जिस सीट से ठोकी थी बिहार के लालू ने ताल, उसी सीट पर बेटी बनी उम्मीदवार, बीजेपी खेमे में बढ़ी हलचल

कहते हैं बेटे पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हैं लेकिन लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने लोगों को शायद ये बताने की ठान ली है कि केवल बेटे ही नहीं अब बेटियां भी पिता की विरासत की बागडोर को अच्छे से संभाल भी सकती हैं और आगे बढ़ा भी सकती हैं। दरअसल राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार की 22 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. पार्टी ने सारण लोकसभा सीट से रोहिणी आचार्य को टिकट दिया है जबकि पाटलिपुत्र से मीसा भारती को उम्मीदवार घोषित किया है. सारण वही सीट है जहां से कभी लालू यादव सांसद हुआ करते थे. 1977 में लालू यादव पहली बार इस सीट से मैदान में उतरे थे और जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे. 1977 में जीत हासिल करने के बाद लालू यादव ने 1989, 2004 और 2009 में भी इसी सीट से जीत हासिल की थी. तब से इस सीट को लालू यादव का गढ़ कहा जाने लगा था. हालांकि, तब यह सीट छपरा कहलाती थी. 2008 में हुए परिसीमन के बाद इस सीट का नाम छपरा से बदलकर सारण कर दिया गया.

बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी से होगी रोहिणी की टक्कर
बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी से सारण की सीट पर रोहिणी का मुकाबला होना है. रूडी इस सीट से मौजूदा सांसद भी हैं. 2014 के चुनाव में भी रूडी को जीत हासिल हुई थी. रूड़ी ने 2014 में लालू यादव की पत्नी और बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी को मात दी थी. इसके बाद 2019 में लालू यादव के समधी चंद्रिका राय को धूल चटाया था. रूडी का सामना अब लालू यादव की बेटी रोहिणी से है. 2019 के चुनाव में बीजेपी के राजीव रूडी को 50 फीसदी से अधिक वोट मिले थे. वहीं, 38 फीसदी से अधिक वोटों के साथ चंद्रिका राय दूसरे नंबर पर रहे थे.वही बात करें रोहिणी आचार्य की तो रोहिणी पहली बार मैदान में जरूर उतर रही हैं, लेकिन राजनीति के दांव पेच का अंदाजा उन्हें पहले से मालूम है. अब उनके कंधे पर लालू यादव की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है. हालांकि, रोहिणी इसमें कितना सफल हो पाती हैं यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा लेकिन टिकट की घोषणा होने के पहले से ही रोहिणी आचार्य ताबड़तोड़ सारण का दौरा कर रही हैं और लोगों के बीच में पहुंचने की कोशिश कर रही है.

पहले कांग्रेस और बाद में पिता लालू के गढ़ में ताल ठोंक पाएंगी रोहिणी
लालू यादव के चुनाव जीतने से पहले सारण कांग्रेस का गढ़ रहा. 1962 से लेकर 1971 तक यह सीट कांग्रेस के कब्जे में थी. रामशेखर प्रसाद सिंह यहां से तीन बार सांसद चुने गए थे. 1977 के चुनाव में देश की सियासत का मिजाज बदला और बिहार की राजनीति में लालू यादव का कद बढ़ा तो वो पहली बार यहां से मैदान में उतरे. 1989, 2004 और 2009 में लालू यादव यहां से सांसद निर्वाचित हुए थे अब पार्टी ने इस सीट से रोहिणी आचार्य को मैदान में उतार दिया है. करीब डेढ़ साल पहले पिता लालू यादव को अपनी एक किडनी दान में देकर रोहिणी आचार्य सुर्खियों में आईं थी. सारण सीट से उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद अब रोहिणी आचार्य के कंधे पर उस सीट को जीतने की चुनौती है जहां से पिता पहली बार सांसद चुने गए थे. रोहिणी पहली बार चुनावी मैदान में जरूर उतर रही हैं, लेकिन सियासी दांव पेंचों से वो पहले से वाकिफ हैं.

क्या कहता हैं सारण का सियासी समीकरण?
सारण लोकसभा सीट की बात करें तो इसमें छह विधानसभा सीटें आती हैं. 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि दो सीटें बीजेपी के खाते में गई थी. जिन चार सीटों पर आरजेडी ने जीत हासिल की थी उनमें मढ़ौरा, गरखा, परसा और सोनपुर सीट शामिल है जबकि छपरा और अमनौर सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी.


By Super Admin | April 10, 2024 | 0 Comments

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