विधानसभा में विपक्षी दलों का सामना करना बीजेपी के लिए काफी मुश्किल होने वाला है. इसके साथ ही विपक्ष के पास सरकार पर हमलावर होने के लिए कई मुद्दे भी हैं. जिसमें में कांवड़ यात्रा के मार्गों की दुकानों पर नेमप्लेट का मुद्दा और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा काफी अहम है.
सीएम के कंधों में सियासी रिश्तों का दारोमदार
29 जुलाई को शुरू होने वाले विधानसभा सत्र को लेकर विपक्ष पूरी तरह से तैयार नजर आ रहा है. साथ ही विपक्ष की मंशा सरकार और बीजेपी के सहयोगी दलों को चारों ओर से घेरने की है. वहीं बीजेपी के दो दिग्गज नेताओं की खींचतान के चलते बीजेपी के सहयोगी दल भी कशमकश में फंसे हुए हैं. सीएम योगी और डिप्टी सीएम के बीच की तल्खियां अगर विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले खत्म ना हुई तो ये बीजेपी के लिए बड़ी मुसीबत बन सकती हैं. वहीं प्रदेश के सीएम होने के नाते योगी आदित्यनाथ के कंधों पर इन तल्खियों को दूर करने की पूरी जिम्मेदारी है.
सत्र से पहले ही सबके मुद्दे हो गए हैं तैयार
लोकसभा चुनाव के बाद ही अपना दल (एस) की अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर नौकरियों में दलित और ओबीसी आरक्षण में भेदभाव का मामला उठाया था. निषाद पार्टी के अध्यक्ष और मंत्री डॉ. संजय निषाद ने भी सरकार को चेताया था कि जिन भी सरकारों ने आरक्षित वर्गों की उपेक्षा की उनका नुकसान ही हुआ. इसके अलावा बुलडोजर नीति पर भी सवाल खड़े किए थे. ऐसे ही बातें ओम प्रकाश राजभर ने भी किया था तो आरलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने कांवड़ यात्रा वाले मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों में दुकानदारों के नाम लिखे जाने संबंधी आदेश की अलोचना करते हुए वापस लिए जाने की मांग की थी. इस तरह से सहयोगी दलों के सवालों को विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले साधकर रखने की चुनौती है.
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को मिलेगा विस्तार!
विधानसभा का सत्र 29 जुलाई को शुरू हो रहा है और इसी दिन उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है. ऐसे में 29 जुलाई से पहले सूबे के नए राज्यपाल का चयन भी करना होगा. जिसका कारण ये है कि विधानसभा सत्र की शुरूआत राज्यपाल के अभिभाषण से ही होती है. फिलहाल इस बात का सारा दायित्व केंद्रीय गृह मंत्रालय के ऊपर है कि वो राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को सेवा विस्तार देते हैं या नए राज्यपाल की नियुक्ति करते हैं. इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो यूपी में किसी भी राज्यपाल को लगातार दो कार्यकाल नहीं मिले हैं. ऐसे में अगर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को सेवा विस्तार मिलता है तो ये एक नई उपलब्धि होगी.
कौन होगा विधानसभा का नया नेता प्रतिपक्ष?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव कन्नौज लोकसभा सीट से जीतने के बाद विधायकी पद से इस्तीफा दे दिया है, जिसके चलते उन्हें विधानसभा में नए नेता प्रतिपक्ष का चुनाव करना है. 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष की भूमिका अदा कर रहे थे, लेकिन अब उन्हें नए नेता का चुनाव करना होगा. इसके साथ विधानसभा में मुख्य सचेतक का भी फैसला करना है. नेता प्रतिपक्ष के लिए शिवपाल सिंह यादव से लेकर इंद्रजीत सरोज और रामअचल राजभर के नाम की चर्चा है. विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के चलते शिवपाल यादव के नाम पर मुहर लगना मुश्किल है. सपा ने जिस तरह से लोकसभा चुनाव में पीडीए फॉर्मूले को आजमाया है, उसके चलते माना जा रहा है कि किसी दलित या फिर गैर-यादव ओबीसी के यह पद दिया जा सकता है.
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